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वाअड-बाउल्ल
पाइअसहमहण्णवो
उपमाः 'कप्पदुम तणेणेव कारणकबड्डण | वाइंगण न [दे] बैंगन, वृन्ताक, भंटा (उप वाउ पुं[दे] इक्षु, ऊख (दे ७, ५३)। कामधेणु' वा' (हि १७ सूम १, ४, २, ५६७ टी दे ७ २६)
वाउड वि [प्रावृत] १ प्राच्छादित, ढका १५; सुख २, ६; वव १)। ७ पाद-पूत्ति वाइंगणो । स्त्री [द] बैंगन का गाछ, हुमा (भग २, १, पव ६१)। न. कपड़ा, (उत्त २८:२८) :
वाईगिणी, वृन्ताकी (रालः पागा १७- वन (ठा ५,१--पन्न २९६)V वाअड पुं[दे] शुक, तोता (षड् )
पत्र ५२७)
वाउत्त [दे] विट। २ जार, उपपति वाअड देखो वावड = व्यापृत, 'रइवामडा | वाइगा द] देखो बाइया (उप १०३१ टी)M (दे ७, ८) रुग्रंतं पिबंपि पुत्तं सवइ माया' (गा ४००) वाइज्जत देखो वाए = वाचम् ।।
वाउप्पइया स्त्री [दे. वातोत्पतिका] भुजवाइ वि [वादिन] १ बोलनेवाला, वक्ता वाइज्जत देखो वाए वादय ।।
परिसपं की एक जाति, हाथ से चलनेवाले (आचा; भग; उवः ठा ४, ४)। २ वाद- वाइत्त न [वादित्र] वाद्य, बाजा (कुप्र ११०;
जन्तु की एक जातिः 'उलसरडजाहगमुगुसकर्ता, शास्त्रार्थ में पूर्वपक्ष का प्रतिपादन भवि).
खाडहिलवाउप्पि (?प्पइ) यधीरोलियसिरीसिकरनेवाला (सम १०२, विसे १७२१; कुप्र वाइद्ध वि [व्याविद्ध] विपर्यय से उपन्यस्त,
वगणे य' (पएह १, --पत्र ८) ४४०; चेइय १२८, सम्मत्त १४१ श्रा ६)। उलट-पुलट रखा हुआ (विसे ८५३)
वाउभाम पुं [वाजोद्माम] पनवस्थित ३ दार्शनिक, तीथिक, इतर धर्म का अनुयायी वाइद्ध वि [व्यादिग्ध] १ उपदिग्ध, उपलिप्त।
पवन, 'वाउज्झा (?भा) मे बाउकलिया' (ठा ४, ४)। २ वक्र, टेढा (भग १६, ४-पत्र ७०४)।
(परण १-पत्र २६) वाइ वि[वाचिन] वाचक, अभिधायक, कहने-वाइम देखो वा = व्ये ।
वाउय वि [व्यापृत] किसी कार्य में लगा वाला (विसे ८७४) वाइयव्व देखो वाय = वादय ।।
हुआ (णाया १, ८-पत्र १४६; औप)। वाइ देखो वाजि (राज) वाईकरण देखो वाजीकरण (राज)
वाउरा स्त्री [वागुरा] मृग-बन्धन, पशु फँसाने वाइअ वि [वाचिक] वचन-संबन्धी (प्रौप;
वाउ पुं[वायु] १ पवन, वात (कुमा)। २ का जाल, फन्दा (पउम ३३, ६७ हेका ३१; था २४ पडि)।"
वायु-शरीरवाला जीव (अणु जी २; दं १३)। गा ६५७) । देखो बग्गुरा।। वाइअ वि [वाचित] १ पाठित, पढ़ाया
३ महत्त-विशेष (सम ५१)। ४ सौधर्मेन्द्र के बाउरिय वि[वागरिका जाल में फंसाने का हुआ (उत्त २७, १४. विसे २३५८)। २
अश्व-सैन्य का अधिपति देव (ठा ५,१पढ़ा हुना; 'नामम्मि वाइए तत्थ (सुपा
काम करनेवाला, व्याध (पएह १, १ पत्र ३०२)। ५ नक्षत्र-देव-विशेष, स्वाति२७०), 'अलाहि किं वाइएण लेहेण' (ह
विपा १,५–पत्र ६४) नक्षत्र का अधिपति देवता (ठा २, ३-पव २, १८६)
बाउल विव्याकुल] १घबड़ाया हुप्रा (उवः ७७; सुज १०, १२ टी) । आय पुं वाइअ वि [वतिक] १ वात से उत्पन्न,
उप पृ २२०; करु ३४; हे २, ६६)। २ [ काय] १ प्रचण्ड पवन (ठा ३, ३-पत्र वायु-जन्य (रोग आदि) (भगः पाया १,१
पुं. क्षोभ (पएह १, ३-पत्र ४४) हूअ १४१) । २ वायु शरीरवाला जीव (भग)M विभूत] व्याकुल बना हुप्रा (उप २२० पत्र ५०; तंदु १६)। २ वायु से फूला
'काइय पुं[कायिक वायु शरीरवाला | हुआ, वात-रोगवाला (विसे २५७६ टीः पव
टी) ६१)। ३ उत्कर्षवाला; 'सपरक्कमराउलवा
-पत्र १२३ प ३५५) वाउल वि [वातूल] १ वात-रोगी• उन्मत्त ।
'काय देखो आय (जी ७ पि ३५५) इएण सीसे पलीविए नियए' (उव), चितइ
२ पृ. वातसमूह (हे १, १२१, प्राकृ ३०) । कुमार पुं[कुमार] १ एक देव-जाति, सूरो एसो निवमन्नो वाइउव्व दुटुमणो' (धर्मवि भवनपति देवों की एक अवान्तर जाति (भग)।
वाउलग्ग न [दे] सेवा, भक्तिः 'निच्चं चिय ७६)। ४ पु. नपुंसक का एक भेद (पुप्फ
२ हनूमान का पिता (पउम १६, २) वाउलग्गं कुणंति' (राज) १२७ धर्म)।
कलिया स्त्री [°उत्कलिका] वायु-विशेष, वा
वाउलण न [व्यापर व्यावृत-क्रिया, व्यापार वाइअ वि [वादित] १ बजाया हुआ (गा
नीचे बहनेवाला वायु (पएण १--पत्र २९) (वव १)। ५५७७ कुमा २, ८ ६६७७०)। २ वन्दित,
काइय देखो काइय (भग) काय देखो वाउलणा श्री [व्याकुलना] व्याकुल करना अभिवादित; चलणेसु निवडिऊणं वाइया |
आय (राज)त्तरवडिसग पुन [ उत्त- (वव बंभणा' (स २६०)
रावतंसक] एक देव-विमान (सम १०) वाउलिअ वि [व्याकुलित] १ व्याकुल बना वाइअ न वाध] १ बाजा, वादित्र (कप्प)।
"पवेस [ प्रवेश गवाक्ष- झरोखा, वातायन, हुमा (सण) । २ विलोलित, क्षोभ-प्राप्त २ बाजा बजाने की कला (सम ८३; प्रौप)
(मोघमा ५८)प्पइट्राण विप्रतिष्टाना (पएह १,३-पत्र ४५) वाइअ वि [वात] बहा हुअा, चला हुआ | वायु के आधार से रहनेवाला (भग) भूइ वाउलिआ स्त्री [दे] छोटी खाई (गा ६२६) 'मुचकुंदकुडयसदियरयगम्भिरणवाइयसमीरो'(सुर पु [भूति] भगवान महावीर का एक वाउल्ल देखो वाउल = व्याकुल (हे २, ६६; २.७६) गणधर--मुख्य शिष्य (कप्प)
षड्)
टा) IN
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या (भग) ५ कायदा (वव ४)
याकलित] १ व्याकुल
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