Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 899
________________ सइलासअ-संकड पाइअसद्दमण्णवो ८२६ सइलासपुं [दे] मयुर, मोर (दे८, सउण देखो स-उण = स-गुण । विशेष । ४ वि. सुधा-संबन्धी, अमृत का सइलासिअ २० षड्)। सउणि पुं [शकुनि] १ पक्षी, पखेरू, पाँखी (चंड हे १, १६२) । सइव [सचिव] १ प्रधान, मन्त्री, अमात्य (ौप; हेका १०५; संबोध १७)। २ पक्षि-सएजिअ देखो सइजिअ (कुप्र १९३) । (पाम)। २ सहाय, मदद-कर्ता । ३ काला विशेष, चील पक्षी (पान)। ३ ज्योतिष सओस देखो स-ओस = स-तोष- स-दोष । धतूरा (प्राकृ ११) प्रसिद्ध एक स्थिर करण जो कृष्ण चतुर्दशी संप्र[शम् ] सुख, शर्म (स ६११; सुर सइसिलिंब [दे] स्कन्द, कार्तिकेय (द ८, की रात में सदा अवस्थित रहता है (विसे -१६, ४२: सुपा ४१६)।२०)। ३३५०)। ४ नपुंसक-विशेष, चटक की तरह सइसुह वि [दे.स्मृतिसुख, देखो सइदसण बारबार मैथुन-प्रसक्त क्लीब (पव १०६; पुप्फ | संप्र[सम् ] इन प्रथों का सूचक मव्यय(दे ८, १६ पास)। १२७) । ५ दुर्योधन का मामा (णाया १, १ प्रकर्ष । अतिशय (धर्मसं ८६७) । २ सई स्त्री [शची] इन्द्राणी, शक्रेन्द्र की एक १६-पत्र २:८; सुपा २६०)। संगति । ३ सुन्दरता, शोभनता । ४ समुच्चय । सउणिअ देखो साउणिअ (राज) ५ योग्यता, व्याजबीपन (षड् )। पटरानी (ठा ८-पत्र ४२६; गाया २-- पत्र २५३; पामः सुपा ६८ ६२२, कुप्र सउणिआ। स्त्री शकुनिका, नी] १ संक सक [शक] १ संशय करना, संदेह सउणिगा पक्षिरणी, पक्षी की मादा (गा २३)। स पुं [श] इन्द्र (कुमा)। देखो करना । २ अक. भय करना, डरना । संकइ, सउणी ) १०;ाव १)। २ पक्षि-विशेष सची। संकए, संकंतिः संकसि, संकसे, संकह, संकत्य; को मादाः ‘सउणी जाया तुम (ती ८) सई स्त्री [सती] पतिव्रता स्त्री (कुप्रा २३; संकामि, संकामो, संकामु, संकाम (संक्षि ३०);. सउण्ण देखो स-उण्ण = सपुण्य । सिरि १४३) 'असंकिमाई संकंति' (सूम १, १, २, १०; सउत्ती स्त्री [सपत्नी] एक पति की दूसरी ११), "जं सम्ममुजमंतारण पाणि (?णी) एवं सई श्री [शती] सौ, १००; 'पंचराई स्त्री, समान पतिवाली स्त्री, सौत, सौतिन संकए हु विही" (सिरि ६६६) । कर्म. (धर्मवि १४)। (सुपा ६८)। संकिज्जइ (मा ५०६)। वकृ. संकंत, संकसईणा स्त्री [दे] अन्न-विशेष, तुवरी, रहर सउन्न देखो स-उन्न । माण (पवः रंभा ३३)। कृ. संकणिज्ज (ठा ५,३-पत्र ३४३)। सउम पुं[समन्] १ गृह, घर । २ जल, | (उप ७२८ टी) स पानी (प्राकृ २८)। सउँ (अप ) देखो सहु (सरणः भवि) । संकंत वि [संक्रान्त] १ प्रतिबिम्बित (गा सउमार वि [सुकुमार] कोमल (से १०, सउत पुं [शकुन्त १ पक्षी, पाखी (पाप्र)। १; से १, ५७)। २ प्रविष्ट, घुसा हुमा (ठा ३४, षड् )। ३, ३ कप्पा महा)। ३ प्राप्त । ४ संक्रमण२ पक्षि-विशेष, भास-पक्षी (स ४३६)। सउर पुं [सौर] १ ग्रह-विशेष, शनैश्चर । २ कर्ता । ५ संक्रांति-युक्त। ६ पिता प्रादि से सउंतला स्त्री [शकुन्तला] विश्वामित्र ऋषि यम, जमराज । ३ वृक्ष-विशेष, उदुम्बर का दाय रूप से प्राप्त स्त्री का धन (प्राप्र) की पुत्री और राजा दुष्यंत की गन्धर्व-विवा- पेड़ । ४ वि. सूर्य का उपासक । ५ सूर्यहिता पत्नी (हे ४, २६०)। संबन्धी (चंड हे १, १६२) । संकति स्त्री [संक्रान्ति] १ संक्रमण, प्रवेश (पव १५५; अज्झ १५३)। २ सूर्य मादि सउंदला (शौ) ऊपर देखो (अभि २६; ३०; | सउरि ( [शौरि विष्णु, श्रीकृष्ण (पान) का एक राशि से दूसरी राशि में जाना; पि २७५)। सउरिस देखो स-उरिस = सत्पुरुष । 'प्रारभ ककसंकतिदिवसभो दिवसनाहुब' सउण वि [दे] रुढ, प्रसिद्ध (दे ८, ३)।- सउल शकुल] मत्स्य, मछली; 'सउला (धर्मवि ६६) सउण पुंन [शकुन] १ शुभाशुभ-सूचक बाहु- सहरा मीणा तिमी झसा परिणमिसा मच्छा' संकंदण पुं [संक्रन्दन] इन्द्र, देवाधीश स्पन्दन, काक-दर्शन आदि निमित्त, सगुन (पाम) (उप ५३० टी. उपपं १) 'सुहजोगाई सउणो कंदिप्रसदाई इप्ररो उ' सउलिअ वि [दे] प्रेरित (दे ८, १२)। संकट्टिअ वि [संकर्तित] काटा हुमाः 'धन्न(धर्म २; सुपा १८५; महा) ।२ पुं. पक्षी, सउलिआ । स्त्री [दे. शकुनिका, 'नी] संकट्टितमाणा' (ठा ४, ४–पत्र २७६) ।। पाँखी (पात्र; गा २२०; २८५ करु ३४; सउली १ पक्षि-विशेष की मादा, चील सट्ठि ६ टो)। ३ पक्षि-विशेष (पएह १, पक्षी की मादा (ती ८, अणु १४१; दे ८, संकट्ठ वि [संकष्ट] व्याप्त (राज)। १-पत्र ८)। "विउ वि [विद्] सगुन ८)।२ एक महौषधि (ती ५) विहार संकट्ठ देखो संकिट (राज)। का जानकार (सुपा २९७)/रुअन [रुत] पु[विहार] गुजरात के भरौच शहर का संकड वि [संकट] १ संकीर्ण, कम चौड़ा, १ पक्षी की मावाज । २ कला-विशेष, सगुन एक प्राचीन जैन मन्दिर (तो ८)। अल्प अवकाशवाला (स ३६२: सुपा ४१६; का परिज्ञान (णाया १,१-पत्र ३८ जं सउह पुं[सौध] १ राज-महल, राज-प्रासाद उप ८३३ टी)। २ विषम, गहन (पिंड २ टी-पत्र १३७) (कुमा)। २ न. रूपा, चाँदी । ३ पुं. पाषाण- ६३४) । ३ न. दुःख Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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