Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas
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पाइअसहमहण्णवो
विरुद्ध-विलद्ध विरुद्ध वि[विरुद्ध] विरोधवाला, विपरीत, विरोह [विरोध विरुद्धता, प्रतोपता, वैर, ५८)। ३ न. नक्षत्र-विशेष, सूर्य के द्वारा परिप्रतिकूल, उलटा (प्रौप; गउड) यारि वि दुश्मनाई (गउड; नाट–मालती १३८ । भोग कर छोड़ा हुआ नछत्र (विसे ३४०६)। [चारिन्] विपरीत पाचरण करनेवाला भवि) ।
विलंबग वि [विलम्बक] धारण करनेवाला (उप ७२८ टो)।
विरोहय वि[विरोधक] विरोध-कर्ता (भवि) (सूत्र १, ७, ८) विरुव देखो विरूव (दे ६, ७५)।
विरोहि वि [विरोधिन्] दुश्मन, प्रतिपन्थी विलंबणा देखो विडंबणा (प्रासू १०३) ।
पि ४०५, नाट-शकु १६)। विरुह अक [वि+ रुह ] विशेष रूप से विरोहिय वि [विरोधित ] विरोध-प्राप्त
विलंबणा स्त्री [विडम्बना] निर्वतना, बनावट, उगना, अंकुरित होना । विरुहंति (उत्त १२, (वज्जा ७०)
कृति (अणु १३६)। १३)।
विल अक [ब्रीड् ] लज्जा करना, शरमिन्दा विलंबि न [विलम्बिन्] १ सूर्य के द्वारा विरुह देखो विरूह (पएण १-पत्र ३६;
होना । संकृ. विलिऊण (स ३७५) । भोकर छोड़ा हुआ नक्षत्र । २ सूर्य जिसपर श्रा २०)। दिल न [विल] नमक-विशेष, एक तरह का
हो उसके पीछे का तीसरा नक्षत्र (वव १) विरूअ । वि [विरूप] १ कुरूप, भौंडा,
नोन (प्राचा २, १, ६, ६)।
विलंबिअ वि [विलम्बित] १ विलम्ब-युक्त विरुव कुडौल, खराब, कुत्सित (गा २६३; विलइअ वि [दे] १ अधिज्य, धनुष की
(कप्प) । २ न, नक्षत्र-विशेष (वव १)। ३ भविः स्वप्न ४४ सुर १, २६, उप ७२८ टी)। २ विरुद्ध, प्रतिकूल, उलटा (सुर ११, डोरी पर चढ़ाया हुआ। २ दोन, गरीब (दे
नाश्व-विशेष (राय)
विलक्ख वि [विलक्ष १ लजित, शरमिन्दा ८०)। ३ बहुविध, अनक तरह का, नानाविध
०,६२)। ३ ऊपर चढ़ाया हुमा, आरोपित विलक्ख विविलक्ष लाजत,
'पारणा जस्स विलइया सीसे सेसव्व हरिहरे- । (से १०, ७०; सुर १२, ६६; सुपा १६८ (प्राचा)।
हिंपि' (धरण २५), 'पढ़मं चित्र रहवइणा ३२८ महा; भवि)। २ प्रतिभा शून्य, मूढ विरूह पुन [विरूढ] अंकुरित द्विदल धान्य
उरि हिपए तुलियो भरोध विलइयों (से १०,७०) (पव ४)
विलक्ख न [वलक्ष्य विलक्षता, लजा, विरेअ सक [वि+ रेचय ] १ मल को
विलओलग [दे] लुटाक, लुटेरा (राज)। शरम (सुर ३, १७६)। नीचे से निकालना। २ बाहर निकालना । विरेअइ (हे ४, २६ )। वकृ. विरेअंत
विलओली स्त्री [दे] १ विस्वर वचन । २ विलक्खिम पुंस्त्री. ऊपर देखो ‘उवसमियविल(कुमा ६, १७)
विलोकना, तलाशी (पएह १, ३-पत्र क्खिम--(भवि) ।
५३) । देखो बिलकोली। विरेअण न [विरेचन] १ मल-निस्सारण,
विलग्ग सक [वि + लग्] १ अवलम्बन जुलाब (उवक २५; रणाया १, १३–पत्र
विलंघ सक [वि + लङ्घ ] उल्लंघन करना, सहारा लेना। २ चढ़ना, प्रारोहण १५१)। २ वि. भेदक, विनाशक; 'सयल
करना। विलंघेति (धर्मसं ८४२)। वकृ. करना । ३ पकड़ना । ४ चिपटना। गुजराती दुक्खविरेयरणं समणत्तणंति' (स २७८० विलंघंत (काल)
में 'वळगवु" । विलग्गसि, विलग्गेजासि (महा)। क्लिंघण न [विलङ्घन] उल्लंघन, अतिक्रमणः वकृ. विलग्गंत (पि ४८८) । विरेल्लिअ देखो विरिल्लिअ = तत (णाया १,
'ही ही सोलविलंघरणं' (उप ५६७ टी)। विलग्ग वि [विलग्न] १ लगा हुआ, चिपटा १७ टी-पत्र २३४: गउड ४३५)
विलंघल (अप) देखो विहलंबल (सण) हुमा, संलग्न; 'जह लोहसिला अप्पंपि बोलए विलंघलिअ (अस) वि [विह वलाङ्गित]
तह विलग्गपुरिसंपि' (संबोध १३ से ४, २; विरोयण पुं[विरोचन] अग्नि, वह्नि (भत्त ___ व्याकुल शरीरवालाः 'मुच्छविलंघलिउ' (सण)
३, १४२, गा १८८:५६; महा)। २ १२३)। बिलंब देखो विडंब = वि + डम्बय् । वकृ.
अवलम्बित (सुर १०; ११४)। ३ आरूढ विरोल सक[ मन्थ् ] विलोडना, विलोड़न विलंबमाण (धर्मसं १००५) ।
'अन्नया पायरिया सिद्धसेलं तेण समं वंदगा करना । विरोलइ (हे ४, १२१ षड़)।
विलग्गा' (सुख १, ३)। विलंब अक [वि + लम्ब् ] १ देरी करना । विरोल सक [वि + लग्] १ अवलम्बन
विलज्ज अक [वि + लम्ज् ] शरमाना ।
२ सक. लटकाना, धारण करना । कर्म. करना । २ आरोहण करना, चढ़ना । विरोलइ
विलजामि (कुप्र ५७)।विलंबीअदि (शौ) (नाट-विक्र ३१) । वकृ. (धात्वा १५३) विलंबंत (से ३, २६)। संकृ विलंबिअ
विट्टि पुंस्त्री [वियष्टि साढ़े तीन हाथ में विरोलिअ वि [मथित] विलोडित (पान
(नाट-वेणी ७:)। कृ. विलंवणिज (श्रा चार अंगुल कम लट्ठी, जैन साधुओं का उपकुमा; भवि)।
करण-दंड (पव ८१) विरोह सः [वि+रोधय ] विरोध करना। विलब [विलम्ब] १ देरी, अशीघ्रता (गा विलद्ध वि [विलब्ध] अच्छी तरह प्राप्त, विरोहंति (संबोध १५)
५८८) । २ तप-विशेष, पूर्वार्ध तप (संबोध। सुलब्धः (पिंग)।
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