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पाइअसहमहण्णवो
विचिंतण-विच्छिण्ण
विचितण न [विचिन्तन] विचार, विमर्श | विचेयण वि विचेतन] चैतन्य-रहित, २ ठाटबाट, सजधज, धूमधाम; 'महया निर्जीव (उप पृ ४६)
विच्छड्डेणं सोहणलग्गम्मि गुरुपमोएणं । विचितिअ वि [वि चन्तित] विचारित | विचेल वि [विचेल] वस्त्र-वजित, नंगा (पिंड | कमलावई उ रत्ना परिणीया (सुर १, १६६% (सुर ८, ३)।
कुप्र ४१, सम्मत्त १६३ धर्मवि ८२)विचिंतिर वि [विचिन्तयितु] विचार-कर्ता विच सक [वि + अय् ] व्यय करना। विच्छड्डि स्त्री [विच्छर्दि] १ विशेष वमन । (श्रा १२, सण)। विच्चेइ (ती ८)। देखो विव्व ।
२ परित्याग (प्राप्र)। ३ विस्तार: 'निम्मलो विचिक्की स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (राय ४६) विश्च पुन [दे] व्यूत, बुनने की क्रिया (राय केवलालोअलच्छिविच्छि-( ?च्छ )ड्डिकारों विचिगिच्छा स्त्री [विचिकित्सा] संशय, ६२) ।
(सिरि १०६१)। धर्म-कार्य के फल की तरफ संदेह (सम्मत्त विच्चन [दे. वमन् 1१बीच, मध्यः | विच्छड्डिअ वि [विच्छदित १ परित्यक्तः ६५) "विच्चम्मि य सज्झाओ कायव्वो परमपयहेऊ
'पामुक्कं विच्छडिअं अवहत्थिनं उज्झिनं चत्त विचिट्टि वि [ विचेष्टित] १ जिसकी (पुप्फ ४२७), "ठिो अहं कूडकवाडविच्चे
(पानः णाया १, १; ठा ८ प्रौप)। २ कोशिश की गई हो वह (सुपा ४७०)। २ (निसा १६)। २ मार्ग, रास्ता (हे ४,
विक्षिप्त, फेंका हुमा (से १०, ४६)। ४ न. चेष्टा, प्रयत्न (उप ३२० टी)। ४२१; कुमाः भवि)
विच्छादित, पाच्छादित (हम्मीर १७)। विचिण । सक [वि + चि] १ खोज | विञ्च सक [दे] समीप में आना। विच्चइ विच्छड्डमाण देखो विच्छड्डु = वि + छर्दय ।। विचिण्ण) करना। २ फूल आदि चुनना। (भवि)
विच्छद्दिअ देखो विच्छड्डिअ (नाट–मालती विचिणंति (पि ५०२)। वकृ. विचिण्णंत विच्चवण न [विच्यवन] भ्रंश, विनाश १२६) IV (मा ४६)(विसे २६१)।
विच्छय वि [विक्षत] विविध तरह से विचित्त वि [विचित्र] १ विविध, अनेक | विचामेलिय वि [व्यत्याम्रडित] १ भिन्न पीड़ित (सूम १, २, ३, ५)। देखो विक्खय।। तरह का; 'विचित्ततवो कम्मेहि' (महाः भिन्न अंशों से मिश्रित । २ प्रस्थान में ही विच्छल देखो विब्भल (षड् ४०) राया प्रासू ४२) । २ अद्भुत, माश्चर्यकारक
छिन्न हो कर फिर ग्रथित, तोड़ कर साधा विच्छवि वि [विच्छवि] १ विरूप प्राकृति'विहिणो विचित्तयं जाणिऊणं' (सुर १३, हुमा (विसे ८५५) ।
वाला, कुडौल (पएह १, ३–पत्र ५४) । ४)। ३ अनेक रंगवाला, शबल (णाया १, विचाय पुं [वित्याग] परित्याग; 'पूयम्मि
र २ . एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २८) ६; कप्प)। ४ अनेक चित्रों से युक्त (कप्प; वीयरायं भावो विप्फुरइ विसयविच्चाया'
विच्छाइय वि [विच्छायित] निस्तेज किया सुज्ज २०)। ५ पृ. पर्वत-विशेष (पएह १, (संबोध ८)
हुआ (सुपा १६६) ५-पत्र ६४)। ६ वेणुदेव और वेणुदारि विच्चि स्त्री [वीचि] तरंग, कल्लोल (पउम
विच्छाय वि [विच्छाय] निस्तेज, कान्तिनामक इन्द्रों का एक लोकपाल (ठा ४,१- १०६, ४१)।
रहित, फीका (सुर ४, १०६; कप्पू, प्रासू
१३७; महा; गउड) पत्र १९७)। कूड पुं[कूट] शीतोदा नदी विच्चु । देखो विंचुअ (उप ५६३, पि के किनारे पर स्थित पर्वत-विशेष (इक)
विच्छाय सक [विच्छायय ] निस्तेज विच्चुअ) ५०; परण १-पत्र ४६)।
करना'विच्छाएइ मियंक तुसारवरिसो पक्ख पुं[पक्ष] १ वेणुदेव और वेणुदारि | विच्चुइ श्री [विच्युति] भ्रश, विनाश
अणुगुरगोवि' (गउड) । वकृ. विच्छाअंत नामक इन्द्रों का एक लोकपाल (ठा ४,१- (विसे १८०)। पत्र १९७; इक)। २ चतुरिन्द्रिय जंतु की
(कप्पू)।विच्चोअय न [दे] उपधान, प्रोसीसा (दे ७,
विच्छिअ वि [दे] १ पाटित, विदारित । एक जाति (पएण १---पत्र ४६)।
२ विचित, चुना हुपा। ३ विरल (दे ७, विचित्ता श्री [विचित्रा] ऊर्ध्व लोक में | विच्छ देखो विअ = विद् ।
६१)। रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा ७- विच्छड्ड सक [वि + छर्दय ] परित्याग
विच्छिअ देखो विछिअ (उत्त ३६, १४८; पत्र ४३७) । २ अधोलोक में रहनेवाली एक करना। वकृ. विच्छड्डेमाण (गाया १,
पि ५०; ११८३०१) दिक्कुमारी देवी (राज) १८-पत्र २३६ )। संकृ. विच्छड्डइत्ता
विच्छिद सक [वि + छिद् ] तोड़ना, विचित्तिय वि [विचित्रित] विचित्रता से (कप्प)
अलग करना । विच्छिंदइ (पि ५०६) । भवि. युक्त (सरण) विच्छड्ड पुं[विच्छद] १ ऋद्धि, वैभव,
विच्छिंदिहिति (पि ५३२) । वकृ.विच्छिदविचुणिद (शौ) देखो विचिअ (नाट- संपत्ति (पामा दे ७, ३२ टी; हे २, ३६ माण (भग ८,३--पत्र ३६५)। मालती १४१)
षड्) । २ विस्तार (कुमाः सुपा १९२) विच्छिण्ण वि [विच्छिन्न] अलग किया विचुन्नण न [विचूणेन] चूर-चूर करना, विच्छड [दे]१ निवह, समूह (दे७, हुमा (विपा १, २ टि-पत्र २८ नाटटुकड़ा-टुकड़ा करना (द्र ३०)
| ३२ गउड से २,२,६,७२: गा ३८७)।। मुच्छ ८६)
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