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वेमय-वेलय पाइअसहमहण्णवो
८२१ वेमय सक [भञ्ज ] भाँगना, तोड़ना। वेरि देखो वहरि (गउडः कुमाः पि वेलव सक [ उपा+ लभ्] १ उपालम्भ वेमयइ (हे ४, १०६, षड् )। वेरिअ६१)।
देना, उलाहना देना। २ कॅपाना। ३ व्याकुल वेमाउअ । वि [वैमातृक] विमाता की वेरिज विदे] १ असहाय, एकाकी। २ करना । ४ ध्यावृत्त करना, हटाना। वेलवइ वेमाउग। संतान (सम्मत्त १७१; मोह न. सहायता, मदद (दे ७, ७६) ।। (हे ४, १५६ षड् )। वकृ. वेलवंत (से २, ८८)। वेरुलिअ पुन [बेडूर्य] १ रत्न की एक जाति,
। ८)। कवकृ. वेलविजंत (से १०, ६८)। वेमाणि पंस्त्री [विमानिन] विमान-वासी 'सुचिरं पि अच्छमाणो लियो कावासीम
कृ. वेलवणित (कमा)। देवता. एक उत्तम देव-जाति (दं २)। स्त्री.
उम्मीसो' (प्रासू ३२; पात्र), 'वेरुलिनं' (हे वेलव सक [वश्च ] १ ठगना २ पीड़ा "णिणी (पएण १७–पत्र ५००, पंचा २,
२, १३३, कुमा)। २ विमानावास-विशेष करना । वेलवइ (हे ४, ६३)। कर्म. वेल
(देवेन्द्र १३२) । ३ शक्र आदि इन्द्रों का एक विज्जति (सुपा ४८२; गउड)। वेमाणिअ [वैमानिक] एक उत्तम देव
आभाव्य विमान (देवेन्द्र २६३)। ४ महा- वेलविअ वि [वञ्चित] १ प्रतारित, ठगा जाति, विनानवासी देवता (भग; औपः परह
हिमवंत पवंत का एक शिखर (ठा २,३- हुआ (पास; बज्जा १५२; विवे ७७ वै १, ५–पत्र १३; जी २४); -
पत्र ७० ठा ८-पत्र ४३६)। ५ रुचक २६)। २ पीड़ित, हैरान किया हुमा (खा माया स्त्री [विमात्रा] अनियत परिमारण पर्वत का एक शिखर (ठा ८-पत्र ४३६)। ११)। (भग १, १० टी)।
६ वि. वैडूर्य रत्नवाला (जीव ३, ४ राय) वेला स्त्री [दे] दन्त-मांस, दाँत के मूल का वेम्मि क्रि [वच्मि] मैं कहता हूँ (चंड)। मय वि [°मय वैडूर्य रत्नों का बना हुमा | मांस (दे ७, ७४)। वेयंड पुं [वेतण्ड] हस्ती, हाथी (स ६३०; |
(पि ७०)
वेला स्त्री [बेला] १ समय, अवसर, काल ७३५) । देखो वेंड ।
वेरोयण देखो वइरोअण= वैरोचन (णाया (पान कप्पू)। २ ज्वार, समुद्र के पानी की वेयावच्च । न [वैयावृत्त्य, वैयापृत्य । २, १-पत्र २४७)।
वृद्धि (पएह १, ३ ---पत्र ५५)। ३ समुद्र वेयावडिय सेवा, शुश्रूषा (उवा कस रणाया | वेल न [दे] दन्त-मांस, दाँत के मूल का मांस
का किनारा (से १, ६२; प्रौपः गउड)। ४ १, ५ औपः प्रोघभा ३२१; पाचा पाया
मर्यादा (सून १,६,२६)। ५ वार, दफा (दे ७, ७४)। १, १-पत्र ७५: धर्मसं ६६५, श्रु ५३)।
(पंचा १२, २६) उल न [°कुल] बन्दर, वेलंधर पुं[वेलन्धर] एक देव-जाति, नागबेर न [वैर] दुश्मनाई, शत्रुता (दे १, १५२;
जहाजों के ठहरने का स्थान (सुर १३, ३०; राज-सिशेष (सम ३३)। २ पर्वत-विशेष । अंत १२; प्रासू १२३)।
उप ५६७ टी)। वासि पुं [वासिन्] ३ न. नगर-विशेष (पउम ५४, ३९)।
समुद्र-तट के समीप रहनेवाला वानप्रस्थ वेर न [द्वार] दरवाजा (षड् )। वेलंधर पुं [वैलन्धर] वेलन्धर-संबन्धी (पउम (प्रौप)। बेरग्ग न [वैराग्य] विरागता, उदासीनता ५५, १७)।
वेलाइअ वि [दे] मृदु, कोमल । २ दीन, (उवः रयण ३०; सुपा १७३, प्रासू ११६)। लंब [वेलम्ब] १ वायुकुमार नामक देवों गरीब (दे ७,६६)। वेरग्गिअ वि [राग्यिक] वैराग्य-युक्त, | के दक्षिण दिशा का इन्द्र (ठा २, ३–पत्र - वेलाव (अप) सक [वि + लम्बय ] देरी विरागी (उवः स १३५) ।
८५; इक)। २ पाताल-कलश का अधिष्ठाता करना, विलम्ब करना । वेलावसि (पिंग)। बेरज न [वैराज्य] १ वैरि-राज्य, विरुद्ध देव-विशेष (ठा ४,१-पत्र १९८४,२- | वेलिल्ल वि [ वेलावत् ] वेला-युक्त (कुमा)।" राज्य (सुख २, ३५; कस)। २ जहाँ पर पत्र २२६)।
बेली स्त्री [दे[१ लता-विशेष, निद्राकरी लता राजा विद्यमान न हो वह राज्य । ३ जहाँ वेलंब पुं [दे. विडम्ब] १ विडम्बना (दे (दै ७, ३४)। २ घर के चार कोणों में पर प्रधान आदि राजा से विरक्त रहते हों । ७,७५, गउड)। २ वि. पिडम्बना-कारक
रखा जाता छोटा स्तम्भ (पव १३३)। वह राज्य (कसः बृह १)। (पएह २, २-पत्र ११४) ।
वेल देखो वेणु (हे १, ४, २०३)। वेरत्तिय वि [वैरात्रिक रात्रि के तृतीय पहर वेलंवग पुं[विडम्बक] १ विदूषक, मसखरा
वेल [दे] १ चोर, तस्कर । २ मुसल (दे का समय (उत्त २६, २०; प्रोघ ६६२)। (प्रौपः णाया १, १ टी-पत्र २, कप्प)।
७,६४)। वेरमण न [विरमण] विराम, निवृत्ति (सम
२ वि. विडम्बना करनेवाला (पुप्फ २२६)
वेलंक वि [दे] विरूप, खराब, कुत्सित (दे १० भगः उवा)।
| वेलक्ख न [बेलक्ष्य] लज्जा, शरम (गउड)। ॐ६३) वेराड पुं[बैराट] भारतीय देश-विशेष, प्रल- वेलणय न [दे. वीडनक] १ लज्जा, शरम वेलुग। पुन [बेणुक] १ बेल का गाछ । २ वर तथा उसके चारों ओर का प्रदेश (भवि) (दे ७, ६५ टी)२ पुं. साहित्य-प्रसिद्ध रस- वेलय) बेल का फल (प्राचा २, १, ८, वेराय (अप) पु[विराग] वैराग्य, उदासीनता विशेष, लज्जा-जनक वस्तु के दर्शन आदि से १४)। ३ वंश, बास; 'वेलुयाणि तणारिण (भवि)।
उत्पन्न होनेवाला एक रस (अणु १३५)। य (पएण १-पत्र ४३; पि २४३)। ४
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