Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas
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८१६
पाइअसहमहण्णवो
वुमंत-बूढ
वुमंत वि [उह्यमान] पानी के वेग से खींचा वुड्ढ वि [दे] विनष्ट (राज)।
वुप्पंत वि [उप्यमान बोया जाता, 'पेच्छा जाता, बह जाता (पउम १०२, २४); 'गिरिबुढि स्त्री [वृद्धि] १ बढ़ाव, बढ़ना (प्राचा
य मंगलसएहि वप्पिणं करिसगेहि वुप्पतं' निज्झरणोदगेहि बुझंतो' (बै ८२) । देखो भग, उवा कुमाः सण) । २ अभ्युदय, उन्नति ।
(माक २५; पि ३३७) । वह = वह ।
३ समृद्धि, संपनि । ४ व्याकरण-प्रसिद्ध वुप्पाय वि [व्युत + पादय.] व्युत्पन्न वुज्मण देखो वुजण (धर्मसं १०२१)। ऐकार आदि वर्गों की एक संज्ञा (सुपा
करना, होशियार करना । वकृ. वुप्पाएमाण वुज्झमाण देखो वुमंत (पउम ८३, ४)। १०३, हे १, १३१) । ५ समूह। ६
(णाया १, १२--पत्र १७४; प्रौप)। वुन (अप) देखो वच्च = व्रज् । वुबइ (हे ४,
कलान्तर, सूद । ७ प्रोषधि-विशेष । ८ पुं. वुप्फ न [दे] शेखर, शिरः-स्थित (दे ७, २६२: कुमा)। संव. वुप्पि , वुप्पिणु
गन्धद्रव्य-विशेष (हे १, १३१)। कर वि (हे ४, ३६२)
[कर] वृद्धि-कर्ता (सुर १. १२६; द्र २४) वुम देखो वह = वह । वुट्ठ प्रक [व्युत् + स्था] उठना, खड़ा
'धम्मय वि [धर्मक] बढ़नेवाला, वर्धनहोना । बुट्ठए (पि ३३७) ।।
वुब्भमाण देखो वुज्झमाण (कुप्र २२३)।
शील (प्राचा) । म वि [ मत् ] वृद्धिवाला 'वुर देखो पुर (अच्चु १६)।वुट्ट वि [वृष्ट] १ बरसा हुमा (हे १,१३७
(विचार ४६७)। विपा २, १-पत्र १०८ कुमा १, ८५) ।
'वुरिस देखो पुरिस = पुरुष (अउम ६५, २ न. वृष्टि (दस ८, ६)।
वुणण न [दे] बुनना (सम्मत्त १७३) । वुट्टि देखो विट्टि = वृष्टि (हे १,१३७ कुमा) वुणय विद] बुना हुआ, 'अबुणिया
वुणिय वि [दे] बुना हुआ, 'अ-बुणिया वुल्लाह पुं[दे] अश्व की एक उत्तम जाति 'काय पुं[काय] बरसता जल-समूह (भग खट्टा' (कुप्र २२:)।
(सम्मत्त २१६) । १४, २-पत्र ६३४; कप्प)।
वुण्ण वि [दे] १ भीत, त्रस्त (दे ७, ६४, वुसह देखो वसभ (चारु ७ गा ४६०, ८२० वुट्टिय वि [व्युत्थित] जो उठ कर खड़ा विपा १,२--पत्र २४)। २ उद्विग्न (दे ७, नाट--मृच्छ १०)। हुमा हो वह (भवि)। ६४)।
बुसि स्त्री [वृषि मुनि का आसन । राइ, वुड देखो पुड = पुट; 'जंपइ कयंजलिवुडो' वुत्त वि [उक्त] कथित (उवा: अनु ३; महा)।
राइअ वि [राजिन] संयमी, जितेन्द्रिय, (पउम ६३, २२)
वुत्त वि [उप्त] बोया हुआ (उव)। त्यागी, साधु (निचू १६)। देखो वुसि, वुड्ढ अक [वृध् ] बढ़ना (संक्षि ३४) ।
वुत्त न [वृत्त छन्द, कविता, पद्य (पिंग)। बुसी। वुड्ढंति (भग ५, ८) वुड्ढ सक [वर्धय ] बढ़ाना। वकृ. वुड्ढेत
बुसि वि [वृषिन्] संविग्न, साधु, संयमी, देखो वट्ट = वृत्त । वुत्त देखो पुत्त (प्रयौ २२)।
मुनिः 'वुसि संविग्गो भणिो ' (निचू १६) । वुड्ढ वि [वृद्ध १ जरा अवस्थावाला, | वुत्तंत पुं[वृत्तान्त] खबर, समाचार, हकीकत,
वुसिम वि [वश्य] वश में आनेवाला, अधीन बूढ़ा (प्रौप; सुर ३, १०४; सुपा २२७; बात (स्वप्न १५३; प्राप्र हे १, १३१ स
होनेवाला; 'निस्सारियं बुसिमं मन्नमाणा'
(निचू १६)। सम्मत्त १५८ प्रासू ११६; सरण)। २ बड़ा, महान् (कुमा) । ३ वृद्धि प्राप्त । ४ अनुभवी, वुत्ति देखो वत्ति % वृत्ति; 'जायामायावृत्तिएण' बुसी स्त्री [वृषी] मुनि का प्रासन। म वि कुशल, निपुण । ५ पंडित, जानकार (सूत्र २, १, ५०; प्राकृ ८)।
[मत् ] संयमी, साधु, मुनिः 'एस धम्मे (हे १, १३१, २, ४०० ६०)। ६ निभृत, वुत्थ वि [उषित] बसा हुआ, रहा हुआ
वुसीमो ' (सूम १, ८, १६, १, ११, १५, शान्त, निविकार (ठा ८)। ७ पुं. तापस, | (पाया रणाया १,८--पत्र १४८; उव, धरण
१, १५, ४; उत्त ५, १८; सुख ५, १८)। संन्यासी (णाया १, १५–पत्र १९३; अणु | ४३, उप पृ १२७, सुख २, १७, से ११,
देखो बुसि । २४)। ८ एक जैन मुनि का नाम (कप्प) ८०; कुप्र १८७)।
वुस्सग्ग देखो विओसग्ग; 'सच्चित्ताणं 'त्त, 'त्तण न [त्व] बुढ़ापा, जरावस्था वुद देखो वुअ = वृत (प्राकृ८)।
पुप्फाइयाण दव्वाण कुण्इ वुस्सग्ग' (उप (सुपा ३६०; २४२) 4 वाइ पुं[वादिन]
१४२; संबोध ५१, ५२) वुदास ( [व्युदास] निरास (विसे ३४७५)।एक समर्थ जैनाचार्य जो सुप्रसिद्ध कवि |
बूढ देखो वुड्ढ - वृद्ध (सुपा ५१० ५२०)। सिद्धसेन दिवाकर के गुरु थे (सम्मत्त १४०)। वुदि देखो वइ = वृति (प्राकृ ८)।
बूढ वि [व्यूढ] १ धारण किया हुआ, 'वाय पुं [वाद] किंवदन्ती, कहावत, वुद्ध देखो वुड्ढ = वृद्ध (षड् )
'सीमापरिमटेण व बूढो तेणवि णिरंतरं जनश्रुति (स २०७), सावग पुं[श्रावक] वुद्धि देखो वुड्ढि (ठा १०-पत्र ५२५, सम रोमंचों (से १,४२; धरण २० विचार २२६ ब्राह्मण (णाया १,१५-पत्र १९३; औप) १७ सैक्षि ४)।
एंदि ५२)। २ ढोया हुआः मुरिणबूढो सीलगि वि निगा वृद्ध का अनुयायी (सं वुन्न देखो वुण्ण (सुर ६, १२४; सुपा २५० भरो विसयपसत्ता तरंति नो वोढ (प्रवि
| मि १० भवि; कुमाः हे ४, ४२१)। १७ स १६२) । ३ बहा हुआ, वेग में खिंचा
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