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संपणुण्ण-संपलग्ग
पाइअसद्दमहण्णवो संपणुण्ण वि [संप्रनुन्न प्रेरित, उत्तेजितः संपदाय पुं[संप्रदाय गुरु-परंरागत उपदेश, स्थान (पव १)। ३ प्राप्ति; 'बोहीलाभो 'अक्खंडचंडानिलसंपणुएणविलोलजालासयसं- आम्नाय (संबोध ५३, धर्मसं १२३७)। जिरणधम्मसंपया' (चेइय ६३१, पव ६२)। कुलम्मि' (उपपं ४५)
संपदावण न [संप्रदापन, संप्रदान कारक- ६२)। ४ एक वरिणक-स्त्री का नाम (उप संपणुल्ल । सक [संघ + नुद्] प्रेरणा
विशेष, 'ततिया करणम्मि कता चउत्थी ५६७ टी)। संपणोल्ल, करना। संकृ. संपणुल्लिया, संपदावणे' (ठा ८-पत्र ४२७)
संपयाण न [संप्रदान] १ सम्यक् प्रदान, संपणोल्लिया (दस ५, १, ३०)। संपदि देखो संपइ% संप्रति (प्राकृ१२)। अच्छी तरह देना, समर्पण (पाचा २,१५, संपण्ण देखो संपन्न (णाया १,१-पत्र ६ संपदि देखो संपत्ति = संपत्ति (संक्षिपि ५ गा ६८ सुपा २६८) । २ कारक-विशेष,
चतुर्थी-कारक, जिसको दान दिया जाय वह हेका ३३१; नाट-मृच्छ ६)।
२०४)।
संपधार देखो संपहार = संप्र + धारय् । (दिसे २०६९) संपण्णा स्त्री [दे] घेबर या घीवर (मिष्टान्नसंपधारेदि (शौ) (नाट-मृच्छ २१६)।
संपयावण देखो संपदावणः चउत्यो संपयावणे' विशेष) बनाने का आटा, गेहूँ का वह आटा कर्म. संपधारीअदु (शौ) (पि ५४३)
(अणु १३३) जिसका घृतपूर बनता है (दे ८, ८)
संपधारणा स्त्री सिंप्रधारणा व्यवहार-विशेष, संपराइगर वि [सापरायिक संपरायसंपत्त वि[संप्राप्त] १ सम्यक् प्राप्त (गाया | धारणा व्यवहार (वय १०)।
संपराइव।संबन्धी, संपराय में उत्पन्न (ठा १, १; उवा; विपा १, १; महा; जी ५०)। संपधारिय वि संप्रधारित निश्रित, निर्णीत
२, १-पत्र ३६ सूप १,८,८ भगः २ समागत, प्राया हुआ (सुपा ४१६)
श्रावक २२६)। संपत्त पुंन [संपात्र] सुन्दर पात्र, सुपात्र संपधूमिय वि [संप्रधूमित] धूप-वासित, .
संपराय पुं[संपराय] १ संसार, जगत् (सूम
१,५, २, २३, दस २, ५)। २ क्रोध आदि (सुपा ४१६) धूप दिया हुआ (कस: कप्पा आचा २, २,
कषाय (ठा २, १-पत्र ३६)। ३ बादर संपत्ति स्त्री [संपत्ति] १ समृद्धि, वैभव, | संपन्न वि[संपन्न] १ संपत्ति-युक्त (भग;
कषाय, स्थूल कषाय (सूम १, ८, ८)। ४ संपदा (पान; प्रासू ६६, १२८)। २ संसिद्धि । महा; कप्प)। २ संसिद्ध (विपा १,२-पत्र
कषाय का उदय (प्रौप)। ५ युद्ध, संग्राम, ३ पूति; 'तव दोहलस्स संपत्ती भविस्सई' २६)
लड़ाई (गाया १, ६-पत्र १५७; कुप्र (विपा १, २-पत्र २७)। संपप्प देखो संपाव ।
४०१ विक्र ८८; दस २, ५)। संपत्ति स्त्री संप्राप्ति] लाभ, प्राप्ति (चेश्य संपबुज्झ अक [संघ + बुध् ] सत्य ज्ञान |
संपरिकित्ति पुं[संपरिकीति] राक्षस वंश ८६४; सुपा २१०)। को प्राप्त करना । संपबुज्झंति (पंचा ७, २३)
का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, संपत्तिआ स्त्री [दे] १ बाला, कुमारी लड़की
२६०)। संपमज सक [संप्र + मृज् ] मार्जन करना, (दे८, १८ वज्जा ११६)। पिप्पली-पत्र,
संपरिक्ख सक [संपरि + ईक्ष] सम्यक् झाड़ना, साफ-सूफ करना । संपमज्जेइ (प्रौप पीपल की पत्ती (दे ८, १८)
परीक्षा करना । संकृ. संपरिक्खाए (संबोध ४४) । संकृ. संपमजेत्ता, संपमज्जिय संपत्थिअ न दे] शीघ्र, जलदी (दे ८, ११)।
२१)। (ौप; प्राचा २, १, ४, ५) ।
संपरिक्खित्त । वि [संपरिक्षिप्त] वेष्टित संपत्थिय वि [संप्रस्थित] १ जिसने संपमार सक [संप्र + मारय ] मूच्छित संपरिखित्त । (भगः पउम, ३, २२ णाया संपत्थित प्रयाण किया हो वह, प्रयात,
करना । संपमारए (पाचा १, १, २, ३) १, १ टी-पत्र ४)। प्रस्थित (अंत २१, उप ६६६; सुपा १०७;
संपय वि [सांप्रत] विद्यमान, वर्तमानः संपरिफुड वि [संपरिस्फुट] सुस्पष्ट, अति ६५१; णाया १, २-पत्र ३२) । उपस्थितः
'पाएण संपए चिय कालम्मि न याइदीहका- | व्यक्त (पउम ७८, १६)। 'गहियाउहेहि जइवि हु रक्खिजइ पंजरोवरच्छो लण्णा ' (विसे ५१६)।
संपरिवुड वि [संपरिवृत] १ सम्यक् परि(? रुद्धो)वि। तहवि हु मरइ निरुत्तं पुरिसो
संपयं देखो संपदं (पाना महा; सुपा ५६८)।- वृत, परिवार-युक्त (विपा १, १-पत्र १; संपत्थिए काले ॥"
संपयट्ट अक [संप्र + वृत् ] सम्यक् प्रवृत्ति उवाः प्रौप) । २ वेटित (सूत्र २, २, ५५) । (पउम ११, ६१)
करना । संपयट्टेज्जा (धर्मसं ९३१) । वकृ. संपरी सक [संपरी + इ] पर्यटन करना, संपदं प [सांप्रतम् ] १ युक्त, उचित (प्राकृ संपयझंत (पंचा ८, १४)।
भ्रमण करना । संपरोइ (विसे १२७७)। १२) । २ अधुना, अब (अभि ५६) 10
संपयट्ट वि [संप्रवृत्त] सम्यक् प्रवृत्त (सुर संपल (अप) अक[सं + पत् ]पा गिरना। संपदत्त वि [संप्रदत्त] दिया हुआ, अर्पित ४,७६) ।
संपलइ (पिंग)। (महा; प्राप)।
संपया स्त्री [संपद] १ समृद्धि, संपत्ति, संपलग्ग वि [संप्रलग्न] १ संयुक्त, मिला संपदाण देखो संपयाण (णाया १,८-पत्र लक्ष्मी, विभव (उवाः कुमा; सुर ३, ६८ हुमा । २ जो लड़ाई के लिए भिड़ गया हो १५०; प्राचा २, १५, ५).
महा प्रासू ९६)। २ वाक्यों का विश्राम- वह (णाया १,१८-पत्र २३९)।
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