Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 817
________________ वय - वरक्खा मंत वि [ वत् ] व्रती १ उम्र, प्रायु (ठा ३, २ प्रासू १५४) ( आचा २,१, ६, १ ) 1 वय पुंन [ वयस् ] ३, ४, ४; गा २३२; उप पृ १८ कुमा; प्रासू ४८; श्रा १४ ) । २ पक्षी (गउड उप १८) त्थवि [स्थ] तरुण, युवा (सुख १. १६) परिणाम [परिणाम] पुं वृद्धता, बुढ़ापा (से ४, २३ पाय) । • [पच ] पचन, पाक (श्रा २३) । "वय देखो पय = पद ( स ३४५ श्री २३; गउड कप्पू से १, २४) । "वय देखो पय = पयस् (कुमा) । - वयंगन [दे] फल-विशेष (सिरि १११०) । पतरि व [त्यन्तरित] बाड़ से तिरोहित (दे २, १३) । वयं पुं [वयस्य ] समान उमरवाला मित्र (ठा ३, १ –पत्र ११४ हे १, २६० महा) । - वयंसि देखो वयंसि वचस्थित् (राम) - ajita [वयस्या ] सखी, सहेली (कप्पू ) 1वड पुं [दे] वाटिका, बगीचा (दे ७, ३५) । - वयण न [दे] १ मन्दिर, गृह । २ शय्या, बिछौना (दे ७, ८५) । - वयण पुंग [ वदन] १ पुल, घो व' (प्राकृ ३३ प ३५८ सुर२, २४३; ३, ४४; प्रासू ε२ ) । २ न कथन, उक्ति (विसे २७९४) । ८४; पात्र) । aro [दे] लता-विशेष, निद्राकरी लता (दे ७, ३४ पा "वयस देखो वय वयस् 'सवय' (घाचा १, ८, २, २) । = वयस्स देखो दयंस ( स ३१४ मोह ४७; अभि ५५: स्वप्न ७६ ) IV वया स्त्री [वपा ] १ विवर छिद्र । २ मेद, चरबी (श्रा२३) । । यया श्री [यथा] १ ओषधि-विशेष २ मैना सारिका (श्रा २३) । देखो वचा | वया स्त्री [ व्यजा] १ मार्ग- विशेष, ऊष को खींचने के लिए रज्जुबद्ध घट श्रादि डालने का मार्गं । २ प्रेरण-दण्ड (श्रा२३) । [] १ सगाई करना, संबन्ध करना । २ आच्छादन करना, ढकना । ३ याचना करना । ४ सेवा करना । वरइ (हे ४, २३४; सुज (कुप्र ११. प्रात्रः प), 'वरं वरोह' ( ८०), 'वरं वरसु इच्छित्रं (श्रा १२ ) । भवि. वरिस्सइ (सिरि ८१९ ) । कृ. वरणीअ ( पउम २८, १०४ ) V [पचनीय] १ वाच्य कथनीय अभिधेय; 'वत्थु दष्वद्विश्रस्स वयरिगजं' (सम्म २१,६०) २ निन्दनीय (सुपा ३०० ) । ३ उपालम्भनीय, उलहना देने योग्य ( कुप्र ३ ) । ४ न, वचन, शब्द ( से ४, १३० सम्म ५३६ का ८९६) । ५ लोकापवाद, निन्दा (स ५३२) । रवि [] ययन [ वचन] १ किचन 'वया, वयणाई' (हे १, ३३ प २ सुर ३, ६४ प्रासू १४ १३४ १५०; कुमा) । २ एकत्व श्रादि बोधक आदि संख्या का atre] व्याकरणावर प्रत्यय ( पराह २ २ टी -पत्र ११८ ) | ७.२४) वयर देखो वइर = वज्र (कप्प उवः श्रोघभा सार्धं ३५ भगः श्रप) 1 - पाइअसहमहावो वयराड देखो वइराड (सत्त ६७ टी) । - वयल वि [दे] १ विकसता, खिलता (दे ७, ८४) २. कोलाहल दे ७० ८; "वयर देखो पयर = प्रकर (से १,२२) । Jain Education International [ वर ] १ प्राप्त करने की इच्छा करना। २ संसृष्ट करना । वर, वरयति (मवि तुज ७ ) के सूरियं वरयते' (सुन t, t). after (gva v) 1~ [पर] १ पति, स्वामी, दुलहा (स७८ स्वप्न ४१; गा ४०४; ४७९ भवि ) । २ वरदान, देव श्रादि का प्रसाद (कुमाः श्रा १२; २७; कुप्र ८०; भवि ) । ३ वि श्रेष्ठ, उत्तम रूप महाकुमा प्रा ५२ १७२ ) । ४ अभीष्ट (श्रा १२३ कुप्र ८० ) । ५ न. कुछ अभीष्ट अच्छा; 'बरं मे धप्पा देतो (उत्त १ १६ प्रा २२० ३०० १०६) देश [["दत्त]] [१] भगवान नेमिनाथजी का प्रथम शिष्य (सम १५२ कप्प ) । २ एक राजकुमार (विपा २, ११०) दाम न [दामन] एक सी (डा ३११२२. कसरण) धणु पुं [ "धनुष्] एक मन्त्रिकुमार, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का बाल For Personal & Private Use Only ७४७ मित्र (महा + पुरिस ( पण १७ – पत्र ५२६; जीव ३) माल [पुरुष] वासुदेव राय; श्रवम, ["माल] एक देवविमान (देवेन्द्र १३३) माला श्री ["माला] वर को पहनायी जाती माला वरत्व सूचक माता ( कुत्र ४०७) । रुइ ["रुचि] राजा नन्द के समय का एक विद्वान् ब्राह्मण ( कु ४४७) रिया श्री ["रिका ] अभीष्ट वस्तु मांगने के लिए की जाती घोषणा ईप्सित वस्तु के दान देने की घोषणा (गाया १, ८- - पत्र १५१ श्रवमः स ४०१ सुर १६, १८७२) सरफ न ["सरक] खाद्य विशेष ( राह २, ५ – पत्र १४८ ) | ● सिद्ध न [शिष्ट ] यम लोकपाल का एक विमान (भग ३, ७- पत्र १९७; देवेन्द्र २७०) 1 वर देखो वार । 'विलया स्त्री ['वनिता ] वेश्या (कुमा) पर देखो पर 'जीवाराम भदावरी नरो नि (कुप्र १८२) । वरइअ वि [दे] धान्य-विशेष (७०४१) - वरइत्त पुं [दे. वरथितृ] अभिनव वर, दुलहा (दे ७, ४४; षड् ; भवि) 1 वरई देखो वरय = वराक वरउफ वि [दे] मृत (दे ७, ४७) वरं देखो परं = परम्ः 'प्रदो वरं विरुद्धमम्हाण इत्थ अवस्था' (मोह ६२ स्वप्न २०६ ) 1 वरं पुं [वरण्ड ] १ दीर्घं काष्ठ; लम्बी लकड़ी । २ भित्ति, भीत (मृच्छ ६) । वरं पुं [दे] १ तृण-पुज, तृण-संचय ( चारु ३) । २ प्राकार, किला (दे ७, ८६ षड् ) । ३ कपोतपाली, गाल पर लगाई जाती कस्तूरी आदि को ७६ ४ समूह (गा ६३० ) 1. बरंडिया श्री [दे] घोडा बरंडा, बरामदा, दालान (सुपा २०३) वरक्ख न [राज्य] मन्द्रस्य विशेष सिन्हक (से २, ४४) बरक्ख पुं [वराक्ष ] १ योगी । २ यक्ष । ३ वि. श्रेष्ठ इन्द्रियवाला ( से ६, ४४ ) 1 परक्खा श्री [ल्या] त्रिफला (से, ४४) www.jainelibrary.org

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