________________
विच्छित्ति-विजय
पाइअसहमहण्णवो
७७७
८०) IN
विच्छित्ति स्त्री [विच्छित्ति] १ विन्यास, | विच्छेअय वि [विच्छेदक] विच्छेद-कर्ता विजंभ देखो विअभ = वि + जृम्भ । व. रचना (पाना स ६१५; सुपा ५४ ८३; (भवि)
विजंभंत (काप्र १८६) २६०; गउड)। २ प्रान्त भाग (सुर ३, विच्छेइ वि[विच्छेदिन] ऊपर देखो (कुप्र विजढ विवित्यक्त] परित्यक्त (उत्त ३६, ७०)। ३ अंगराग (गा ७८०)। २२) ।
८३ सुख ३६, ५३; मोघ २४६) विच्छिन्न देखो विच्छिण्ण (विपा १, २ टो- विच्छेइअ वि विच्छेदित विच्छिन्न किया
विजण देखो विअण = विजन । 'लक्खरण ! पत्र २८) v हुआ (नाट-विक्र ८२)
देसो इमो विजणो' (पउम ३३, १३; हे १, विच्छिव सक [वि + स्पृश 1 विशेष रूप विछोइय वि [दे] विरहित (भवि)।
१७७ कुमा)से स्पर्श करना । कवकृ. विच्छिप्पमाण
विच्छोड देवो विच्छोल। संकृ.विच्छोडिवि विजय सक [वि + जि] १ जीतना, फतह (कप्पा प्रौप)। (अप) (हे ४, ४३६)
करना। २ प्रक. उत्कर्ष से वर्तना, उत्कर्षविच्छिव सक [वि + क्षिप ] फेंकना ।
विच्छोम पुंदे. विदर्भ] नगर-विशेषः | युक्त होना। विजयइ (पव २७६-गाथा संकृ. विच्छिविन (नाट–चैत ३८) 'विदर्भ विच्छोमो' (प्राकृ ३८)।
१५६६); "विजयतु ते पएसा विहरेइ जत्थ विच्छ । देखो विंचुअ (गा २३७: जी विच्छुअ
वीरजिनाहो (धर्मवि २२)। कृ.विजेतव्य विच्छोय पुं [दे] विरह, वियोग (भवि) । १८ उत्त ३६, १४८, प्रासू १६ पाया १,८-पत्र १३३)
(पै) (कुमा)।
देखो विच्छोह । विच्छुडिअ वि [विच्छुटित] १ बिछुड़ा विच्छोल सक [कम्पय ] कॅपाना । विच्छो- विजय ' [विजय १ निर्णय, शास्त्र के अर्थ हुआ, जो अलग हुआ हो, विरहित; 'जहवि | लइ (हे ४, ४६)। वकृ. विच्छोलंत, का ज्ञान-पूर्वक निश्चय (ठा ४,१-- १८८ हु कालवसेणं ससी समुद्दाप्रो कहवि विछु विच्छोलित (कप्पू: सुर १०, १०७१५,
सुज १०, २२)। २ अनुचिन्तन, विमर्श (?च्छ)डिप्रो' (वज्जा १५६) । २ मुक्त
(औप) (राज)।
| विच्छोलिअ वि [कम्पित] कॅपाया हुआ विजय पुं[विजय] प्राश्रय, स्थान (दस ६, विच्छुरिम वि [दे] अपूर्व, अद्भुत (षड्) (कुमाः गउड)।
५६)। विच्छरिअ वि [विच्छुरित] १ खचित, | विच्छोलिअ वि [विच्छोलित] धौत, धोया |
| विजय ' [विजय] १ जय, जीत, फतह जड़ा हुआ; 'खचिग्नं विच्छुरिअयं जडिप्रं' | हुमा; 'धोनं विच्छोलिय' (पान)।
(कुमा; कम्म १, ५५, अभि८१)। २ एक (पान)। २ संबद्ध, जोड़ा हुमा (से १४, | विच्छोव सक[दे] वियुक्त करना, विरहित |
देव-विमान (अनुः सम ५७, ५८)। ३ ७६) । ३ व्याप्त (पउम २, १०१, सुपा ६;
विजय-विमान-निवासी देवता (सम ५६)। करनाः २१२, सुर २, २२१)
४ एक मुहूर्त, आहोरात्र का बारहवाँ या ___ 'कालेण रूढपेम्मे परोप्पर विच्छह सक [वि + क्षिप ] फेंकना, दूर
सतरहवाँ मुहूर्त (सम ५१, सुज्ज १०, १३
हिययनिव्वडियभावे। करना । विच्छुहइ (से १०, ७३ गा ४२४
कप्पा गाया १,८-पत्र १३३)। ५ भग
अकलुणहियो एसो प्र)। कृ. विच्छूढव्य (से १०, ५३)
वान् नमिनाथजी का पिता (सम १५१) ।
विच्छोवइ सत्तसंघाए विच्छह प्रक [वि + क्षुभ् ] विक्षोभ करना,
६ भारतवर्ष के बीसवें भावी जिनदेव (सम
(स १८६)। चंचल हो उठना । विच्छुहिरे (हे ३, १४२) विच्छोह पुंदे विरह, वियोग (दे ७, ६२,
१५४० पद ४६)। ७ तृतीय चक्रवर्ती के पिता
का नाम (सम १५२) । ८ आश्विन मास विच्छूढ वि [विक्षिप्त] १ फेंका हुआ, दूर हे ४, २६६) ।
(सुज्ज १०, १६)। भारतवर्ष में उत्पन्न किया हुआ (से ६, १६) । २ प्रेरित (पास) विच्छोह [विक्षोभ] १ विक्षेपः 'जे संमु
द्वितीय बलदेव (सम ८४; १५८ टीः अनु; विच्छूट वि[दे] वियुक्त, विरहित, विघटितः | हागप्रबोलतवलिअपिअपेसिप्रच्छिविच्छोहा (गा
पव २०६) । १० भारतवर्ष का भावी दूसरा 'विच्छूढा जूहायो' (स ६७८) २१०), 'पुलइयकवोलमूला विमुक्कडक्ख
बलदेव (सम १५४)। ११ ग्यारहवें चक्रवर्ती विच्छूढव्व देखो विच्छह = वि + क्षिप् । विच्छोहा (सम्मत्त १६१)। २ चंचलता
राजा का पिता (सम १५२)। १२ एक राजा विच्छेअ ' [दे] १ विलास । २ जघन (दे (उप पृ १५८)
(उप ७६८ टी)। १३ एक क्षत्रिय का नाम विछल सक [वि+ छलय ] छलित करना, (विपा १,१-पत्र ४)। १४ भगवान् चन्द्रविच्छेअ [विच्छेद] १ विभाग, पृथकरण | ठगना । कर्म. विछलिजइ (महा)। प्रभ का शासन-देव (संति ७)। १५ जंबू(विसे १००६)। २ वियोग (गा ६१३)। विछोय देखो विच्छोव। विछोयइ (स १८६ द्वीप का पूर्व द्वार। १६ उस द्वार का ३ अनुबन्ध-विनाश, प्रवाह-निरोध (कप्पू) टि)।
अधिष्ठाता देव (ठा ४, २-पत्र २२५)। विच्छेअण न [विच्छेदन] ऊपर देखो विजइ वि [विजयिन्] विजेता, जीतनेवाला १७ लवण समुद्र का पूर्व द्वार। १८ उस (राज) (कप्पू: नाट-विक्र ५)
द्वार का अधिपति देव (ठा ४, २--पत्र.
६८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org