Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas
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८२८
पाइअसहमहण्णवो
सअ-सइलभ
'रय वि [रत] कामो (से १, २७) सिरिय (पि ९८; अभि १५६; भगः सम सई देखो सई = सती (सुपा ३०१)। रहस वि [रभस] वेग-युक्त, उतावला १३७ णाया १,६-पत्र १५७) सइअ वि [शतिक] सौ का परिमाणवाला (गा ३५४; सुपा ६३२, कप्पू) राग वि सअ सक [स्वद्] १ प्रीति करना। २ चखना, (गाया १,१-पत्र ३७)। देखो सग ।। [ राग राग-सहित (ठा २, १-पत्र ५८)M स्वाद लेना। सइ (प्राकृ ७५, धात्वा | सइअ वि [शयित] सुप्त, सोया हुआ (दे 'रागसंजत, रागसंजय वि [ रागसंयत] १५४)
७, २८; गा २५४७ पउम १०१, ६०) वह साधु जिसका राग क्षीण न हुआ हो | सअ न [ सदस ] सभा (षड् )।- सइएल्लय देखो स= स्व'ताव य भागमो (पएण १७-पत्र ४६४ उवा)। "रूव | सअअ न [दे] १ शिला, पत्थर का तख्ता। परिव्वायत्रो जक्खदेउलामो सइएल्लए दालिद्दवि [रूप] समान रूपवाला (पउम ८, २ वि. घृणित (दे ८, ४६)।
पुरिसे घेतूण' (महा)। ६)। लूण वि [°लवण] लावण्य-युक्त | सअक्खगत्त पुं[दे] कितव, जुपारी (दे८, सई देखो सइ = सकृत् (माचा)। (सुपा २६३), लोग वि ['लोक] समान, २१)।
सई देखो सयं = स्वयम् (ठा २, ३-पत्र सदृश (सट्ठि २१ टो) लोण देखो 'लग सअजिअ पुंस्त्री [दे] प्रातिवेश्मिक, । ६३ हे ४, ३३६; ४०२; भवि)। (गा ३१६; हे ४, ४४४; कुमा) श्री. सअज्झि पड़ोसी (गा ३३५)। स्त्री. आ| सइग वि [शतिक] सौ (रुपया प्रादि) की 'लोणी (हे ४, ४२०)। वक्ख देखो पक्ख (गा ३६, ३६ अ); 'समज्झिनं संठवंतीए कीमत का (दसनि ३, १३)। (गउड; भवि)। वण वि [ व्रण] घाववाला, (गा ३६; पिंड ३४२)। देखो सइज्झिअ। सइज्म पूंनी [दे] प्रातिवेश्मिक, पड़ोसी वरण-युक्त (सुपा २८१)। वय वि सअडिआ देखो सगडिआ (पि २०७)।- सइज्झि (दे ८, १०)। श्री. आ (सुपा [वयस ] समान उम्रवाला (दे८,२२) सअढ पुं[दे] लम्बा केश (दे ८, ११) २७८ पिंड ३४२ टी; वजा १४). 'वय वि [ व्रत] व्रती (सुपा ४५१), 'वाय सअढ पुं [शकट] १ दैत्य-विशेष (प्राप्र; सइज्झिअ न [दे] प्रातिवेश्य, पड़ोसिपन वि [ पाद ] सवा (स ४४१)। वाय संक्षि ७ हे १, १९६)। २ पुंन. यान-विशेष, । (दे ८, १० टी)। वि [वाद] वाद-सहित (सूम २, ७, ५) गाड़ी (हे १, १७७; १८०) रि j
सइण्ण न [सैन्य सेना, लश्कर ( षड्)।'वास वि ["वास] समान वासवाला, एक [रि] नरसिंह, श्रीकृष्ण (कुमा)। देखो
सइत्तए देखो सय = शी। देश का रहनेवाला (प्रासू ७६) विज वि सगड ।
सइदंसण वि [दे. स्मृतिदर्शन] मनो-दृष्ट, [विद्य] विद्यावान्, विद्वान (उप २१५) सअर देखो स-अर=स-कर, स-गर । 'व्वण देखो 'वण (गउडः श्रा १२) सअर देखो सगर (से २, २९)।
चित्त में प्रवलोकित, विचार में प्रतिभासित 'व्बवेक्ख वि [ व्यपेक्ष] दूसरे की परवाह सआ म [सदा] १ हमेशा, निरन्तर (प्रातः
(दे८, १९, पाम)। रखनेवाला, सापेक्ष (धर्मसं ११९७), ब्वाव हे १, ७२; कुमाः प्रासू ४६)
सइदिव वि [वे. स्मृतिदृष्ट] ऊपर देखो (दे
चार पुं वि [व्याप] व्याप्ति-युक्त, व्यापक (भग [चार] निरन्तर गति (रयण १५) ।
८, १९)
| सइन्न देखो सइण्ण (हे १. १५१; कुमा)। १, ६-पत्र ७७) व्विवर वि ["विवर] सआ स्त्री [स्रज् ] माला ( षड् )
सइम वि [शततम] सौवा, १००वा (णाया विवरण-युक्त, सविस्तर (सुपा ३६४) सइ देखो सआ = सदा (पान; हे १, ७२, संक वि [शङ्क] शंका-युक्त (दे २, १०६ | कुमा)
१,१६-पत्र २१४)।
सइर न [स्वैर] १ स्वेच्छा, स्वच्छन्दता (हे सुर १६, ५५; कुप्र ४४५; गउड) संकि | सइम [ सकृत् ] एक बार, एक दफा (हे। वि ['शङ्कित] वही (सुर ८, ४०)। सत्ता
१, १५१ प्राप्रा पाया १, १५-पत्र १, १२८; सम ३५; सुर ८, २४४)।
२३६)। २ वि. मन्द, प्रलस (पाप)। ३ स्त्री ["सत्त्वा] सगर्भा, गर्भिणी स्त्री (उत्त सइ स्त्री [स्मृति] स्मरण, चिन्तन, याद (श्रा | स्वैरी, स्वच्छन्दी (पान; प्राप्र)। २१, ३)। सिरिय, सिरीय वि [ श्रीक] १६) काल पुं [काल] भिक्षा मिलने का
सइरवसह पुं [दे. स्वैरवृषभ] स्वच्छन्दी श्री-युक्त, शोभा-युक्त (पि ६८; णाया १, १, समय (दस ५, २, ६)
साँढ़, धर्म के लिए छोड़ा जाता बैल (दे २, राय)। "सिह वि [स्पृह] स्पृहावाला सइ देखो स= स्व; 'सइकारियजिणपडिमाए' | २५ ८, २१)। (कुमा)। "सिह वि ["शिख] शिखा-युक्त (सुपा ५१०; भवि)।
सइरि वि [स्वैरिन्] स्वच्छन्दी, स्वेच्छाचारी (राज)। सूग वि [शूक] दयालु (उव) सइ देखो सय = शत; 'प्रस्सोयव्वं सोचावि | (गच्छ १, ३८)। 'सेस वि [ शेष] १ सावशेष, बाकी रहा | फुट्टए जं न सइखंड' (सुर १४, २)। कोडि | सइरिणी श्री [स्वैरिणी] व्यभिचारिणी श्री, हुमा (दे ८,५६ गउड)। २ शेषनाग-सहित स्त्री [कोटि] एक सौ करोड़, एक मज--| कुलटा (पउम ५, १०५) (गउड १५) 'सोग, सोगिल्ल वि [शोक] | अरब ( षड्)
सइल देखो सेल (हे ४, ३२६)। दिलगीर, शोक-युक्त (पउम ६३, ४ सुर ६, सइ देखो सई = स्वयम् (काला हे ४, ३६५ सइलंभ वि [दे. स्मृतिलम्भ] देखो सइ१२४), 'स्सिरिअ, 'स्सिरीअ देखो। ४३०)।
। दसण (दे ८, १६; पाम)।
Fathod
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