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पूणक देशरभय
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गया (भत्त १२२ ) ४ उपचित, पुष्ट (से ६, ५०) । ५ निःसृत, निकला हुप्राः 'जम्मा दुवा
हर बने मंदाणि भावेश
(चेइय ४) |
वूणकवून [दे] बालक बच्चा (घ) 1 यू [] नागवेन [वेद्य] कर्म-विशेष सुख तथा दुःख का कारण-भूत कर्म (कम्म १.३) ।
नय करियं नेय गहियमन्नेहि' (सुपा ६४३ ) । देखो 'वुअ = (दे) ।
वूह पुंन [व्यूह ] १ युद्ध के लिए की जाती सैन्य की रचना-विशेष ( परह १, ३ - पत्र ४४ औप स ६०३ कुमा) । २ समूह (सम १०१ कुप्र ५६ ) ।
वे देखो वइ = वै ( प्राकृ ८०; राज ) 1 [वि] नष्ट होना
वे
(से
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पाइअसद्दमणवा
[ब] वेदों का जानकार (याचा है, १२) [वि] यहो श्रर्थं (पि ४१३; श्री २३) ५ वत्तन ["व्य] वैश्य-विशेष (घा २ १५ ३५) वतन [व] देखो वत्त
( श्राचा २, १५, ५) ।
बेअ [वेद]] १ शास्त्र-विशेष सग्वेदादि
ग्रंथ (विपा १, ५ टी -पत्र ६०० पान उव) अब २ कर्म- विशेष मोहनीय कर्म का एक भेद, जिसके उदय से मैथुन की इच्छा होती है ( कम्म १, २२० उप पृ ३५३) । ३ श्राचारांग आदि जैन ग्रन्थ (माचा १, १, १, २) । ४ विज्ञ, जानकार (भग) व वि. १०३
पुं
[ग] शीघ्र गति, दौड़, तेजी (पाश्र; से ५, ४३; कुमाः महा; पउम ६३, ३६) । २ प्रवाह । ३ रेतस् । ४ मूत्र आदि निःसारण यन्त्र । ५ संस्कार - विशेष ( प्राकृ ४१) । देखो वेग ।
बेअंत Î [वेदान्त] दर्शन-विशेष, उपनिषद
का विचार करनेवाला दर्शन (अच्चु १) Iv अग वि [वेदक ] १ भोगने वाला, अनुभव (सम्यक् १२० संबोध २२ श्रावक ३०९ ) । २ न. सम्यक्त्व का एक भेद (१९) । विसम्या-विशेष जीव कम्म ४ १२ २२) ५ दहिय वि [न्निवेदक ] जिसका पुरुष चिह्न आदि काटा गया हो वह (सूप्र २२, ६३) । उत्तरासँग ती तरह पहना जाता वस्त्र, बन्ध-विशेष, मर्कट-बन्ध । लटकना (गाया १, ८-
१७६४) ।
वे
१ अनुभव करना, वेग्रइ, वेएइ, वेति वेअंत, वेएमाण,
सक [व्ये] संवरण करना । वेइ, बेअवे, वेभए (षड् ) 1 बेअ सक] [ वेदय ] भोगना । २ जानना । (सम्यो भग व वेयमाण ( सम्यक्त्वो ५; पउम ७५, ४५३ सुपा २४३१, १-६६ पंच ५ १३२; सुपा ३६६ ) । कवकृ. astमाण (भगः परह १, ३ – पत्र ५५ ) । (१.६, २७). य बेअन्य वेव (२, १-पत्र ४०० रयण २४; सुख ६, १; सुपा ६१४; महा) । देखो वेअ = (वेद्य), वेअणिज्ज, वेअणिय
बेअ
क ।
[ वि + एज्] विशेष काँपना
वेयइ (गंदि ४२ टी) । वकृ. वेयंत (ठा ७पत्र १०३) ।
बेक [ष] वेअडि वि देत फिर से बागरण करण
अ [ वे ] काँपना । वकृ. अमाण (गा ३१२ अ ) ।
(दे ७, ७७)1
वेड पुं [दे. वैकटिक] मोती वेघनेवाला शिल्पी जोहरी (कप्पू) - वेअड्ड देखो विड्डि (प) 1
वेअड्ढ न [दे] भल्लातक, भिलावाँ (दे ६६) ।
७,
८१७
वेअद्द न [ वैदग्ध्य ] विदग्यता, विवक्षरणता (सुपा ६२६ ) 1
बेअहट [येताक्य] पर्यंत- विशेष (सुर ६, १७; सुपा ६२६; महा; भवि) 1
वेअण न [ वेतन ] मजूरी का मूल्यः तनखाह ( पाय त्रिया १ ३ - पत्र ४२ उप पू ३६८) |
अण न [पेपन] १ कम्प, कोपना (इय ४३५: नाट उत्तर ६१) । २ वि. काँपनेवाला (चेइय ४३५) ।
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वेअग्ग न [वेदन] अनुभव, भोग (प्राचा कम्म २, १३) । -
वेअणा देखो विअणा (उवा हे १३ १४६६ प्रासू १०४ १३३; १७४)
न. सुख-दुःख वेअणिज}त्रि [वेदनीय] १ भोगने योग्य । आदि का कारण-भूत कर्म (२, ४ कप्प कम्म १, १२ ) 1 अय देवो वेग (बिगे २२८) वेअरणी स्त्री [ वैतरणी ] १ नरक- नदी ( कुप्र ४३२ उव) । २ परमाधार्मिक देवों की एक जाति, जो वैतरणी की विणकरके उसमें नरक-जीवों को डालता है (सम २९ ) । ३ विद्या - विशेष (श्रावम) ।
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[]
७
में यज्ञोपवीत की माला आदि । २ ३ कन्धे के नीचे पत्र १३३) । वेअड सक [ खच् ] जड़ना । वेडइ (हे ४, ८६ षड् ) ।
७५) । २ न. सामर्थ्यं (दे ७, ७५; पात्र ) । वेअल न [वैकल्य ] विकलता, व्याकुलता (गड)
वेअव्व देखो वेअ = वेदय् ॥
हुआ,
अडि वि [खचित] बड़ा जाऊ देस [वेतस]] विशेष का पुं वृक्ष बेंत पेड़ (हे १, २०७; षड् गा ६४५ ) :हुआ वि व्याकरण-संबंधी,
(कुमाः पाद्मः भवि ) ।
संदेह - निराकरण से सम्बन्ध रखनेवाला (पंचभा) ।
आर सक [दे] ठगना, प्रतारणा करना । वेयार (भवि ) | कर्म. वेप्रारिजसि (गा ६०६ ) । हे. वेरिडं (गा २८६ वज्जा ११४ ) । आरणिय वि [ वैदारणिक ] विदारणसम्बन्धी, विदारण से उत्पन्न (ठा २, १पत्र ४० ) 1
वेदेो वेल नियरले २०) ।
= विचकिलः 'वेयल्लफुल्लहसन (पर्य
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