Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas
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८०८
विस्स देखो विस = विश्; 'देवीए जेण समयं प्रपि श्रग्गीए विस्सामि' (सुर २, १२७) ।
विre न [वि] १ कच्ची गन्ध अपक्व मांस श्रादि की बू । २ वि. कच्ची गन्धवाला ( प्राप्र अभि १८४) गंधि वि [गन्धिन् ] ग्रामगन्धि, अपक्व मांस के समान गंधवाला ( अभि १०४) । विस्स [विश्व] १ एक-देवत पुं उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का अधिष्ठाता देव (ठा २, ३ - पत्र ७७६ अणु १४५३ सुज्ज १०, १२) २. सकल सब (विसे १६०३: सुर १२, ५६ ) । ३ पुंन. जगत्,
दुनियाँ (सुपा १३६; सम्मत्त १६०३ रंभा ) ।
"इ पुं प्राकृ 1" [ "जिल्] वशेष ( ९४ ) "कम्म [ कर्मन ] शिल्पी विशेष देववर्धक ( स : ००; कुप्र 8 ) पुर न [["पुर] नगर- विशेष (गुदा ६१५) भूइ [["भूति] प्रथम वासुदेव का पूर्व-भवीय नाम (सम १५३ पउम २०, १७१ मत
१२७ तो ७) यम्म देखो कम्म (स ६१०) वाइ[वादिक] भगवान् महावीर का एक ग ( पण ४५१) "सेण ["सेन] भगवान् शान्तिनाथजी का पिता, एक राजा ( १५१; १५२ ) । २ महोरात्र का एक मुहूर्त (सम ५१ ) । देखो वीस = विश्व - मिस्सा (मा) देखो विम्य विस्मय (षद्) । बिस्त देखो वीसंत (सुपा ५३) - विरसंतिअ न [विश्रान्तिक ] मथुरा का एक तीर्थ (ती ७)। विस्सद तक [चिस्यन्द्र] टपकना, भरना, चूना । विस्संदति (ठा ४, ४ - पत्र २७९) ।
= -
विरसंभ तक [वि + सम्भ] विश्वास करना । कृ. विस्संभणिज्ज ( श्रा १४३ उपपं १६ ) 1विस्तंभ [विषम्भ] विश्वास, श्रद्धा प्रयो EE; महा) घाइ वि [ घातिन् ] विश्वास घातक (गाया १, २ - पत्र ७९ ) । विस्संभण न [विश्रम्भन] विश्वास ( माल १६६) ।
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पाइअसद्दमणव
विस्संभणया स्त्री [विश्रम्भणा ] विश्वास (घाचा)।" विस्संभर
[विश्वम्भर ] जन्तु-विशेष
भुजपरिसं की एक जाति (सूत्र २, ३, २५ श्रोध ३२३) । २ मूषक, चूहा (प्रोघ ३२३) । ३ इन्द्र । ४ विष्णु, नारायण (नाटचैत ३८) |
विरसंभरा श्री [विश्वम्भरा ] पृथिवी, धरती ( कुप्र २१३) । - विस्संभिय वि[विश्रब्ध ] विश्वास प्राप्त, विश्वासी ( सुख १, १४) ।विश्सभियर [विश्ववत् ] जगत्-रक (उत्त३, २) -
विस्सत्थ देखो वीसत्थ (नाट - शत्रु ५३ ) । विस्सद्ध देखो बीसद्ध (अभि १६३० मुद्रा २२३) ।
थाक लेना । . वित्समिज
1
विस्सम अक [ वि + श्रम् ] विस्सम (प्राफ २६ ) (नाट - मालती ११) 1विश्सम (स्वप्न १०६) । विस्समिज देखो विस्संत (मुपा ३७२) । विस्सर एक [वि + स्मृ] भूलना। विसर ( धावा १५३) ।
[विश्रम ] विभाग, विभान्ति
विस्सर वि [ विस्वर ] खराब श्रावाजवाला (सम ५०; पह १, १ - पत्र १८ ) । - विस्सरण न [दिस्मरण] विस्मृति याद न प्राना ( पभा २४ कुल १४ ) । - विस्सरिय [विस्तृत ] भुला हुआ (उप ११३) । -
विस्सस सक [ वि + श्वस] विश्वास
करना, भरोसा करना विस्ससइ ( प्राकृ २६) । वकृ. विस्ससंत ( श्रा १४) । कृ. विरससणिज (श्रा १४; भत्त १६ ) । - विस्ससिअ वि [ विश्वस्त ] विश्वास-युक्त भरोसा-पात्र (श्रा १४; सुपा १८३ ) - विरसायिवि [विश्राणित ] दिया हुआ, अर्पित (उप १३८ टी) । विस्साम देखो वीसाम ( प्राकृ २६; नाट-शकु २७) ।
विस्सामण न [विश्रामण ] चप्पी, अंग-गर्दन आदि भक्ति, वैयावृत्य (ती) -
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विरस - विह
विस्सामणा स्त्री [विश्रामणा ] ऊपर देखो ( पव ३८ हित २० ) । विरसाव देखो विसायविस्वादय्. विस्सायणिज्ज ( णाया ९, १७४) ।
.
विस्सार सक [वि + स्मृ] भूल जाना। संह, 'कोपरा विसारिक रायसास गरिऊण नियभूमि पविट्ठा नयार (महा) । विस्सार तक [षि+ स्मारय ] विस्मरण करवाना (नाट - मालती ११७ ) । - विस्सारण न [विसारण] विस्तारख फैलाना ( पव ३८) ।
विस्तावसु पुं [ विश्वावसु ] एक गन्धर्व, देव - विशेष (पउम ७२, २)
१२ - पत्र
विस्सास पुं [विश्वास ] भरोसा, प्रतीति, श्रद्धा (सुख १, १० सुपा ३५२: प्राप्र ) ।विस्सासिय वि[विश्वासित ] जिसको विश्वास कराया गया हो वह (सुपा १७७) । विरसादल [विवाहल] अंग-विद्या का जानकार चतुर्थ रुद्र- पुरुष ( विचार ४७३ ) । - विस्सुअवि [वि] प्रसिद्ध विख्यात (पाय: श्रीप प्रासू १०७) ।
विस्सुमरिय देखो विसुमरिअ (उप १२७) । ~ धिरणि श्री [वित्रेणि, "णी] निःश्रेणि } विरसेणी सीढ़ी (बाचा) - विस्सेसर
,
[विश्वेश्वर] काशी काशी में स्थित महादेव की एक मूर्ति (सम्मत ७५)
विस्सोअसिआ दखो विसोत्तिआ (हे २,
£5) IV
=
विह सक [ व्यधू ] ताड़न करना । वकृ. विमान (उत्त २७ ३. २०, ३) - विद्द देखो बिस विष (याचा पि२६३) - विह पुंग [दे] १ मार्ग, रास्ता (घोष ६०६) । २ अनेक दिनों में उल्लंघनीय मार्ग (प्राचा २, ३, १, ११, २, ३, ३, १४) । ३ श्रटवीप्राय मार्ग (प्राचा २, ५, २, ७) विपुंन [विहायस] श्राकाश, गगन (भग २०, २-पत्र ७७५; दसनि १ २३ ) : देखी बिग विहायस् - ।
=
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