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विमद सक [ वि + मर्दय..] १ संघर्ष करना । २ मर्दन करना । कवकृ. विमद्दिजमाण (सिरि १०३८) ।
चिमद [[म] विनाश 'भारतपुरिय संतदानिविमना' (ग) २ संघर्ष (७२२ कुत्र ४६ ) विमण [विमर्दन] ऊपर देखो (भवि) 1 विमन [ + मन्] मानना, गिनना । विमिन्त' (मुर
४,२४
विमय पुं [हे] पर्व-वनस्पति- विशेष (परण १--पत्र ३३) ।
विमर (प) नीचे देखो विरह (ग) 1 विमरिस सक [ वि + मृश् ] विचारना । क्र. मरिसिव्य (शी) (अभि १८४) विमरिस पुं [विमर्श ] विकल्प, विचार (राज) 1
पामण्णवो
[] मन-प्राण देवलोक के इन्द्र का एक पारियानिक विमान (ठा १० - पत्र ५१८) वा [वादन] १ भारत
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विमला बी [विमला ] १ ऊर्ध्व दिशा (ठा १० - पत्र ४७८ ) । २ धरणेन्द्र के लोकपालों की प्रग्र-महिषियों के नाम (ठा ४, १ -पत्र २०४) । ३ गीतरति और गीतयश नाम के गन्धवेन्द्रों की अग्र महिषियों के नाम (ठा ४, १-पत्र २०४ । ४ पनकी दीक्षा शिविका (सम १५१)
विमल वि [[म] १ मल-रहित, विशुद्ध निर्मल (कप्पः श्रप से ८ ४९ पउम ५१, २७ कुमाः प्रासू २; १५७; १६१) । २ पुं. इस अवसर्पिणी-काल में उत्पन्न तेरहवें जिनदेव (सम ४३; पडि ) । ३ भारतवर्ष में होनेवाले बाई निवास १५४) ४ एक प्राचीन जैन आचार्य और कवि जिन्होंने विक्रम की प्रथम शताब्दी में 'पउमचरिश्र ' नामक जैन रामायण बनाई है (उम ११५ ११८) २५ एक महाग्रह, ज्योतिष्क देव - विशेष (ठा २, ३ – पत्र ७८) । ६ भगवान् श्रजितनाथ का पूर्वजन्मी नाम (सम १५१) । ७ पुंन. सहस्रार देवलोक के इन्द्र का एक पारियानिक विमान (ठा - पत्र ४३७) ८ ब्रह्म देवलोक में स्थित एक देव - विमान (सम १३ देवेन्द्र १४०)। एक वेव देववमान (सम ४१ देवेन्द्र १४१ ) । १० लगातार छः दिनों का उपवास । ११ लगातार सात दिनों का उपवास (संबोध १० १२. दया (ए २, १ -पत्र E ) घोस पुं [दोष] एक कुलकर पुरुष (सम १५०) 'चंद पुं ['चन्द्र ] एक जैन श्राचार्यं (महा) ।विमाण सक [ वि + मानय ] श्रपमान करना, तिरस्कार करना । विमाज्जह (महा ५६)
विमलिअ वि [विमर्दित ] जिसका मदन किया गया हो वह, घृ ( से 8, ७) 1 विमलिअ वि [दे] १ मत्सर से उक्त । २ शब्द सहित, शब्दवाला (दे ७, ७२) बिमलेसर पुं [विमलेश्वर ] सिद्धचक्रजी का श्रधिष्ठायक देव (सिरि ७७३) 1 निमलोत्तर [बिमलोत्सर] ऐरयल एक भावी जिनदेव (सम १५४) । विमहिद (शौ) वि [विमथित] जिसका मथन किया गया हो वह (नाट मानवि ४० ) 1 विमाउ श्री [विमातृ] सौतेली माँ (सत्त ३५ १७१) 1
का
'पहा श्री [भ] भगत
की दीक्षा शिविका ( विचार १२९ ) वर
वर्ष के भावी प्रथम जिनदेव, जिनके दूसरे नाम देवसेन तथा महापद्म होंगे (ठा ६-पत्र ४५६) । २ कुलकर पुरुष - विशेष (सम १०४ : १५०; १५३; पउमः ३, ५५)। ३ भारतवर्षं का एक भावी चक्रवर्ती राजा (सम १५४) । ४ एक जैन, जो भगवान् अभिनन्दन के पूर्व जन्म में गुरु थे ( पउम २०, १२ : १७) । ५ भगवान् संभवनाथ का पूर्व जन्मीय नाम (सम १५१ ) सामि ['स्वामिन] सिद्धचक्रजी का श्रधिष्ठायक देव (सिरि २०४ ) 1 "सुंदरी श्री ["सुन्दरी] वह वासुदेव की पटरानी (पउम २० १८६ ) 1 मिलन [विमर्दन] मरिण श्रादि को शाण विमाणि वि [विमानित ] अपमानित (पिंड पर चिराना घर्षण (१, १४०) ४१३ कप्प; महा ) 1 बिमलहर [] कलकल, कोलाहल (दे ७, विमिस्स श्र [विमृश्य ] विचार करके 1 ७२) । "गारि व [वारिन] विचारपूर्वक करने वाला ( स १८४ : ३२४)
विमद्द- विमुक्क
विमाण पुंन [विमान] १ देव का निवासभवन (सम २; ८ ६; १०; १२ ठा ८ १०; उवा कप्पा देवेन्द्र २५१:२५३३ परह १,४पत्र ६८ ति १२ ) । २ देव यान, आकाश यान, आकाश में गति करने में समर्थ रथ ( से 8, ७२ कप ) । ३ अपमान, तिरस्कार । ४ वि. मान-रहित, प्रमाण शून्य ( से 8; ७२ ) 1विभक्ति स्त्री ["प्रविभक्ति ] जैन ग्रन्थविशेष (सम ६६ ) + भवण न [भवन ] विमानाकार गृह (कप्पवासि [वासिन्] देवों की एक उत्तम जाति, वैमानिक देव ( परह १, ४--पत्र ६८ ति १२) । विमाणणा श्री [विमानना] तिरस्कार (११२) ।
वगना
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विभिस्स वि [विमिश्र ] मिश्रित, मिला हुआ, युक्त (पंच २, ७ महा) 1
विमिस्सण न [विमिश्रण ] मिश्रण, मिलावट ( सम्मत्त १७१) 1
मिसिय वि[विमिश्रित] विविध मिश्रित (भवि) 1 विमुउल देखो विमउल (राज) विमुंच सक[+]
छोड़ना, बन्धन- मुक्त करना । २ परित्याग करना । विमुंबई (पण कर्माचा २. १६. चिंत (महा), विमु [? मुंच] माण (गाया १, ३ - पत्र ६५) । विमो (१४टी) विमो
(ठा २, १ - पत्र ४७ ) IV विमुकुल देखो बिमउल (परह १, ४ - पत्र 08) 1~
विभुक्क वि [विमुक्त] १ छुटा हुमा, छुट्टा, बन्धनरहित 'जय
महा (४६; पाम: श्रचानि ३४३) । २ परित्यक्तः 'विमुक्कजीयारण' (महा ७७ ) । ३ निःसंग, संग रहित ( श्राचा २, १६,८)
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