________________
८३०
'धन्नावि ते धन्ना
पुरिया वृत्ता । जे विसमसंकडेसुवि पडियावि चयंति णो धम्मं ॥'
( रयण ७३) ।
संकडि वि [संकट ] संकीणं किया हुआ ( कुप्र ३६० ) 1
[] निदे ८.१५; सुर ४, १४३) I संकाय [कपित] कति (राज) संक न [शन] शंका संदेह (दस ६, ५६) 1
२
संकष्प [संकल्प ] १ श्रध्यवसाय, मनःपरिणाम, विचार (उदा कप्पा १०३५) । सदाचार (१०१५) संगत प्राचार, उप । अभिलाषा (जोणि [ योनि) कामदेव, कंदर्प ( पाच ) 1 संकम सक [ सं + क्रम ] १ प्रवेश करना । २ गति करना, जाना । संकमइ, संकमंति ( पिंड १०८ सून २, ४, १० ) । वकृ. संकममाण (सम ३९; सुज्ज २, १ रंभा ) । हे संकमित (स) 1
कम [संक्रम] १ सेतू, पूल, जल पर से उतरने के लिए कामदा हुआ मार्ग (से ६, ६५० दस ५, १, ४, परह १, १ ) । २ संचारः गमन, गतिः 'पारलाई संमट्टाए' (१४२, १५० श्रावक २२३) । ३ जीव जिस कर्म- प्रकृति को बांधता हो उसी रूप से अन्य प्रकृति के दल को प्रयत्न द्वारा परिरणमानाः बँधी जाती कर्म प्रकृति में अन्य कर्म- प्रकृति के दल को डाल कर उसे बँधी जाती कर्म प्रकृति के रूप से परिणत करना (ठा ४, २ --पत्र २२० ) संकमग वि [ संक्रामक ] संक्रमण - कर्ता ( धर्मं सं १३३०) । - संक्रमण न [ संक्रमण ] १ प्रवेश 'नवरं मुत्तूण घरं घरसंकमणं कथं तेहि' (संबोध १४) । २ संचार गमन ( प्रासू १०५ ) । ३ चारित्र, संयम (५) । ४ देखो संकम का तीसरा अर्थ (पंच ३,४८ ) । ५ प्रतिबिम्बन (गउड)।
Jain Education International
पाइअसहजयो
करपुं [दे] रथ्या, मुहल्ला (दे ८, ६) संकर पुं [शङ्कर ] १ शिव, महादेव (पउम ५, १२२: कुमा; सम्मत्त ७६ ) । २ वि. सुख करनेवाला ( पउम ५, १२२ दे १, १७७) ।
M
संकर
[संकर ]
१ मिलावट, मिश्रण ( पराह १, ५ - पत्र ६२ ) । २ न्यायशास्त्रप्रसिद्ध एक दोष (उत्तर १०) ३ शुभाशुभरूप मिश्र भाव (सिरि ५०६ ) । ४ अशुचि पुंज, कचरे का ढेर (उत्त १२, ६) । संकरण न [संकरण] घच्छी कृति (संबो €) 1~
संकाम देखो संकम सं+ क्रम्। संकामइ (सुज्ज २, १ पंच ५, १४७) संकाम सक [ सं + क्रमय ] संक्रम करना, बंधी जाती कर्म-प्रकृति में अन्य प्रकृति के कर्म दलों को प्रक्षिप्त कर उस रूप से परिणत करना । संकामेति (भग) । भूका संकामिसु (भग) । भवि. संकामे संति (भग) । कवकृ. संमिमाण (ठा ३१ - १२० संक्रामण न [ संक्रमण ] १ संक्रम-करण ( भग ) । २ प्रवेश कराना ( कुप्र १४० ) । ३ एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाना ( पंचा ७, २०) |
जोड़ना । संकलेइ ( उव) । संकलन [] १ सांकल निगह २ लोहे का बना हुआ पाद-बन्धन, बेड़ी ( विपा १, ६ – पत्र ६६, धर्मवि १३६० सम्मत्त १६०; हे १, १८६ ) । ३ सिकड़ी, मानुष-विशेष (तिरि ११) संकलण न [ संकलन ] मिश्रता, मिलावट ( माल ८७) ।
संकल सक [ सं + कलय ] संकलन करना, संक्रामणा स्त्री [संक्रमणा] संक्रमण, पैठ (पिंड २८) | संक्रामणी श्री [ संक्रमण ]शेष जिससे एक से दूसरे में प्रवेश किया जा सके वह विद्या (गाया १, १६ - पत्र २१३) । संकामिय वि [ संक्रमित ] एक स्थान से दूसरे स्थान में नीत (राज) । संकार देखो सक्कार = संस्कार ( धर्मंसं ३५४) । संकास वि[संकाश] १ समान, तुल्य, सरीखा ( पात्र खाया १, ५; उत ३४, ४ ५ ६ कप्पः पंच ३, ४०; धर्मवि १४९ ) । २ पुं. एक श्रावक का नाम (उप ४०३ ) । संकासिया स्त्री [संकाशिका ] एक जैन मुनि
शाखा (कप्प ) 1
संकरिण [संकर्षण] भारतका भाव नववा बलदेव (राम १५४) ।
संकरी श्री [शङ्करी]] १ विद्या-विशेष (पम ७, १४२; महा) । २ देवी विशेष । ३ सुख करनेवाली
संकला स्त्री [शृङ्खल] देखो संकल = शृङ्खल ( स १७१३ सुना २६१; प्राप)
संकलिअ वि [संकलित ] १ एकत्र किया
(३४१२ २ युक्त: 'त्य अभियो पुरा कार्यकाल कल (१०) ३ योजित, जोड़ा
(सिर १३४०) ४ संगृहीत (उप) ५ न संकलन कुल जोड़ (वय १) - संकलिआ स्त्री [ संकलिका ] १ परंपरा (पिंड । ( २३६) २ संकलन २ संकलन । ३ सूत्रकृतांग
सूत्र का पनरहवाँ अध्ययन (राज) । संकलिआ । स्त्री [शृङ्खलिका, 'ली] सांकल, संकली · सिकड़ी, जंजीर, निगड़ (सून १, ५, २, २०; प्रामा) । ~
संकडिय - संकि
संा श्री [कथा] संभाषण, वार्तालाप
(पउन ७, १५८ १०६, ६ सुर ३, १२६; उप पृ ३७८ पिंड १६४) ।
संका स्त्री [शङ्का] १ संशय, संदेह (पडि ) । २ भय, डर (कुमा) [व] शंकावाला, शंकयुक्त (गड) I
For Personal & Private Use Only
=
संकि वि[शङ्किन] शंका करनेवाला (म १, १, २, ६ गा ८७३; संबोध ३४;
उड
संकिअ [व] [शङ्कित] १ शंकावालायुक्त (भगः उवा) २ न. संशय, संदेह (पिंड ४९३: महा ६८ ) । ३ भय डर (गा ३३३ ) - 'संकिश्रमवि नेव दविश्रस्स (श्रा १४ ) । संकिट्ठ वि [संकृष्ट ] विलिखित, जोता हुआ, खेती किया हुआ (औपः गाया १, १ टीपत्र १) ।
www.jainelibrary.org