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पाइअसहमहण्णवो
विहुअ-वीअण महादेव । ५ वायु, पवन । ६ कपूर (हे ३, विहुल्ल वि [विफुल्ल] १ खिला हुआ। २ विहेढणा स्त्री [विहेठना] कदर्थना, पीड़ा १६) ।
उत्साही; 'नियकज्जविहुल्ली' (भवि)। (उव)।। विहुअ वि [विधुत] कम्पित (गा ६६०; विहुव्वंत देखो विहुण।
विहोड सक [ताडय ] ताड़न करना। गउड)। २ उन्मूलित, उखाड़ा हुआ (से १,
विहूअ वि [विधूत] १ कम्पित, (माल विहोडइ (हे ४, २७)। ५५) । ३ त्यक्त (गउड)।
१७८)। २ वजित, रहितः 'नयविहिवि- विहोडिअ वि [ताडित] जिसका ताड़न चिहुंडुअा राहु, ग्रह-विरोष (२७,
द्यबुद्धी' (पउम ५५, ४)। देखो विधूय, किया गया हो वह (कुमा)।विहुअ ।
विहोय (अप) देखो विहव (भवि)।विहूइ देखो विभूइ (अच्चु १४; भवि)। वी देखो वि = अपि. वि; 'एक्कं चिय जाव न विहुण सक [वि + धू ] १ कॅपाना,
विहूण देखो विहुण । संकृ. विहूणिया वी, दुक्खं बोलेइ जणियपियविरह (पउम हिलाना। २ दूर करना, हटाना। ३ त्याग
(प्राचा १, ७, ८, २४; सून १, १, २, १७, १२) । करना। ४ पृथग करना, अलग करना। विहुएइ, १२; पि ५०३).
वीअ सक [वीजय ] हवा डालना, पंखा विहणंति (भविः पि ५०३), क्हुिणाहि (उत्त
करना । वीप्रति अभि ८६), वीयंति (सुर १०, ३)। कर्म. विहुव्वइ (पि ५३६) ।
विहूण देखो विहीण (कुमाः उव)। वकु. विहुणंत, विहुणमाण (सुपा २७२ विहूणय न [विधूनक] व्यजन, पंखा (सूम १, ६६)। वकृ. वीअंत (गा ८६, सुर
७,८८)। कवकृ. विइज्जत, वीइज्जमाण पउम ९४, ३५)। कवकृ. विहुव्वंत (से ६, १, ४, २, १०)
(से ६, ३७; गाया १, १-पत्र ३३)। ३५, ७, २१)। संकृ. विहुणिय (सूम १, विहूसण देखो विभूसण (दे ६, १२७ सुपा | २, १, १५; यति २१; स ३०८)।
वीअ वि [दे] १ विधुर, व्याकुल । २ १९१; कुप्र २६)।
तत्काल, तात्कालिक, उसी समय का (दे ६, विहुणण न [विधूनन] १ दूरीकरण (पउम विहूसा स्त्री [विभूषा] १ शोभा (सुपा ६२१; | १०१, १९)। २ व्यजन, पंखा (राज)। दे६, ८३) । २ अलंकार प्रादि से शरीर की
वीअ देखो बीअ%= द्वितीय (कुमाः गा ८६; विहुणिय वि [विधूत] देखो विहअ (सुपा सजावट (पंचा १०, २१)।
२०६; ४०६ गउड) २५३; यति २१)।
विहूसिअ वि [विभूषित] विभूषा-युक्त, वीअ वि [वीत] विगत, नष्ट (भगः अझ विहुर वि [विधुर] १ विकल, व्याकुल, विह्वल अलंकृत (भवि)।
६६) कम्ह न [कदम ?] १ गोत्र(स्वप्न ६३; महा; कुमाः दे १, १५; सुपा विहे सक [वि+धा] करना, बनाना। विशेष । २ नी. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ६२; गउड, सरण)। २ क्षीण (गउड १०३६)। | विहेइ, विहेंति, विहेसि, विहेमि (धर्मसं ७-पत्र ३६०) धूम वि [ धूम द्वेष३ विसदृश, विलक्षण, विषमः 'अवि- १०११; स ६३४; ७१२; गउडा ३३२; रहित (भग ७, १-पत्र २६१)। ब्भय, सिट्ठम्मिवि जोगम्मि बाहिरे होइ विहुरया' कुमा ७, ६७)। संकृ. विहेऊण (पि ५८५)। भय न [ भय] १ नगर-विशेष, सिन्धुसौवीर (ोध ५१)। ४ विश्लिष्ट, वियुक्त (गउड हेकृ. विहेउं (हित १)। कृ. विहियव्य, | देश की प्राचीन राजधानी (धर्मवि १६; २१; ८३६)। ३ न. व्याकुल-भाव, विह्वलताः विहेअ, विहेअव्व (सुपा १५८ हि २२, इक विचार ४८ महा)। २ वि. भय-रहित 'विलोट्टए विहुरम्मि' (स ७१६; वज्जा ३२
धम्मो ४; महा: सुपा १६३ श्रा १२, हि (धर्मवि २१) मोह वि [मोह] मोह६४ प्रासू ५८; भविः सण)।२ पउम ६६, १८ सुपा १५६)
रहित (अझ ६६)। राग, राय वि विहुराइअ वि [विधुरायित] व्याकुल बना विहेड सक [वि + हेटय ] १ मारना, [राग] राग-रहित, क्षीण-राग (भग; सं हुआ (गउड १११ टो)।
हिंसा करना। २ पीड़ा करना। वकृ. ४१) सोग पुं [शोक] एक महाग्रह
बिहेडयंत ( उत्त १२, ३६ )। कवकृ. (सुज्ज २०; ठा २, ३–पत्र ७६) । सोगा विहुरिजमाण वि [विधुरायमाण] व्याकुल
विहम्मणाहिं विहेड (??)यंता' (पएण १, स्त्री [शोका] सलिलावती नामक विजयबनता (सुपा ४१६)। ३-पत्र ५३)।
प्रान्त की राजधानी, नगरी-विशेष (णाया १, विहुरिय वि [विधुरित] १ व्याकुल बना विहेडय वि [विहेठका अनादर-कर्ता (दस ८-पत्र १२१; इक पउम २०, १४२)। हुमा (सुर २, २१६; ६ ११५; महा)। २ १०,१०)।
वीअजमण देखो बीअजमण (दे ६, ६३ टी)। वियुक्त बना हमा, बिछुड़ा हुआ, विरहित विहेडि वि [विहेटिन्] १ हिसा करनेवाला। वीअणन [वीजन]१ हवा करना, पंखा से (गउड)। २ पीड़ा करनेवाला: 'अंगे मंते अहिज्जति |
हवा करना (कप्पू)। २ स्त्रीन, पंखा, व्यजन विहुरीकय वि [विधुरीकृत व्याकुल किया पाणभूयविहेडिणो' (सूग्र १, ८, ४)।
(सुर १, ६६; कुप्र ३३३; महा)। श्री. णी हुआ (कुमा)।
विहेडिय वि [विहेटित] पीड़ित (भत्त। (प्रौपः सून १, ६, ८ पाया १, १बिहुल देखो विहुर (पास)।१३३)
पत्र ३२)।
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