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विइण्ह-विउवसिय
पाइअसहमण्णवो
७६६
विइण्ह वि [वितृष्ण] तृष्णा-रहित, निःस्पृह विउक्कस सक [व्युत् + कर्षय ] गवं विउडण न [विनाशन] १ विनाश (स २७ -
(से २, १० प्रापः गा६३ १७६)। - करना, बड़ाई करना । विउकसेजा, (सूत्र १, ६६१)। २ वि. विनाश-कर्ता (स ३७ विइत्त देखो विचित्त(गउडः स २३६, ७४०) १३, ६), विउकसे (पाचा १, ६, ४, २) २८२) । विइत्त देखो विवित्त (स ७४०)।- विउक्कस्स [व्युत्कर्ष गर्व, अभिमान (सूत्र विउडिअ वि [विनाशित] नष्ट किया गया १, १, २, १२)
(पाअः कुमा; उप ७२८ टी)। विडत्ता । देखो विअ =विद् ।
-जिट। विइत्ताणं दस
विउच्छा देखो वि-उच्छा = विद्-जुगुप्सा ।। विउण वि [विगुण] गुण-रहित, गुण-हीन वित्तिद (शौ) देखो विचित्तिय (स्वप्न विउच्छेअ पुं[व्यवच्छेद] विनाश (पंचा
(दे ६, ७८)
विउत्त वि[वियुक्त] विरहित, वियोग-प्राप्त १७, १८)।
(सुर ३, १२३, १०, १४५, सुपा ११०० विइत्तु देखो विअ = विद्। विउज्जम अक [व्युद् + यम् ] विशेष उद्यम
काल; सण) विइन्न देखो विइण्ण - वितीणं (सुर ४, ११) करना। वकृ. 'परिणयपि विउज्जमंताणं'
विउत्ता देखो विअत्त = वि + वर्तय ।। विइमिस्स वि [व्यतिमिश्र] मिश्रित, मिला
(पउम १०२, १३७)
विउत्थिअ देखो विउदिअ (कुप्र २२४॥ हुग्रा (प्राचा) विउझ अक [वि + बुध् ] जागना ।
३६६) विउ वि [विद्, विद्वस ] विद्वान्, पण्डित,
विउज्झइ (भविः सण)।
विउद देखो विउअ%3Dविवृत (प्राप्र)। जानकार (णाया १, १६ उप ७६८ टी सुर | विउट्ट सक [वि + कुट्टय् ] विच्छेद करना,
विउद्ध वि [विबुद्ध १ जागृत (सुपा १४०)। १, १३५; सूत्र २, १, ६०, रंभा) विनाश करना। हेकृ. विउट्टित्तए (ठा २,
२ विकसित (स ७६८)। पकड स्त्री [प्रकृत] १ विद्वान् द्वारा १-पत्र ५६, कस)
विउप्पकड वि [व्युत्प्रकट] अतिशय प्रकान्त । २ विद्वान् द्वारा किया हुआ (भग ७, विउट्ट सक [वि+त्रोटय ] तोड़ डालना।।
प्रकट-व्यक्त (भग ७, १० टी-पत्र १० टी-पत्र ३२५; १८,७--पत्र ७५०)। विउट्टइ (सूत्र २, २, २०)। हेकृ. विउट्टित्तए ३२५)। विउअ वि [वियुत] वियुक्त, रहित; 'दव्वं (ठा २, १-पत्र ५६)
विउब्भाअ अक [व्युद् + भ्राज ] शोभना, पज्जवविउभं दव्व-विउत्ता य पजवा नत्यि' विउट्ट प्रक [वि + वृत् ] १ उत्पन्न होना। दीपना, चमकना। वकृ. विउम्भाएमाण (सम्म १२)
२ निवृत्त होना। विउदृति (सूत्र २, ३, (भग ३, २-पत्र १७३) । विउअ वि [विवृत] १ विस्तृत । २ व्या
. १), विउट्ट जा (ठा ८ टी-पत्र ४१८) विउब्भाअसक [व्युद् + भ्राजय ] शोभित ख्यात (हे १, १३१)।
विउट्ट सक [वि + वर्तय] १ विच्छेद | करना । वकृ. विउभाएमाण (भग ३, २) विउअ (अप) देखो विओअ = वियोग (हे ४,
करना। २ धूमकर जाना । विउट्टति (स विउम वि[ विद्रस 1 विद्वान, विज्ञ; विउम ४१६).
१७८)। संकृ. विउट्टाणं (प्राचा १, ८, १, ता पयहिज संथर्व' (सूम १, २, २, ११).. विउंचिआ स्त्री [दे. विचर्चिका] रोग-विशेष, २)। हेकृ. विउट्टित्तए (ठा २,१-पत्र |
विउर देखो विदुर (वेणी १३४) । पामा रोग का एक भेद; 'केवि विउचिअपामामनिया सेवा सिरि ११७ विउट्ट देखो विअट्ट = विवृत्त (कप्प)।
विउल वि [विपुल] १ प्रभूत, प्रचुर। २
विस्तीणं, विशाल (उवा: औप)। ३ उत्तम, विउंज सक [वि + युज] विशेष रूप से | विउट्टण न [विवर्तन] निवृत्ति (मोघ ७६१)
श्रेष्ठ (भग ६, ३३)। ४ अगाध, गम्भीर जोड़ना । विउंजंति (सूत्र २, २, २१)। विउट्टण न [विकुट्टन] १ विच्छेद । २ पालो
(प्राप्र)। ५ पृ. राजगिर के समीप का एक विउक्कंति स्त्री [व्युत्क्रान्ति] उत्पत्ति प्रहोनाति - चना, अतिचार-विच्छेद (मोघ ७६१)। ३ |
पर्वत (पउम २,३७)°जस [यशस्] विउक्कंतियं चयमाणे' (भग १, ७)। वि. विच्छेद-कर्ता (धर्मसं ६६९)
एक जिनदेव का नाम (उप ६८६ टी) मइ विउकंति स्त्री [व्युत्क्रान्ति, व्यवक्रान्ति] विउट्टणा स्त्री [विकुट्टना] १ विविध कुट्टन ।। स्त्री [°मति मनःपर्यव नामक ज्ञान का एक मरण, मौत (भग १, ७)
२ पीड़ा, संताप (सूत्र १, १२, २१)। भेद (कम्म १,८ प्रावम)। २ वि, उक्त विउक्कम सक [व्युत् + क्रम् ] १ परित्याग
विउष्ट्रिअ वि [व्युत्थित] जो विरोध में ज्ञानवाला (कप्प; औप) अरी स्त्री करना। २ उल्लंघन करना । ३ अक. च्युत
[करी] विद्या-विशेष (पउम ७, १३८)। होना, नष्ट होना, मरना। ४ उत्पन्न होना।
देखो विपुल विउकमंति (भगः ठा ३,३-पत्र १४१)। विउड सक [वि + नाशय] विनाश
विउव देखो विउव्य = वैक्रिय (कम्म ३, २) संकृ. विउकम्म (सूत्र १, १, १, ६; उत्त , - करना। विउडइ (हे ४, ३१)। कम. विउवसिय देखो विओसिय = व्यवशमित १५, प्राचा १, ८, १, २)।
विउडिजंति (स ६७६) ६७
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