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वरुण।
पाइअसहमहण्णवो
वरग-वरुण बरग न [वरक] महामूल्य पात्र, कीमती | बड़ी कौड़ी (उत्त ३६, १३०; अोघ ३३४ | में उत्पन्न (ठा ७-पत्र ३६०) धर धू भाजन (आचा २, १, ११, ३)।
श्रा १)। ३ न. कौड़ियों का जूना जिसे [धर] अन्तःपुर-रक्षक षण्ड-विशेष (णाया वरट्ट [दे] धान्य-विशेष (पव १५४)। बालक खेलते हैं (मोह ८६)।
१,१-पत्र ३७; कप्पू; औप ५५ टि)। वरडा । स्त्री [दे. वरटा] १ तैलाटी, कीट- वराडिया स्त्री [वराटिका] कपदिका, कौड़ी 'वर पुं [°वर] वही अनन्तरोक्त अर्थ वरडी । विशेष, गंधोली । २ दंश भ्रमर, (सुपा २०३)।
(औप)। देखो वास = वर्ष । जन्तु-विशेष (मृच्छ १२ दे ७, ८४) वराय देखो वरय = वराक (गा ६१६६; वरिसविअ वि [चर्षित] बरसाया हुआ वरण पू [वरण] १ सगाई, विवाह-संबन्ध | १४१; महा) । स्त्री. 'राइआ, राई (गा (सुपा २२३)। (सुपा ३५४ सुर १,१२६, ४,१०)। २ तट, | ४६२; पि ३५०)
वरिसा स्त्री [वर्षा] १ वृष्टि, पानी का बरसना किनारा (गउड)। ३ पूल, सेतु (ोध ३०)। ४ वरावड पुं. ब. [वरावट] देश-विशेष (पउम | (हे २, १०५)। २ वर्षा-काल, श्रावण और प्राकार, किला (गा २४५)। ५ स्वीकार, ६८, ६४)।
भादो का महीना (प्रयौ ७४) - काल पुं ग्रहरण (राज)। देखो वीर-वरण। ६ पुं. | वराह पुं [वराह] १ शूकर, सूअर (पान)। [काल] वर्षा ऋतु, प्राबृट् (कुप्र ७५) ।। देश-विशेष, एक पाय देशः 'वइराड वच्छ २ भगवान् सुविधिनाथ का प्रथम शिष्य रत्त पुं [रात्र] वही अर्थ (ठा ६; णाया वरणा अच्छा' (सूअनि ६६ टीः इक), देखो (सम १५२)
१,१-पत्र ६३) ल देखो काल (पव | वराही स्त्री [वराही] विद्या-विशेष (विसे | वरणय न [वरणक] तृण-विशेष (गउड)। २४५३)
वरिसि वि [वर्षिन् बरसनेवाला (वेणी वरणसि (अप) देखो वाराणसी (पि ३५४) वरिअ [वरम् ] अच्छा, ठीक;
१११) वरणा स्त्री विरणा] १ काशी की एक नदी, _ 'वरि मरणं मा विरहो,
वरिसिणी स्त्री [वर्षिणी] विद्या-विशेष (पउम वरुणा (राज)। २ अच्छ देश की प्राचीन
विरहो अइसहो म्ह पडिहाइ। राजधानी (सूअनि ६६ टी)। देखो वरुणा - वरि एक्कं चिय मरणं,
वरिसोलक पुं[दे. वर्षोलक] पक्वान्न-विशेष, वरणीअ देखो वर = वृ।।
जेण समप्पंति दुक्खाई॥
एक प्रकार का खाद्य (पव ४ टी)। वरत्त वि [३] १ पीत । २ पतित ! ३ पेटित,
(सुर ४, १८२; भवि)
वरिहरिअ देखो परिहरिअ (से ७, ३८)। संहत (षड्) 10
वरिअ देखो वज= वयं (हे २, १०७ षड्) वरत्ता स्त्री [वरत्रा] रज्जु, रस्सी (पामा विपा
वरु । पुन [दे] देखो बरु 'चंपयतरुणो १, ६; सुपा ५६२) ।
वरिअ वि [वृत] १ स्वीकृत (से १२, ८८)। वरुअवरुणो फुल्लति सुरहिजलसिच्चा (? वरय पुं [वरक] सगाई करनेवाला, विवाह का
२ सेवित (भवि) । ३ जिसकी सगाई की गई | ता) (संबोध ४७)। प्रार्थक पुरुष (सुर ६, ११५) ।।
हो वह (वसु; महा) । ४ न. सगाई करना; वरुट पुं [वरुण्ट] एक शिल्पि-जाति (राज) वरय पुं[दे] शालि-विशेष, एक तरह का 'सुवरियं ति (उप ६४८ टी)।
वरुड पुं [वरुड] एक अन्त्यज-जाति (दे २, धान्य (दे ७, ३६)।
वरिट्ठ पुं [वरिष्ठ] १ भरत-क्षेत्र का भावी | ८४)। वरय वि [वराक] दीन, गरीब, बेचारा, रंक
बारहवाँ चक्रवर्ती राजा (सम १५४) । २ वरुण पुंवरुण] १ चमर आदि इन्द्रों का (पानः सुर २, १३, ६, १९५; सुपा ६३,
अति-श्रेष्ठ (प्रौप, कप्प; उप पृ ३८४० सुपा पश्चिम दिशा का लोकपाल (ठा ४, १-पत्र गा ५३३) । स्त्री. रई (संक्षि २; पि ८०)। ४०३; भवि)
१६७; १६८ इक)।२ बलि-आदि इन्द्रों का वरला स्त्री [वरला] हंसी, हंसपक्षी की मादा वरिल्ल न दे] वस्त्र-विशेष (कप्पू)।
उत्तर दिशा का लोकपाल (ठा ४, १)। (पान)।
वरिस सक [वृष्] बरसना, वृष्टि करना । ३ लोकान्तिक देवों की एक जाति (णाया वरसि देखो वरिसि (मोह ३०)।
वरिसइ (हे ४, २३५; प्राप्र ) । वकृ. १८-पत्र १५१)। ४ भगवान् मुनिसुव्रत
वरिसंत, वरिसमाण (सुपा ६२४; ६२३)। का शासनाधिष्ठायक यक्ष (संति ८)। ५ वरहाड अक [निर + स] बाहर निकलना। हेकृ. वरिसिउं (पि १३५) ।
शतभिषा नक्षत्र का अधिष्ठाता देव (सुज १०, वरहाडइ (हे ४, ७६) वरहाडिअ वि [नि सृत] बाहर निकला
वरिस पुन [वर्ष] १ वृष्टि, वर्षा (कुमाः १२) । ६ एक देव-विमान (देवेन्द्र १३१)। हुआ, निगंत (कुमा)
कप्पू ; भवि)। २ संवत्सर, साल (कुमाः ७ वृक्ष की एक जाति (पव ४)। ८ अहोरात्र वराग देखो वराय (रंभा)।
सुपा ४५२; नव ; दं २७; कप्पू ; कम्म का पनरहवाँ मुहूर्त (सुज १०,१३ सम वराड पुंगवराट, क] १ दक्षिण का
१, १८) । ३ जंबूद्वीप का अंश-विशेष, भारत ५१) । ६ एक विद्याधरनरपति (पउम ६, वराडग एक देश, जो आजकल भी बरार'
आदि क्षेत्र । ५ मेघ (हे २, १०५), "अ ४४, १६, १२)। १० एक श्रेष्ठि-पुत्र (सुपा वराडय नाम से प्रसिद्ध है (कुप्र २५५, वि [°ज वर्षा में उत्पन्न (षड् ) कण्ह ५५६)। ११ छन्द-विशेष (पिंग)। १२ सुख १८, ३५; राज)। २ कपर्दक, कौड़ा- न [कृष्ण] १ एक गोत्र । २ पुंस्त्री. उस गोत्र । वरुणवर द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव
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