Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 916
________________ ८४६ चित संपत्त[संप्रति] उक्त प्रतिपादित (गाया १२ - पत्र ८६) । संपल लिय[संप्रति] जिसका धी तरह लालन हुआ हो यह 'मुपलनिया' (श्रीप) 1 संपलि[संपति] एक जैन महर्षि (कप्प ) 1 संपलिक[संपर्वङ्क] पद्यासन (भग औनः कप्पः राय १४५) । संपत्ति वि[संप्रदीप्त ] प्रज्वलित, सुलगा हुआ खाया १, १ पत्र ६३ पउम २२ १६; घर्मसं ६७० सुपा २६८ महा) | संपलिम स [ संपरि + सृज् ] प्रमाजंन करना वफ पलिममाण (माचा । संपलिमज्जमाण १, ५, ४, ३ ) । संपली सक [ संपरि + इ] जाना, गति करना । संपलिति (सूत्र १, १, २, ७) संपवेय ( क [ संप्र + वेप् ] काँपना संपवेव संपवेयए, संपवेवए ( आचा २, १६, ३) । संपवेस [प्रवेश] प्रवेश, पैठ (गउड) । संपव्यय सक [ संप्र + व्रज् ] गमन करना, जाना । वकृ. संपव्वयमाण ( आचा १, ५, ५, ३; ठा ६–पत्र ३५२ ) । हेकु. संपव्वइत्तए ( कस) 1 संपसार पुं[संप्रसार] एकत्रित होना, सम वाय (राज) संपसारग वि[संप्रसारक ] १ विस्ता संपसारय । रक, फैलानेवाला (सूत्र १, २, २, २८ ) । २ पर्यालोचनकर्ता (प्राचा १, ५, ४, ५) 1 संपसारि वि[संप्रसारिन्] ऊपर देखो (सूच १,९,१६). संपसिद्ध वि[संप्रसिद्ध ] भव्यन्त प्रसिद्ध (पस ८३७) संपस सक[स+ दृश् ] १ अच्छी तरह देखना विचार करता सह संपतिय (१८) संपहार सक [ संप्र + धारय] १ चितन करना । २ निर्णय करना, निश्चय करना । संपात (सुख १, १५) भूका. संपहारिनु Jain Education International पाइअसहमष्णवो ( सू २, १, १४, २६) । संकृ. संपहारिकण (१०६) संपहार [ संप्रचार] निश्चय, निर्णय ( पउम १६, २६६ उप १०३१ टी. भवि) । संपहार पुं [संप्रहार] युद्ध, लड़ाई (से ८, ४६)। संपहारण ४८, ६८ ) 1. संपा[+ धाव ] दौड़ना संप हावे ( आचा २, १, ३, ३) संपहिरि [संग्रहष्ट] हर्षित प्रमुदित (उ (१५, ३). [ संप्रधारण] निश्चय (पउन संपा श्री [दे] काषी, मेखला, करमनी दे 5, 3) I संपाइअव वि[संपादितवत् ] जिसने सम्पा दन किया हो वह (हे ४, २६५३ विसे ६३४) । संपाइम वि [ संपातिम] १ भ्रमर, कीट, पतंग यादि उड़नेवाला जंतु घाना चि २४ सुपा ४९१६ श्रोध ३४८ ) । २ जानेवाला, गति-कर्ता; 'तिरिच्छसंपाइमा वा तसा पाणा' (प्राचा २, १, ३, ६, २, ३, १, 88)1~ संपाइय वि [ संपातित] १ प्रागत, श्राया हुआ । २ मिलित, मिला हुआ (भवि ) 1संपाइय वि [संपादित ] साधित, सिद्ध किया हुआ; 'संपाइयइफलि' (सण) । संपाऊण सक [ संप्र + आप ] अच्छी तरह प्राप्त करना संपाउइ, संपाउांति (उत्त २६, ५६ पि५०४) । भवि संपाउरिणस्सामो ( गाया १, १८ - पत्र २४९ ) । प्रयो. 'जेप्पारणं परं चैव सिद्धि संपाउणेज्जासि' (उत्त ११,३२) । संपाओ घ[संप्रातर]१ जयप्रभात होय तब प्रातः काल । २ अति प्रभात, बड़ी सुबह । ३ हर प्रभात (ठा ३, १ टी -पत्र ११८ ) 1 संपागड[संप्रकट] प्रकट, खुला संदा १ - पत्र २०३; गडपडिसेवी' (ठा ४, उब)। संपाड सक [ सं + पादय ] १ सिद्ध करना, निष्पन्न करना । २ प्रार्थित वस्तु देना, For Personal & Private Use Only संपलत्त - संपायण दान करना । ४ प्राप्त करना, 'देइ सो जम्मा त्वामराइ (महा), 'संपाडेमि भयवओ मारणं ति' (स ६८४), (६) संपाडेवस्य (स संपाडग वि [ संपादक ] कर्ता, निर्माता; 'ता २१४) । को अन्नो तस्सुन्नईए संपाडगो होज्जा' (उप १४२ टी) । संपादण न [संपादन] १ निष्पादन (स ७४८) २करण निर्माण (३०) 'परत्थ संपारिक सिप्रत्तं ' ( सा ११) । संपाअि वि[संपादन] १ सिद्ध किया हुधा निष्यादित (२४ र २ १७० ) । २ प्राप्त किया हुआ (उप पृ १२४) ३ दत्त, श्रर्पित ( स २३५) संपात देव संपाओ (ठा १-पत्र ११७) । संपाद (शौ) देखो संपाड = सं + पादय् । [संपादि] (नाट६५) संपाद पोअ (गाट-विक्र ६० ) 1संपादइत्तअ ( शो) वि [ संपपादवितृ] संपादन कर्ता, संपादक (पि ६००) 1 संपादिअवद (शौ) देखो संपाइअव ( पि ५८६ ) 1 संपाय पुं [ संपात ] सम्यकपतन; 'सलिलसंपादकीय (सुर १ ११६) २ संवन्ध संयोग सारीरमाणा यकलियति' (सुर ४, ७५३ प का झूठ, निरर्थक असत्य भाषण ( परह १, ५ -- पत्र २ ) । संग, संगति (श्रा ६ पंचा १, ४१ ) । ५ आगमन (पंचा ७, ७२ ) । ६ चलन, हिलन ( उत्त १५, २३ सुख १८, २३) - संपाय देखो संपाओ (राज) संपायग वि[संपादक] संपादन कर्ता (उप पृ २६; महा चेइय ९०५) संपाय[संप्रापक]] प्राप्त गाला 'रिसिगुणसंपायगो होइ' (चेइय ९०५ ) । २ प्राप्त करानेवाला (२९)संपायण देखो संपाडण (सुर ४, ७३ सुपा २८ ३४३ चेइय ७६७) www.jainelibrary.org

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