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वस्मा-बलवा
पाइअसहमहण्णवो
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३-पत्र ३४८) । १३ पृ. ब. एक पाय- वल सक [ग्रह ] ग्रहण करना । वलइ के बाँक से वेष्टित भू-भाग (सूत्र २, २, ८ देश (पव २७५)4 °काइय पुं[कायिक] (हे ४, २०६; दे ७, ८६)। वलणिज भग)। ६ माया, प्रपंच (सूत्र १, १२, २२, वरुण लोकपाल के भूत्य-स्थानीय देवों की एक (कुमा)।
सम ७१) ७ असत्य वचन, मृषा मूठ (पएह जाति (भग ३, ७-पत्र १९६). देवकाइय वल पुं [वल] रस्सी आदि को मजबूत करने १, २--पत्र २६)। ८ बलयकार वृक्ष, नारि
[ देवकायिक] वही अर्थ (भग ३, ७) के लिए दिया जाता बल (उत्त २६, २५) केल, नारियल आदि (परण १; उत्त ३६,६६, प्पभ ' [प्रभ] १ वरुणवर द्वीप का | वलअंगी स्त्री दि] वृतिवाली, बाड़वाली (दे सुख ३६.६६) आर, रिअ पुकार, एक अधिष्ठायक देव (जीव ३-पत्र ७,४३)
कारक कंकण बनानेवाला शिल्पी(दे ७,५४)३४८)। २ वरुण लोकपाल का उत्पात
वलइय वि [वलयित] १ वलय-कंगन की वलय वि [वलक] मोड़नेवाला 'छगलग-गलपर्वत (ठा १०--पत्र ४८२) + पभा स्त्री तरह गोलाकार किया हुआ, वलय की तरह
वलया' (पिंड ३१४) [प्रभा] वरुणप्रभ पर्वत की दक्षिण दिशा
मुड़ा हुमा (पउम २८,१२४; कप्पू)। २ वेष्ठित | वलय न १ क्षेत्र, खेत । २ गृह, घर में स्थित बरुण लोकपाल की एक राजधानी (कप्पू)
(दे ७, ८४) । (दीव) ५ °वर पुं[वर] एक द्वीप का नाम वलंगणिआ स्त्री दे] बाड़वाली (दे ७, वलय दख
वलय देखो वल = वल् + मयग वि [मृतक] (जीव २-पत्र ३४८ सुज्ज १९)
१ संयम से भ्रट होकर जिसका मरण हुआ वरुणा स्त्री [वरुण] १ अच्छ देश की प्राचीन | वलक्किअ वि [दे] उत्संगित, उत्संग-स्थित हो वह । २ भूख प्रादि से तड़फता हुआ जो राजधानी (पव २७५)। २ वरुणप्रभ पर्वत (षड् १८३)।
मरा हो वह (प्रौप) मरण न [ मरण] की पूर्व दिशा में स्थित बरुण नामक लोकवलक्ख वि [वलक्ष] श्वेत, सफेद (पास)।
संयम से च्युत होनेवाले का मरण (भग पाल की एक राजधानी (दीव)। ३ एक राज
वलक्ख न [वलाक्ष] प्राभूषण-विशेष, एक पत्नी (पउम ७, ४४)।
वलयणी स्त्री [दे] वृति, बाड़ (दे ७, ४३) ।
तरह का गले में पहनने का गहना (प्रौप)।। वरुणी स्त्री [वरुणी] विद्या-विशेष (पउम ७,
वलयबाहा ! स्त्री [दे] १ दीर्घ काष्ठ, जिसपर वलग्ग सक [आ + रुह ] प्रारोहण करना, १४०)
वलयबाहु ध्वजा प्रादि बांधा जाता है चढ़ना। गुजराती में 'वळगवु'। वलग्गइ
वह लम्बा काष्ठ; 'संसारियासु बलयबाहासु वरुणोअ) पुं[वरुणोद] एक समुद्र (ठा (हे ४, २०६; षड्; भवि)। वरुणोद पत्र ४०५ इक सुज्ज १९)
ऊसिएसु सिएसु भयग्गेसु' (णाया १८-पत्र वलग्ग वि [आरूढ] जिसने प्रारोहण किया १३३) । २ हाथ का एक प्राभूषण, चूड़ा, वरुल पुं. ब. [वरुल] देश-निशेष (पउम ९८, हो वह, चढ़ा हुआ (पास)।
कड़ा (दे ७, ५२ पान) वलग्गंगणी स्त्री [दे] वृति, बाड (दे ७,
वलया देखो वडवाणल पुं[नल] वडवरूहिणी स्त्री [ वरूथिनी ] सेना, सैन्य ४३) ।
वाग्नि (हे १, १७७, षड्) "मुह न (पान)। वलग्गिअ देखो वलग्ग = प्रारूढ़ (कुमा)
[मुख] १ बडवानल (हे १, २०२; प्रारू, वलण न [वलन] १ मोड़ना, वक्र करना वरेइत्थ न [दे] फल (दे ७, ४७)।
पि २४०)। २ पुं. एक बड़ा पाताल-कलश (दे १, ४२)। २ प्रत्यावर्तन, पीछे लौटना
(ठा ४, २--पत्र २२६; टी-पत्र २२८% वल अक [वल] १ लौटना, वापस पाना। (से ८, 5 गउड)। ३ बाँक, वक्ता (हे २ मुड़ना, टेढ़ा होनाः गुजराती में 'वळवु" ।
सम ७१) ।। ४, ४२२) ३ उत्पन्न होना। ४ सक, ढकना। ५ जाना,
वलया स्त्री [दे] वेला, समुद-कूल+ मुह न वलण (शौ. मा) देखो वरण (प्राकृ ८५ हे
[मुख वेला का अग्र भागः । गमन करना। ६ साधना। वलइ (हे ४, २६३).
'ति बलागमुहम्मुक्को, तिक्खुत्तो वलयामहे । १७६ षड् गा ४४६; धात्वा १५२) ।
वलणा स्त्री [वलना] देखो वलण = वलन भवि, वलिस्सं (गहा) । वकृ. वलंत, वलय,
ति सत्तक्खुत्तो जालेणं, सइ छिन्नोदए दहे ।। (गउड)। वलाय, वलमाण (हे ४, ४२२, गा २५;
एयारिसं ममं सत्तं, सढं घट्ठियघट्टणं । वलस्थ वि [दे] पर्यस्त (भवि)। से ५, ४७: ५, ४२; औपः ठा २, ४, पव
इच्छसि गलेण तुं, अहो ते अहिरीयया ।। वलमय न [दे] शीघ्र, जल्दी; 'वच्च वलमयं १५७) । कवकृ. वलिजंत (से ४, २६)।
(पिंड ६३२, ६३३)। तत्थ' (दे ७, ४८) संकृ. वलिऊण (काल)। हेकृ. वलिउं (गा
वलयाइअ वि [वलयायित] जो वलय की वलय पुन [वलय] १ कंकण, कड़ा (औपः ४८४; पि ५७६)। कृ. वलियम्व (महा:
तरह गोल हुआ हो वह (कुमा) गा १३३; कप्पू; हे ४, ३५२)। २ पृथिवीसुपा ६०१)।
वेष्टन, धनवात आदि (ठा २, ४-पत्र| वलवाट्ट [दे] देखो बलवट्रि (दे६,६१) वल सक [आ + रोपय् ] ऊपर चढ़ाना । ८६) । ३ वेष्टन, बेठन । ४ वतुल, गोलाकार वलवा देखो वडवा; गोमहिसिवलवपुराणो' वलइ (दे ४, ४७; दे ७, ८६)
(गउडा कप्पू; ठा ५, १)। ५ नदी आदि के (पउम २, २; दे ७, ४१; इक; पि २४०) ।।
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