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वडय-वड्ढवण पाइअसद्दमण्णवो
७४१ अंग जिसका बाहर निकल माया हो वह (पव | "वडिया देखो पडिया -प्रतिज्ञा (माचा २, | वड्ढ प्रक[वृध् ] बढ़ना । वड्ढइ (हे ४, ११०)। ५ जिसका पेट बड़ा होकर आगे ७,१)।
२२०; महा: काल) । भूका. वड्डित्था निकल आया हो वह । स्त्री. भी (णाया १, वडिसर न [दे] चूल्ली-मूल, चूल्हे का मूल (कप्प)। वकृ. वडढंत, वड्ढमाण (सुर १, १-पत्र ३७ प्रौपः पि ३८७) (दे ७, ४८)
११६; महा: गा ११३)। हकृ. वाडेढउं वडय देखो वडग = वटक (सुपा ४८५) | वडिवस्सअ वि [वरिवस्यक पूजक, पूजा (महा)'वडल देखो पडल (गउड)।
करनेवाला (चारु १)
वडढ सक [वर्धय] १ बढ़ाना. विस्तारना । वडवग्गि पुं[वडवाग्नि] वडवानल, समुद्र के
वडिसाअवि [दे] जुत, टपका हुआ (षड् ) २ बधाई देना । वड्ढंति (उव)। वकृ. भीतर की प्राग (गा ४०३)।
वडी स्त्री दे] बड़ी, एक प्रकार का खाद्य (पव वड्ढअंत (नाट-मृच्छ १८) । कर्म. वडवड अक [वि + लप्] विलाप करना। ३८)
वढिज्जंति (सिरि ४२४) । देखो वद्ध =
वर्धय ।। बडबडइ (हे ४, १४८), वडवडंति (कुमा)
देखो वट्टमग (प्रौपः प्राचा)।
वड्ढइ पुं[वर्धकि] बढ़ई, सुतार (सम २७) वडवा स्त्री [वडवा] घोड़ी (पामा धर्मवि
वडेंस पुं [वतंस] शेखर, मुकुट (भगः णाया | उप पृ १५३; पानः धर्मसं ४८६; दे ७, १४५), जल, नल [नल] समुद्र के
१, १ टी-पत्र ५)। देखो वडिंस ।। भीतर की प्राग, वडवाग्नि (पि २४०, श्रावमापी विमा किनर नामक किन्नरेन्द्र १६) मुह न [मुख १ वही अर्थ (से
वड्ढइअ [दे] चर्मकार, मोची (दे ७, __ की एक अग्रमहिषी (ठा ४, १-पत्र २०४, |
४४) १,८)। २ एक महा-पाताल (इक)।
णाया २-पत्र २५२)। हुआस [हुताश] वडवानल (समु
वड्ढण न [वर्धन] १ वृद्धि, बढ़ाव (कप्पू)। वडेंसिया स्त्री [वतंसिका] अवतंस की तरह ! २ वि. वृद्धि-जनक (महाः सुर १३, १३६)
करना, मुकुटस्थानापन्न करना; 'अट्ठारसवं- वड्ढणमिर वि [दे] पोन, पुष्ट (दे ७, ५१)। वडह देखो वडभ (पाचा १, २, ३, २)
जणाउल भोयणं भोयावेत्ता जावजीवं पिट्ठिव- वड्ढणसाल वि [दे] जिसकी पूँछ कट गई वडह पुंदे] पक्षि-विशेष (दे ७, ३३) । डेंसियाए परिवहेजा' (ठा ३, १--पत्र हो वह (दे ७, ४६) 'वडह देखो पडह (से १२, ४७)।
| वड्ढमाण देखो वड्ढ - वृध् । वडही देखो वलही (गउड)
वड्ड वि [दे] बड़ा, महान् (दे ७, २६ तंदु वड्ढमाण न [वर्धमान, क] १ 'वडाआ देखो पडाया (गा १२०) ५५; सुपा १२४; णाया २-पत्र २४८ वढमाणय ) गुजरात का एक नगर, जो 'वडालि स्त्री [दे] पंक्ति, श्रेणि (दे ७, ३६)। सम्मत्त १७३; भवि; हे ४, ३६६; ३६७; आजकल 'वढवाण' के नाम से प्रसिद्ध है।
३७१) वडाहा देखो पडायाः धवलधयवडाहों
'सिरिवड्ढमारणनयरं अत्थरग पुं [ आसरक] ऊँट
पत्ता गुजरघरावलयं की पीठ पर रखा जाता आसन (पव ८४ (सम्मत्त ७५)। २ अवधिज्ञान का एक (महा)
टी)त्तण न [व] बड़प्पन, महत्ता (हे भेद, उत्तरोत्तर बढ़ता जाता एक प्रकार वडिअ देखो पडिअ (से ५, १०; कुप्र १८१%
४, ३८४ कप्पू) पण (अप) न [व] | का परोक्ष रूपी द्रव्यों का ज्ञान (ठा ६-पत्र उवा)।
वही (हे ४, ३६६; ४३७; पि ३००) ३७०; कम्म १, ८) । ३ पुं. भगवान् महावीर वडिअ वि [गृहीत] ग्रहण किया हुआ (सुर |
यर वि [तर] विशेष बड़ा (हे २,१७४)M (भवि) । देखो बद्धमाण । १, १६६)
बडवास [दे] मेघ,मभ्र (दे ७,४७, कुमा) वड्ढय देखो वट्ट-दे: 'पारणभरियं वड्ढयं वडिस (वितंस] १ मेरु पर्वत (सुज ५ वडहल्लि पुंदे] मालाकार, माली (दे७, पियावयणसमप्पियं पीयमाणं .पि तीए टी-पत्र ७८) । २ भूषण, 'रायकुलवडिसगा ४२)।
सुट ठुयरं भरियमंसुएहि (स ३८२)। वि मुरिणवसभा' (उव, कप्प)। ३ एक | वड्डार (अप) देखो वड्डु-यर (भवि)। बड्ढव सक [ वर्धय, वर्धापय् ] १ बढ़ाना, दिग्हस्ति-कूट (इक)। ४ प्रधान, मुख्य । वड्डिम वि [दे] नु त टपका हुआ (षड् ) वृद्धि करना । २ बधाई देना, अभ्युदय का ५ श्रेष्ठ, उत्तम (कप्पा महा)। ६ कर्णपूर, वडिलादे] देखो वड्ड;
निवेदन करना । वड्ढवइ (प्राकृ६०)।।. कान का आभूषण (णाया १,१-पत्र
'नयरणाण पडउ वज्जं अहवा
वड्ढवअ वि [वर्धक] १ बढ़ानेवाला २ ३१)। देखो वडेंस, अवयंस
वज्जस्स वडिलं किंपि।
बधाई देनेवाला (प्राकृ ६१)। वडिणाय पुं[दे] घर्घर कण्ठ, बैठा हुआ प्रमुरिणयजणेवि दिठे अणुबंध
वड्ढवण न [दे] वन का माहरण (दे ७, गला (षड्)
जाणि कुवंति' वडिया स्त्री [वृत्तिता] वर्तन, 'भयवंतदसण
(सुर ४, २०; वजा ६२) वढवण न [दे. वर्धापन] बबाई, अभ्युदयकडियाए' (स ६०३; मापा २,७,१) बदबअर देखो बडयर (षा)।
निवेदन (दे ७, ८७)
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