________________
वारुण-वावज पाइअसहमहण्णवो
७६१ वारुण न [वारुण] १ जल, पानी; 'निम्मल- पत्र ३२ सूत्र १, ६, १८) हि पुं[धि] वालिखिल्ल पु[वालिखिल्य] एक राजर्षि वारुणमंडलमंडिअससिचारपाणसुपवेसे' (सिरि वही अर्थ (पामा सुपा २८१)
(पउम ३४, १८)। देखो वालिहिल्ल। ३६१) । २ वि. वरुण-संबन्धी (पउम १२, | वाल देखो पाल =पाल (काल; भविः कुमा | वालिहाण न वालधान] पुच्छ, पूंछ (णाया १२७) सुर ८, ४५; महा) त्थ न [स] |
१, ३; उवा)। वरुणाधिष्ठित प्रन (महा), 'पुर न [पुर]
वालंफोस न [दे] कनक, सोना (दे ७, वालिहिल्ल देखो वालहिल्ल (गउड ३२०) नगर-विशेष (इक)।
वाली स्त्री [दे] वाद्य-विशेष, मुंह के पवन से वारुणी स्त्री [वारुणी] १ मदिरा, सुरा, दारू
वालग न [वालक] पात्र-विशेष, गौ आदि के बजाया जाता तृण वाद्य (दे ७, ५३) (पाप; से २, १७; सुर ३, ५५; पएह २, बालों का बना हुआ पात्र (प्राचा २, १, वाली स्त्री [पाली] रचना-विशेष, गाल प्रादि ५-पत्र १५०)। २ लता-विशेष, इन्द्र
८,१) वारुणी, इन्द्रायन (कुमा)। ३ पश्चिम दिशा
पर की जाती कस्तूरी प्रादि की छटा (कप्पू)। वालगपोतिया) स्त्री [दे] देखो बालग्ग- देखो पाली।। (ठा १०-पत्र ४७८ सुपा २५५)। ४ वालग्गपोइया । पोइआ (सुज्ज ४-पत्र
वालअ [वालुक] १ परमाधार्मिक देवों भगवान् सुविधिनाथ की प्रथम शिष्या का ७० उत्त ६, २४: सुख ६, २४)।
की एक जाति, जो नरक-जीवों को तप्त नाम (सम १५२; पव ६)। ५ एक दिक्कु
वालण न[वालन लौटाना (सुर १,२४६)। वालुका-बालू में चने की तरह भनते हैं (सम मारी देवी (इक)। ६ कायोत्सर्ग का एक दोष-१ निष्पन्न होती मदिरा की तरह
वालप्प न [दे] पुच्छ, दुम, पूंछ (दे ७, २६)। २ धूली-सम्बन्धी (उप पू २०५) 10 कायोत्सर्ग में 'बुडबुड' आवाज करना। २
वालु स्त्री [वालुका] धूलि, बालू, रेत, रज कायोत्सर्ग में मतवाला की तरह डोलते रहना
| वालय पुं [वालक] गन्ध-द्रव्य-विशेष (पाप)- वालुआ (गउड)। "पुढवी स्त्री [पृथिवी] (पव ५) वालवास पुंदे] मस्तक का प्राभूषण (दे। तीसरी नरक-पृथिवी (पउम ११८, २)
पभा, पहा स्त्री [[प्रभा] तीसरी नरकवारुया। स्त्री [दे हस्तिनी, हथिनी (स ७३५;
वालवि पुं[व्यालपिन् मदारी, साँपों को | वारूया।६४)
भूमि (ठा ७-पत्र ३८८ इक; अंत १५) ।। पकड़ने प्रादि का व्यवसाय करनेवाला, सपेरा 'भा बी [भा] वही अर्थ (उत्त ३६, वारेज देखो वारिज (स ७३४) । (पराह १,२-पत्र २६)
१५७)। वारेयव्व देखो वार = वारय ।।
वालहिल्ल [वालखिल्या ऋतु से उत्पन्न वालुकम[द] पक्वान्न-विशेष, एक तरह का बाल सक [वालय] १ मोड़ना । २ वापस
पुलस्त्य कन्या के साठ हजार पुत्र, जो अंगुष्ठ- खाद्या 'खीरदहिसूवकट्टरलंभे गुडसप्पिवडगलौटाना। वालइ, वाले (हे ४, ३३० पर्व के देह-मानवाले थे ( गउड ) । देखो | वालुके' (पिड ६३७) । भविः सिरि ४४२)। कवकृ. वालिज्जत | वालिखिल्ल ।
वालुंक न [वालुक] ककड़ी, खीरा (अनु ६; (सुर ३, १३६)। संकृ. वालेऊण (महा)।
वाला पुंस्त्री [वाला] कंगू, अन्न-विशेष; कुप्र ५८) वाल पु[पाल] १ सर्प, साँप (गउड; 'संपरणं वालावल्लरनं (गा ८:२)। वालुंकी स्त्री [वालुङ्की] ककड़ी का गाछ णाया १, १ टी-पत्र ६ औप)। २ दुष्ट वालि वालि] एक विद्याधर-राजा,
वालक्की (गा १०; गा १० प्र)। हाथी (सुर १०, २१६ चेइय ५८)। ३ | कपिराज (पउमहसे १.१३)तणअवालग देखो बालअ (स १०२) । हिंसक, पशु, श्वापद (णाया १, १ टी
पुं[तनय राजा वालि का पुत्र, अंगद वाव सक [वि + आप्] व्याप्त करना । पत्र ६; प्रौप)। देखो विआल = व्याल -
(से १३, ८३)। "सुअ [सुत] वही वावेइ (हे ४, १४१)।- . वाल न [बाल] १ एक गोत्र, जो कश्यप-गोत्र अर्थ (से ४, १२, १३, ६२)।
वाव अ[वाव] अथवा. या (बिसे २०२०)। की एक शाखा है। २ पुंखी. उस गोत्र में | वालि वि[वालिन् वक्र, टेढा (से १,१३) वाव [वाप] वपन, बोना (दे ६, १२६)। उत्पन्न (ठा ७--पत्र ३६०)
वालि वि [वालिन्] १ केशवाला। २ . वावइज देखो वावज । वावइज्जामि (स वाल देलो बाल-बाल (पोपः पाप्र)यकपिराज (मणु १४२)।।
७४१) वि [ज] केशों से बना हुआ (पउम १०२, वालिअ वि [वालित] मोड़ा हुआ (पात्रः वावंफ प्रक [] श्रम करना। वावंफइ १२१) वायणी स्त्री [°वीजनी] १ स ३३७)।। चामर 'पंच रायक उहाई; तं जहा-खरगं वालिआफोस न [दे कनक, सुवर्ण (दे वावंफिर वि [ष्णुि] श्रम करनेवाला छत्तं उप्फेसं वाहणाप्रो वालवीयरिण' (प्रौप) ७,६०)।
(कुमा)। २ छोटा व्यजन-पंखा; 'सेयत्रामरवाल- वालिंद वालीन्द्र विद्याधर वंश का एक | वावज अक [ +पद्] मर जाना। वीयणीहि वीइज्जमाणी' (णाया १,१- राजा (पउम ५, ४५)।
वावज्जति (भग)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org