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वसियव्व-वह
पाइअसहमहण्णवो
वसियव्व देखो वस = वस् ।
द्रव्यवान्, धनी, श्रीमंत (सूम १,१३,८ अग्र-महिषी, एक इन्द्राणी (ठा ४, १-पत्र वसिर वि [वसित] वास करनेवाला, रहने- १, १५, ११, प्राचा)। २ संयमी, साधु २०४ पाया २-पत्र २५२, इक)°णाह, वाला (सुपा ६४७; सम्मत्त २१७) । (सूम १, १३, ८ प्राचा)। "मित्ता स्त्री नाह पुं[नाथ राजा (उप ७६८ टी; वसीकय वि [वशीकृत] वश में किया हुआ,
[मित्रा] १ ईशानेन्द्र की एक अग्र-महिषी पउम ७४, २६) 'भवण न [ भवन] अधीन किया हुआ (सुपा ५६०; महा)
(ठा ८-पत्र ४२६; णाया २; इक) सद्द भूमि-गृह, भोंघरा (सुख ४, ६) वइ j
पुं [शब्द] छन्द-विशेष (पिंग)- हारा [पति] राजा (पउम ६६, २)वसीकरण न [वशीकरण] वश में करने के
स्त्री [धाग] १ आकाश से देव-कृत सुवर्ण- वसुल पुंस्त्री [दे. वृषल] १ निष्ठुरता-बोधक लिए किया जाता मन्त्र आदि का प्रयोग वृष्ठि (भग १५, कप्प ६८; उत्त १२, ३६;
आमन्त्रण-शब्दा 'होलि त्ति वा गोलि ति वा (णाया १, १४; प्रासू १४ महा)। विपा १,१०)। २ एक श्रेष्ठिनी (उप ७२८
वसुलि त्ति वा' (प्राचा २, ४, २, ३), 'तहेव वसीयरणी स्त्री [वशीकरणी] वशीकरण- | टी)
होले गोलि ति साणे वा वसुलि त्ति य' विद्या (सुर १३, ८१) वसुआ । अक [उद् + वा] शुष्क होना,
(दस ७, १४)। २ गौरव और कुत्सा-बोधक वसीहूअ वि [वशीभूत जो अधीन हुआ हो वसुआअ सूखना । वसुमाइ, वसुमाइ
आमन्त्रण-शब्द, 'होल वसुल गोल णाह दइय (हे ४, ११, ३, १४५, प्राकृ ७४)। वकृ. वह (उप ६८६ टी)।
पिय रमण' (णाया १, ६-पत्र १६५)। वसुअंत (कुमा)। प्रयो., कवकृ. वसुआइज्ज- | वसु न [वसु] १ धन, द्रव्य (प्राचा; सूत्र १,
| स्त्री. ली (दस ७, १६, प्राचा २, ४,
माण (गउड) १३, १८ कुमा)। २ संयम, चारित्र (प्राचा;
२, ३)IV वसुआअ वि [उद्वात] शुष्क (पाम से १, सूत्र १, १३, १८)। ३ पुं. जिनदेव । ४
| वसुहा स्त्री [वसुधा] पृथिवी, धरती (पामा
२०० गउड प्राकृ ७७)। वीतराग, राग-रहित। ५ संयत, संयमी,
कुमा) हिव पुं[धिप] राजा (सुपा | वसुआइअ वि [उदापित] शुष्क किया गया, साधु (प्राचा १,६,२,१)। ६ पाठ की
८७)।संख्या (विवे १४४, पिंग)। ७धनिष्ठा नक्षत्र
सुखाया गया (से &; २५)
| वसू स्त्री [वसू] ईशानेन्द्र की एक पटरानी का अधिपति देव (ठा २, ३, सुज १०, वसुआइज्जमाण देखो वसुआ।
(ठा ८--पत्र ४२६ इक; णाया २-पत्र १२)। ८ एक राजा का नाम (पउम ११, वसुंधर पुं [वसुन्धर] एक जैन मुनि (पउम २५३) २१, भत्त १०१)। ६ एक चतुर्दश-पूर्वी जैन २०, १६१)
वसेरी स्त्री [दे] गवेषणा, खोज (सुपा महर्षि (विसे २३३४)। १० एक छन्द का वसुंधरा स्त्री [वसुन्धरा] १ पृथिवी, धरती । ४७३) नाम (पिंग)। ११ स्त्री. ईशानेन्द्र की एक (पास; धर्मवि ४१, प्रासू १४२) । २ ईशा-वस्स (शौ) देखो बरिस। वस्सदि (नाटपटरानी (इक)। १२ न. लोकान्तिक देवों नेन्द्र की एक अन-महिषी (ठा ८-पत्र
| मुच्छ १५५) का एक विमान (इक)। १३ सुवर्ण, सोना । ४२६; णाया २; इक)। ३ चमरेन्द्र के सोम वस्स वि [वश्य] अधीन, प्रायत्त (विसे (कप्प ६८; भग १५, उत्त १२, ३६)M प्रादि चारों लोकपालों की एक पटरानी का | ८७५)IV 'गुन्ता स्त्री [गुमा] ईशानेन्द्र की एक नाम (ठा ४, १-पत्र २०४; इक)। ४ | वस्सोक न [दे] एक प्रकार की क्रीडा, पटरानी (ठा ८-पत्र ४२६, इक, रणाया एक दिक्कुमारी देवी (ठा -पत्र ४३६; अन्न या य वस्सोकेरण रमंति राय (?या) रणं २–पत्र २५३), "दव पुं["देव नववें
इक) । ५ नववें चक्रवर्ती राजा की पटरानी | राणियाउ पोत्तेण वाहिति' (थावक ६३ टी)। वासुदेव श्रीकृष्ण और बलदेव का पिता (ठा (सम १५२)। ६ रावण की एक पत्नी वह सक [ वह ] १ पहुँचाना । २ धारण ६; सम १५२; अंत; उव) नंदय पुं (पउम ७४, १०)। ७ एक वेष्ठि-पत्नी (उप करना। ३ ले जाना, ढोना। ४ अक. [ नन्दक] एक तरह पी उत्तम तलवार (सुर ७२८ टी) व पुं[पति] राजा, भूपति चलना; 'परिमलबहलो वहद पवणों' (कुमा; २, २२; भवि) पुज्ज पुं[पूज्य] एक (सुपा २८८)।
उवः महा), 'गंगा वहइ पाडलं' (सुख २, राजा, भगवान् वासुपूज्य का पिता (सम वसुधा (शौ) देखो वसुहा (स्वप्न ६८)। ४५), वहसि (हे २, १६४) । कर्म. वहिजइ, १५१) बल पुं[बल] इक्ष्वाकु-वंश में वसुपुज देखो वासुपुजः 'वसुपुजमल्ली नेमी वभइ, वुब्भइ (कुमा; धात्वा १५:; पि ५४१; उत्पन्न एक राजा (पउम ५, ४) भाग पुं | पासो वीरो कुमारपब्वइया' (विचार ११५ हे ४, २४५) वकृ. वहंत, वदमाग (महा. [ भाग] एक व्यक्ति-वाचक नाम (महा) पंचा १६, १३, १७), 'वसुपुज जिणो जगु- सुर ३,११; प्रौप)। कवकृ. बुज्नमाण (उत्त भागा स्त्री [ भागा] ईशानेन्द्र की एक | तमो जाओ' (पच ३५)।
२३, ६५, ६८)। हेकृ. वा, वहित्तए, पटरानी (इक) V इ [भूति] एक | वसुमई , स्त्री [वसुमती] १ पृथिवी, धरती वोढुं (धात्वा १५२, कसा सा १५)। कृ. जैन मुनि का नाम (पउम २०, १७६; | वसुमई (उप ७६८ टी; पाना सुपा २६० | वहिअव्व, वोढव्व (धात्वा १५२; प्रवि प्रावम) °म, मंत वि [मत् ] १ | ४७१)। २ भीम नामक राक्षसेन्द्र की एक | ३)।।
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