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वाडिम-वामण
पाइअसद्दमण्णवो वाडिम पुं[दे] पशु-विशेष, गण्डक, गेंडा वाणहा देखो पाणहा, वाहणा = आनह, वाणुजुअ पु[दे] वणिक् , वैश्यः ‘एसो (दे ७, ५७) । (पि १४१)
हला नवल्लो दीसइ वाणु जुमो कोवि' (उप वाडिल्ल पुं[दे] कृमि, कोट (दे ७, ५६) वाणा देखो वायणा = वाचना यरिअ पुं|
| ७२८ टी) वाडी स्त्री [दे] वृति, बाड़; 'घरवारे कारिया [°चार्य] अध्यापन करनेवाला साधु, शिक्षक,
वात देखो बाय = वात (ठा २, ४-पत्र कंटएहि वाडो' (कुप्र २६, दे ७, ४३; ५८० "एसो च्चिय ता कीरउ वाणायरिओ, तो
कतिक ) देखो वाइअ = वातिक (पएह १, गुरू भणइ' (उप र ४२ टी) षड् )
जातिय ३.---२४: मोघ ७२२) वाडी स्त्री वाटी] बगीचा, उद्यान (धर्मसं वाणारसी स्त्री [वाराणसी] भारतवर्ष की
वाद देखो वाय = वाद (राज)। ४१)
एक प्राचीन नगरी, जो आज कल 'बनारस'
| वादि देखो वाइ = वादिन (उवा)। वाढि । [दे] वणिक सहाय, वैश्य-मित्र | नाम से प्रसिद्ध है (हे २. ११६; गाया १, वाढि (द ७,५३)
वानर देखो बागर (विपा १, २-पत्र ३६;
४i उवाः इक; उव: धर्मवि ५: पि ३८५) वाण सक [वि+ नम्] विशेष नमना- वाणि देखो वणि = वणिज् (भवि) v उत्त,
विसे ८६३, सुपा ६१८), 'पुत्रभववानराणि नत होना ! वारणइ (?) (धात्वा १५२) ।
व ताई विलसंति सिच्छाए' (धर्मवि १३१)
पुत्त पुं [°पुत्र] वैश्य-कुमार, बनिया का वाण वि [वान] वन में उत्पन्न, वन-संबन्धी लड़का (कुप्र ३६; ८८ २२१, ४०४, सिरि वापर
वापंफ देखो वाफ । वापंफइ ( षड् )। (प्रौपः सम १०३), पत्थ, पत्थ पुं ३८४; धर्मवि १०४)
वापिद (शौ) देखो वावड = व्यापृत (नाट - [प्रस्थ] वन में रहनेवाला तापस, तृतीय वाणि स्त्री [वाणि] देखो वाणी (संति )
वेणी ६७) आश्रम में स्थित पुरुष (प्रौप; उप ३७७) / वाणिअj [वाणिज] १ बनिया, व्यापारी,
वाबाहा स्त्री [व्याबाधा] विशेष पीड़ा मंत, मंतर. यंतर पुंस्त्री ["व्यन्तर] देवों वैश्य (श्रा १२, सुर १, २४८ १३, २६;
(णाया १, ४, चेइय ३५५) । की एक जाति (भन; ठा २, २, सुर १, नाट-मच्छ ५५, वस: सिरि । वाम सक[वमय वमन कराना, कै कराना। १३७; प्रौप; जी २४ महा; पि २५१)। एक गाँव का नाम (उवा अंत; विपा १,२)
वामेइ, वामेज्ज (भग; पिंड ६४६) । संकृ. स्त्री. री (पएण १७ –पत्र ४६६; जीव वाणिअ (अप) देखो वाणिज (सण)।
वामेत्ता (भग; उवा)। २) वासिआ स्त्री [°वासिका] छन्दवाणिअ देखो पाणिअ = पानीय (गा ६८२
वाम वि [दे] १ मृत (दे ७, ४७)। २ विशेष (अजि ३३)।
आक्रान्त (षड् )। सिरि ४०सुपा २२६) । 'वाण देखो पाण = पान १ वत्त न [पात्र
वाम वि [वाम] १ सव्य, बाँया (ठा ४, २वाणिअय पुं [वाणिजक] बनिया, वैश्य, पीने का प्याला (से १. १३)।
पत्र २१६; कुमा; सुर ४, ५, गउड)। २ व्यापारी (पाम काप्र ८६३; गा ६५१: उवः वाणय [दे] वलयकार, कंकण बनानेवाला |
प्रतिकूल, अननुकूल (पामा परह १, २सुपा २२६; २७५: प्रासू १८१)
पत्र २८, गउड ८८% ६६४ कुमा)। ३ शिल्पी (दे ७,५४) वाणिज्ज न [वाणिज्य] १ व्यापार, बैपार
सुन्दर, मनोहर; 'वामलोप्रणा' (पाप)। ४ याणर न [वानर] १ बन्दर, कपि, मर्कट (सुपा ३४३ पडि)। २ एक जैन मुनि कुल
न. सव्य पक्ष; 'वामत्थो' (पउम ५५, ३१)। (पएह १, १; पात्र)। २ विद्याधर मनुष्यों का नाम (कप्प)
५ बाँया शरीर (गा ३०३) लोअणा स्त्री का एक वंश । ३ वानर-वंश में उत्पन्न
वाणिज्जा स्त्री [वणिज्या] व्यापारः 'पहिच्छत्तं | मनुष्य (पउम ६, १)। उरी स्त्री [पुरी] |
[°लोचना] सुंदर नेत्रवाली स्त्री, रमणी नगरं वाणिज्जाए गमित्तए' (णाया १, १५) (पाप) लोकवादि, लोगवादि पु. किष्किन्धा नामक एक भारतीय प्राचीन नगरी | (से १४, ५०) ५ केउ पुं [केतु] वानरवाणिज्जिय वि [वाणिजिक] वाणिज्य-कर्ता,
[लोकवादिन] दार्शनिक-विशेष, जगत् को वंश का कोई भी राजा (पउम ८, २३५) । व्यापारी (भवि)
असद् माननेवाले मत का प्रतिपादक दार्शनिक 'दीव बीप] एक द्वीप (पउम ६, वाणी स्त्री [वाणी] १ वचन, वाक्य (पान)।
(परह १, २–पत्र २८) वट्ट वि [वर्त
प्रतिकूल माचरण करनेवाला (बृह १)। ३४) । द्धय पुं[ध्वज हनूमान (पउम | २ वाग्देवता, सरस्वती देवी (कुमाः संति ५३, ४३)। "वइ पुं [पति] सुग्रीव, ४) । ३ छन्द-विशेष (पिंग) ।
वित्त वि [वर्त] वही अर्थ (ठा ४,
२-पत्र २१६) रामचन्द्र का एक सेनापति (से २, ४१, ३, | "वाणीअ देखो पाणीअ (काप्र ६२५) ।।
वाणाअ देखो पाणाभ (काप्र ६२५) । वाम पु[व्याम] परिमाण-विशेष, नीचे ५२) । देखो वानर ।।
वाणीर पुं[दे] जम्बू वृक्ष, जामुन का पेड़ (दे | फैलाए हुए दोनों हाथों के बीच का अन्तराल वाणरिद [वानरेन्द्र] वानर-वंशीय पुरुषों | ७, ५६)
(पव २१२ औप) का राजा, वाली (पउम ६, ४०)
वाणीर पु[वानीर] वेतस-वृक्ष, बेंत का पेड़ | वामण पुन [वामन] १ संस्थान-विशेष, वाणवाल पुं[दे] इन्द्र, पुरन्दर (दे ७,६०) (पाय: गा ५६६)
शरीर का एक तरह का प्राकार, जिसमें
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