Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 829
________________ वाय-वार 'वल्लवाए अलं मम' (गा १२३ ) । ४ बजानाः मदनवाल (सिरि १५७५ स्वयं स्थिरता ( २३ ) [[]] तस्य वर्षा तेहि समं कुख बापउम ४१५ [र्थिन् ] शास्त्रार्थं की चाहवाला ( पउम १०५, २६ ) । V वाय [पाक ] १ रसोई । २ बालक । ३ दैत्य, दानव ( श्र २३) । देखो पाग । "बाय ["पास] १ पतन (स ६२७ कुमा २ गमन । ३ उत्पतन, कूदन ( से १, ५५ ) । ४ पक्षी । ५ न. पक्षि-समूह (श्रा २३ ) 1/ वाय वि [पातृ] १ रक्षा करनेवाला । २ पीनेवाला । ३ सूखनेवाला (वा २३) । वाय देखो बाय ( २३ ) । वाय [पाद] १ पर्यंन्त । २ पर्वत । ३ पूजा । ४ मूल ५ किरण । ६ पैर । चौथा भाग (श्रा २३) । देखो पाय = पाद । 'वाय देखो पाव = पाप (श्रा २३) । "वाय [पाय] रक्षा, रक्षण। २ वि. २३) 1'वाय देखो अवाय = अपायः 'बहुवायम्मि वि देवावर उ वायत्त [] १ विट, भँडुना । २जार, उपपति (दे ७, ८८) ७ वायंगणन [] बैंगन, वृन्ताक, भंटा (श्रा २० संबोध ४४ व ४ ) | वायंतिय वि [वागन्तिक ] वचन-मात्र में नियमित (राज) | वायग [ वाचक] १ अभिधायक, श्रभिधावृत्ति से अर्थ का प्रकाशक शब्द ( सम्मत्त १४३) । २ उपाध्याय, सूत्र-पाठक मुनि (गण ५; संबोध २५० सार्धं १४७) । ३ पूर्व-ग्रन्थों का जानकार मुनि ( पण १ – पत्र ४ सम्मत्त १४१ पंचा ६, ४५) । ४ एक प्राचीन जैन महर्षि और ग्रन्थकार, तत्त्वार्थं सूत्र का कर्ता श्री उमास्वातिजी (पंचा ६, ४५) । ५ वि. कथक, कहनेवाला । ६ पढ़ानेवाला (गण ५) । वाय वि [वादक] बजानेवाला (कुमा महा) । Jain Education International पाइअसद्द मण्णवो वायग [ वायक] तन्तुवाय, जुलाहा (दे ६, ५६) । पायगवंस [वाचकवंश ] एक जैन मुनि वंश (यदि ५०) । वायड पुं [दे] एक श्रेष्ठि-वंश ( कुप्र १४३) । वाड व [ व्याकृत] स्पष्ट, प्रकट अर्थवाला ( दसनि ७) । देखो वागरिय वाघ पुं [दे] वाद्य विशेष, दर्दुर नामक बाजा (दे ७, ६१) । र वाडाग पुं [दे] सर्प की एक जाति (परण १ - पत्र ५१) । वायण न [ वाचन ] देखो वायणा (नाटरत्ना १० ) । वायण न [ वादन] १ बजाना (सुपा १६; २९३; कुप्र ४१: महाः कप्पू ) २ वि. बजानेवाला (दे ७, ६१ टी) 1 वायण न [दे] भोज्योपायन, खाद्य पदार्थ का बाँटा जाता उपहार, बायन (दे ७, ५७; पाच ) 1 वाणा) स्त्री [ वाचना] १ पठन, गुरुवायणा समीपे अध्ययन ( उप २६, १) २ अध्यापन, पढ़ाना (सम १०६ उब ) । ३ व्याख्यान ( पव ६४ ) । ४ सूत्र- पाठ (कप्प ) । वायणिअ[िवाचनिक] वचन-संबन्धी (नाटविक २५ ) 1 वायय देखो वायग= वायक (दे ५, २८) वायरण देखो वागरण (हे १, २६८ कुमा भवि पद ) 1 Saraf [a] वायु रोगवाला, वातरोगी ११५) । वायव देखो पायव (से ७, ६७ ) । वायव्व वि [ वायव्य ] वायव्व कोण का (२१५) 1 वायव्व [ वायव्य ] १ वायुदेवता-संबन्धीः 'पबियाई कमेख सत्वाई' (सुर, ४ महा)२ नमी के सुर से उड़ी हुई धूलि - रज; 'वायव्वरहाराराहाया' (कुमा वायव्वा स्त्री [वायच्या ] पश्चिम और उत्तर के बीच की दिशा, वायव्य कोण (ठा १०. पत्र ४७८ सुपा ६८ २६७ ) 1 For Personal & Private Use Only ७ वायस पुं [वायस] १ काक, कौमा (उवा प्रासू १६९; हे ४, ३५२ ) । २ कायोत्सर्ग्र का एक दोष, कायोत्सर्ग में कौए की तरह दृष्टि को इधर-उधर घुमाना ( पव ५) । परिमंडल न ['परिमण्डल ] विद्या-विशेष, कौए के स्वर और स्थान आदि से शुभाशुभ फल बतलानेवाली विद्या ( सू २ २ २७ ) ~ वाया स्त्री [ वाच] १ वाचन, वाणी (पान) प्रासू ; पडि; स ४६२ से १, ३७; गा ३२; ४० : ) । २ वाणी की अधिष्ठायिका देवी सरस्वती ( श्रा २३) । ३ व्याकरणशान (गउड ८०२ ) । देखो वइ = वाच् । [देवाचाट] शुक, तोता ( ७, 26) वागाड वि [याचार] वाचाल वादी पा ३६० चेइय ११७; संक्षि २ ) 1 आयाम [ व्यायाम ] कसरत, शारीरिक श्रम (ठा १-पत्र १९ गाया १, १. - पत्र १६ कप्प; श्रौपः स्वप्न ३६) । वाम [ व्यायाम ] कसरत करना, शारीरिक श्रम करना । वकृ. सुट्ठु वि यायामेतो कार्य न करे कथि (उप) वायायण पुंन [ वातायन] १ गवाक्ष, झरोखा ( पउम ३६, ६१; स २४१३ पात्रः महा) । २ पुं. राम का एक सैनिक ( पउम ६७, १०) 1 v वायार पुं [दे] शिशिर वात, गुजराती में 'वायरी (दे ७, ५६) V बाबा [बाचाल] मुखर बनवादी (था १२; पान सुपा ११३) । 'वायाल देखो पायाल ( से ५,३७) वायाविनि [वादित] बनवाया हुआ ( स ५२७; कुप्र १३६) । वायु देखो वाउ = वायु (सुज १०, १२, कुमा सम १९) । बार सक [ वारय् ] रोकना, निषेध करना । वारे (महा) व भारंत (मुषा १०३) यह पारित १९१ महा) हे वारे (तुम १.२.२,७) । कृ. वारियव्व, वारेयन्त्र (सुपा ५५२; २७२) वार [दे. वार] चत्रक, पात्र ( ७, ५४)10 www.jainelibrary.org

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