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घेसलग-वोक पाइअसद्दमहण्णवो
८२३ वेसलग [वृषल] शूद्र, अधम-जातीय
वेसिअ वि [व्येषित १ विशेष रूप से वेहव सक [कच् ] ठगना। वेहवइ (हे मनुष्य (सूम २, २, ५४)।
अभिलषित । २ विविध प्रकार से अभिलषित | ४, ६३; षड्)। वेसवण पुं[वैश्रवण] देखो वेसमण (हे १, (भग ७, १--पत्र २९३)
वेव न [वैभव] विभूति, ऐश्वयं (भवि) । १५२: चंड; देवेन्द्र २७०)।
वेसिट्र देखो वइसिटू (धर्मसं २७१) हविअ [दे] १ अनादर, तिरस्कार । वेसवाडिय [वेशवाटिक] एक जैन मुनिगण (कप्प)।
४७४) ।
| वेहविअ वि [वचत] प्रतारित (दे ७, वेसवार [देसवार] धनिया प्रादि मसाला
वेसिया देखो वेस्सा; 'कामासत्तो न मुणइ ६६ टी)। (कुप्र६८) वेसा देखो वेस्सा (कुमाः सुर ३, ११६, |
गम्मागम्मपि वेसियाणव्व' (भत्त ११३; ठा वेहव्य न [वैधप] १ विधवापन, रँडापा, ४, ४-पत्र २७१)।
राड़पन (गा ६३०; हे १, १४८; गउड; सुपा २३५)। वेसाणिय पुंवैषाणिक] १ एक अन्तर्वीप ।
वैसियायण पुं वैश्यायन] एक बाल तापस सुपा १३६) । २ अन्तीप विशेष में रहनेवाली मनुष्य-जाति (भग १५–पत्र ६६५, ६६६) ।
वेहाणस देखो देहायस (पाचा २, १०, २;
ठा २, ४-पत्र ६३, सम ३३, रणाया १, (ठा ४, २-पत्र २२५)।वेसी स्त्री [वैश्या] वैश्य जाति की स्त्री (सुख
१६-पत्र २०२; भग)। वेसानर देखो वइसानर (सट्ठि ६ टो)। ___३, ४)।
| वेहाणसिय वि [वैहायसिक] फाँसी आदि वेसायण देखो वेसियायण (राज)। वेसुम [वेश्मन् गृह, घर (प्राकृ २८)।
से लटक कर मरनेवाला (प्रौप)। वेसालिअ वि [वैशालिक] १ समुद्र में वेस्स देखो वइस्स% वैश्य (सूम १, ६,२)।
वेहायस वि [वैहायस] १ आकाश-सम्बन्धो, उत्पन्न । २ विशालाख्य जाति में उत्पन्न । वेस्स देखो बेस = द्वष्य (उत्त १३, १८)।
आकाश में होनेवाला। २ न. मरण-विशेष, ३ विशाल, बड़ा, विस्तीर्णः 'मच्छा वेसालिया वेस्स देखो वेस = वेष्य (राज)।
फाँसी लगा कर मरना (१व १५७)। ३ पुं. चेव' (सूत्र १, १, ३, २)। ४. भगवान्
वेस्सा श्री [वेश्या] १ पण्यांगना, गणिका राजा श्रेणिक का एक पुत्र (अनु)। ऋषभदेव (सूम १, २, ३, २२)। ५
(विसे १०३०; गा १५६, ८६०)। २ वेहारिय वि [वैहारिक] विहार-सम्बन्धी, भगवान् महावीर (सूत्र १, २, ३, २२;
प्रोषधि-विशेषः पाढ़ का गाछ (प्राकृ २६) विहार-प्रवण (सुख २, ४५)। भग)। वेसाली स्त्री [वैशाली] एक नगरी का नाम यस्ता
वेस्सासिअ देखो वेसासिअ (भग)। वेहास न [विहायस.] १ माकाश, गगन
। (णाया १, ८-पत्र १३४)। अन्तराल, वेह सक [प्र+ ईक्ष ] देखना, अवलोकन (कप्पः ३३०)।वेसास देखो वीसासः 'को किर वेसासु
करनाः 'जहा संगामकालंसि पिट्ठतो भीरु | बीच भाग (सूत्र १, २, १, ८) वेसासो' (धर्मवि ६५)। वेहई' (सूत्र १, ३, ३, १) ।
वेहास देखो वेहायस (पव १५७धनु १)।वेसासिअ वि [वैश्वासिक, विश्वास्य ]
| बह सक [व्यधु ] बींधना, छेदना। वेहइ वेहिम वि [वैधिक, वेध्य तोड़ने योग्य, दो विश्वास-योग्य, विश्वसनीय, विश्वास-पात्र | (पि ४८६)।
टुकड़े करने योग्य (दस ७, ३२) । (ठा ५, ३--पत्र ३४२; विपा १, १--पत्र
भोट सम १२५; वैउंठ देखो वेकुंठ (समु १५०)। १५ कप्प; औप; तंदु ३५)।
वज्जा १४२) । २ अनुबोध, अनुगम, मिश्रण। वैभव देखो बेहव (त्रि १०३) वेसाह देखो वइसाह (पान; वव १)। ३ द्यत-विशेष, एक तरह का जुआ (सूम १, वोअस देखो वोकस । कवकृ.वोयसिजमाण वेसाही श्री[वैशाखी] १ वैशाख मास की ६, १७)। ४ अनुशय, अत्यन्त द्वेष (परह पूर्णिमा । २ वैशाख मास की अमावस (इक)- १, ३-पत्र ४२) 10
वोइय वि [व्यपेत] वर्जित, रहित (भवि) । बेसि वि [पिन] द्वेष करनेवाला (पउम | वेह पुं [वेधस्] विधि, विधाता (सुर बोंट देखो विंट = वृन्त (हे १, १३६)। ८, १८७ सुर ६, ११५) ।
वोकिल्ल वि [दे] गृह-शूर, घर में वीर बननेबेसिअ देखो वइसिअ (दे १, १५२)। बेहण न [वेधन वेधन, छेद करना (राय
। वाला, झूठा शूर (दे ७,८०)। बेसिअ पुंस्त्री [वैशिक] १ वैश्य, वणिक १४६) धर्मवि ७१)।
वोकिल्लिअ न [दे] रोमन्थ, चबी हुई चीज (सूम १, ६, २)। २ न. जैनेतर शास्त्र
वेहम्म देखो वइधम्म (उप १०३१ टी को पुनः चबाना (दे ७, ८२). विशेष, काम-शास्त्र (अणु ३६, राज) धर्मसं १८५ टी)।
वोक सक [वि+ज्ञपय ] विज्ञप्ति करना । वेसिअ वि [वैषिक] वेष-प्राप्त, वेष-संबन्धी चेहल्ल पुं [विहल्ल] राजा श्रेणिक का एक |
| वोक्कइ (हे ४, ३८)। वकृ. वोकंत (सूम २,१, ५६, प्राचा २, १, ४, ३)। पुत्र (अनु १, २, निर १, १)।
(कुमा) 1
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