Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 911
________________ संतोसिअ - संदिट्ठ पाइअसद्दमहण्णवो ४१ । १५. सुपा ४३१) २ घनन्दित खुशी संथवण न [ संस्तवन ] ऊपर देखो (संबोध संदेस [संदेश] दक्षिणहस्त 'दिदात्रियो (कप्पू) 1 ५६६ उप ७६८ टी) IV संतोस ][संतोष] संतोष ति ( १६) । निवेणं कोववसा तहवि तस्स संदसो' (२१२) - संसण न [ संदर्शन ] दर्शन, देखना, साक्षात्कार ( उप ३५७ टी) 1 संतोसिअ वि[संतोषित] संतुष्ट किया हुधा (महा सा - संचयय वि[संस्तावक] [स्तुतिकर्ता (खाया १, १६ – पत्र २१३) । संपवि देखो संविअ (पउम ८१, १०) संथार [4] [संस्तार ] १ दर्भ कुरा प्रादि संथारग की शय्या, बिछौना (गाया १, १ संथारय पत्र ३०, उवा उवः भग) । २ अपवरक, कमरा (नाचा २, २, ३, १) । ३ उपाश्रय, साधु का वास-स्थान ( वव ४) । ४ संस्तार कर्ता (पव ७१) । संदट्ट वि [संदष्ट] जो काटा गया हो वह जिसको देश लगा हो वह (हे २, ३४ कुमा ३, ८ प ) 1 संदट्ट संदट्टय २ न. संघट्ट, संघर्ष (दे ८, १८) 1 संचाव देखो संठाय व संचायत (उम संदस्ड वि [संदग्ध] यति जला हुआ (गुर १०३, २४) ६, २०५ ; सुपा ५६ 8 ) 1 संदण संथापण न [ संस्थापन ] सान्त्वना [स्यन्दन] १ र ( पाच महा २ भारत में प्रतीत उत्सर्पिणी-काल में उत्पन्न तेइसवाँ जिनदेव ( पव ७) । ३ न. क्षरण, प्रस्रव । ४ वहन, बहना । ५ जल, पानी; 'जत्य गं नई निच्चोयगा निच्चसंदरणा' (कप्प ) 1 संथणक [ सं + स्तन ] श्राक्रन्द करना । (सूप १, २, ३,७ ) - संबर तक [सं + स्तृ] बिछोना करना बिछाना । २ निस्तार पाना, पार जाना । ३ निर्वाह करना । ४ प्रक. समर्थ होना । ५ तृप्त होना । ६ होना, विद्यमान होना । संघरइ (भग २, १ पत्र १२७ उवा कस); 'ण समुच्छे णो संघरे तणं' (सूत्र १, २, २, १३ श्राचा), संथरिज, संघरे, संथरेजा ( कप्प दस ५, २, २० श्राचा) । वकृ. संदभ पुं [ संदर्भ ] रचना, ग्रंथन ( उवर २०३; सण) | संमाजिया श्री [स्वम्दमानिका, '] } दमाणी एक प्रकार का वाहन, एक तरह की पालकी (प्रौपः गाया १५पत्र १०१ १, १ टी -पत्र ४३३ भौप ) 1 संथ संथरंत, संथरमाण ( वर १४२; संथुइ बी [ संस्तुति ] स्तुति, श्लाघा, संदाण सक [कृ] प्रवलम्बन करना, सहारा " ८) । शोध १८२० १८१; आचा २, ३, १, संकृ. संथरित्ता (भग; भाचा ) । संथर पुं [ संस्तर] निर्वाह (पिंड ३७५ ४०० ) 1 लेना । संदाइ (हे ४, ६७ ) । वकृ. संदार्णत (कुमा) कप संदाणिजंत (नाट मानती ११२) प्रशंसा (चेइय ४६६; सुपा ६५० ) I संसक [ सं + स्तु] स्तुति करना, वाघा वकृ. करना । संथुर ( उवः यति ९ ) संयुणमाण (१०) क. संधुणित, संख्यंत (मुरा ११० माक ७) संधुणित्ता ( पि ४२४) I संल वि[संस्थुल ] रमणीय, रम्य, सुन्दर (बाय १६) । संधुव्वंत देखो सं संदाणि वि [संदानित ] बढ, निर्यात (पाय से १, ६०, १३, ७१; सुपा ३ कुत्र ६६ - मालती १६६) संदामिय वि [संदामित ] ऊपर देखो (स ३१६ सम्मत्त १६० ) 1 संद धक [स्यन्द्र ] १ भरना, टपकना । संति (सू २ १२७ ) IV संद पुं [स्यन्द] १ भरन, प्रसव ( से ७, ५९ ) । २ रथ; 'रवि-संडु (? दुव्व भमंतों (धर्मवि १४४) । संद वि [सान्द्र] पन, निविद ( १७ विक्र २३) । संथ व [संस्थ] संस्थित (विसे ११०१) । संवह वि [ संस्तृत ] १ प्राच्छादित, संथडिय) परस्पर के संश्लेष से श्राच्छादित (भक डा ४, ४) २ म निविड़ (चाचा २. १, ३, १० ) । ३ व्याप्त (उत्त २१, २२; भोष ७४७) । ४ समर्थ छ, जिसने पर्याप्त भोजन किया हो वह (कस, श्राचा २,४२,७१३) ६ एकत्रित ( श्राचा २, १,६, १) संधर देव संचार (सुर २,२४७ ) 1संथरण न [ संस्तरण] १ निर्वाह (बृह १) । २ बिछोना करना (राज) 1 संथव सक [ सं + स्तु] १ स्तुति करना, श्लाघा करना । २ परिचय करना। संथवेजा (सूध १, १०, ११) संयवियय (बुपा २)। संथ [संस्तव] १ स्तुति, श्लाघा, 'संथवो थुई (निचू २ व ३ पिंड ४५४) । २ परिचय, संसर्ग (उवा पिंड ३१०६ ४५४३ ४८. आवक ८) वि. स्तुति-कर्ता (छाया ११६ टी-पत्र २२० राज) 1 १०६ Jain Education International समाश्वासन (पउम ११, २०४९,६५, ४७)। देखो संठावण संभावणा' [ संस्थापना ] संस्थापन, रखना (सा २४) देखो संठावणा । संथिद (शौ) देखो संठिअ (नाट - मुच्छ ३०१) संवि[संस्तुत] संबद्ध संगत (सू १, १२, २ ) । २ परिचित (प्राचा १, २, ११) जिसकी स्तुति की गई हो वह १४६ । " For Personal & Private Use Only वि [] १ संलग्न, संयुक्त, संबद्ध (३८, १८; गउडः २३६) । संदाव देखो संताव = संताप (गा ८१७ ६६४ प २७५ स्वप्न २७ अभि ६१; माल १७६ ) 1 संदाव [संद्राय ] समूह, समुदाय (विसे २८) | संदि [संदिष्ट] १ जिसका धया जिसको संदेशा दिया गया हो वह उपदिष्ट, कथित (पाच उप ७२८ टी प्रोषभा ३१३ " www.jainelibrary.org

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