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संघट्टिय-संचर
पाइअसहमहण्णवो
संघष्ट्रिय वि [संघट्टित] १ स्ट, छुपा संघाड । [दे. संघाट ] १ युग्म, न [करण] प्रदेशों को परस्पर संहत रूप हुप्रा (गाया १, ५-पत्र ११२, पडि)।
संघाडग) युगल (राय ६६; धर्मसं १०६५ से रखना (विसे ३३०८)। २ संघषित, संमदित (भग १६, ३--पत्र उप पृ ३६७; सुपा ६०२, ६२३; मोघ
संघार पुं[संहार] १ बहु-जंतु-क्षय, प्रलय ७६६, ७६७)। ४११; उप २७५) । २ प्रकार, भेदः 'संघाडो
(तंदु ४५)। २ नाश (पउम ११८,८० संघड अक [सं + घट ] १ प्रयत्न करना । त्ति वा लय ति वा पगारो त्ति वा एगट्ठा'
उप १३६ टी)। ३ संक्षेप । ४ विसर्जन । २ संबद्ध होना, युक्त होना । कृ. संघ डयव्य (निचू) । ३ ज्ञाताधर्म-कथा नामक जैन अंग
५ नरक-विशेष । ६ भैरव-विशेष (हे १, (ठा --पत्र ४४१) । प्रयो. संघडावेइ ग्रन्थ का दूसरा अध्ययन (सम ३६)।
२६४; षड्)। (महा)। संघाडग देखो सिंघाडग (कप्प)
संघार (अप) देखो संहर = सं+ हु । संकृ. संघड वि [संघट] निरन्तर; 'संघडदंसियो' संघाडगा स्त्री संघटना] १ संबन्ध । २ संघारि (पिंग)। (प्राचा १, ४, ४, ४)।
रचनाः 'अक्खरगुरणमतिसंघाय (? ड)गाए' संघारिय वि सिंहारित मारित, व्यापादित संघडण देखो संघयण (चंड--पृ ४८; भवि)। (सूअनि २०)।
(भवि)। संघडणा स्त्री [संघटना] रचना, निर्माण संघाडी स्त्री [दे. संघाटा] १ युग्म, युगल संघासय पुंदे] स्पर्धा, बराबरी (दे, (समु १५८)।
(दे८, ७, प्राकृ ३८ गा ४१६)। २ १३)। संघडिअ वि सिंघटित १ संबद्ध, युक्त
उत्तरीय वस्त्र-विशेष (टा ४,१-पत्र १८६ संघिअ देखो संधि-संहित (प्राप) (से ४, २४) । २ गठित, जटित (प्रासू २)। पाया १, १६-पत्र २०४; प्रोध ६७७; | संघिल्ल वि[संघवत् ] संघ-युक्त, समुदित संघदि (शौ) स्त्री [संहति] समूह (पि विसे २३२६ पत्र ६२, कस)।
(राज)। २६७)।
संघाणय [शिङ्कानक] श्लेष्मा, नाक में संघोडी स्त्री [दे] व्यतिकर, संबन्ध (दे ८, संघयण न [दे. संहनन] १ शरीर, काय से बहता द्रव पदार्थ (तंदु १३)।
८)। (दे ८, १४. पाप्र)। २ अस्थि-रचना, शरीर, संघातिम देखो संघाइम (गाया १, ३-पत्र संच (अप) देखो संचिग । संचइ (भवि)। के हाड़ों की रचना, शरीर का बांध (भगः | १७६; पएह २, ५-पत्र १५०)। संच (अप) पू[संचय] परिचय (भवि)। सम १४६; १५५; उवः पीप; उवा कम्म संघाय सक[सं+घातय ] १ संहत करना, संचइ । वि [संचयिन्] संचयवाला, १, ३८ षड्)। ३ कर्म-विशेष, अस्थि- | इकट्ठा करना, मिलाना। २ हिंसा करना, संचइग) संग्रही, संग्रह करनेवाला, (दसनि रचना का कारण-भूत कर्म (सम ६७ कम्म मारना । संघायइ, संघाएइ (कम्म १, ३६, १०, १० पव ७३ टी)। १, २४)।
भग ५, ६-पत्र २२६) । कृ. संघायणिज संचइय वि [संचयित संचय-युक्त (राज) संघयणि वि [ दे. संहननिन् ] संहनन- । (उत्त २६, ५६)
संचकार पुं[दे] अवकाश, जगह वाला (सम १५५; प्रग ८ टी)।
संघाय पुं[संघात] १ संहति, संहत रूप से प्रविगरिणय कुलकलंक इय संघरिस देखो संघंस (उप २६४ टी)। अवस्थान, निबिड़ता (भगः दस ४, १)। २
कुहियकरंककारणे कोस। संघरिसिद (शौ) वि[संघषित] संघर्ष-युक्त; समूह, जत्था (पाय: गउड; औप; महा) । वियरसि संचकारं तं घिसा हुआ (मा ३७)। ३ संहनन-विशेष, वज्रऋषभ-नाराच नामक
नारयतिरियदुक्वाण ॥" संघस सक [सं+घृष्] संघर्ष करना। शरीर-बन्धः 'संघाएणं संठाणेणं' (प्रोप)।
(उप ७२८ टो)। संघसिज (प्राचा २, १, ७, १)।
४ श्रुतज्ञान का एक भेद (कम्म १,७)। संचत्त वि [संत्यक्त] परित्यक्त (अज्झ संघस्सिद देखो संघरिसिद (नाट-मालवि ५ संकोच, सकुचाना (आचा) । ६ न. १७८)। २६)।
नामकर्म-विशेष, जिस कर्म के उदय से शरीर. संचय पुं[संचय १ संग्रह (पएह १, ५संघाइअ वि [संघातित] १ संघात रूप से योग्य पुद्गल पूर्व-गृहीत पुद्गलों पर व्यवस्थित
- पत्र ६२, गउड, महा)। २ समूह (कप्प; निष्पन्न (से १३, ६१)। २ जोड़ा हुमा रूप से स्थापित होते हैं (कम्म १, ३१
गउड) । ३ संकलन, जोड़ (वय १)।(प्राव) । ३ इकट्ठा किया हुआ (पडि)। ३६)4 °समास पुं[समास] श्रुतज्ञान
"मास पुं [ भास] प्रायश्चित्त-संबन्धो माससंघाइम वि [संघातम] ऊपर देखो (प्रौप; का एक भेद (कम्म १,७)।
विशेष (राज)। प्राचा २, १२; १पि ६०२ मा १२ संघायण न [संघातन] १ विनाश, हिंसा संचर सक [ सं + चर1 १ चलना, गति दसनि २, १७) (स १७०)। २ देखो 'संघाय' का छठवाँ
करना । २ सम्यग् गति करना, अच्छी तरह संघाड देखो संघाय = संघात (मोघभा १०२ अर्थ (कम्म १, २४)।
चलना। ३ धीरे धीरे चलना । संवरइ राज)
| संघायणा स्त्री [संघातना] संहति । करण | (गउड ४२६ भवि) । वकृ. संचरंत (से २,
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