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पाइअसद्दमण्णवी
वह-वा
वह सकविध , हन] मार डालना। वहेइ, । २७, २, सुपा १८२)। ४ वि. वहन करने- वहियाली देखो वाहियालीः गुरुउज्जाणवहति (उत्त १८, ३, ५ स ७२८ संबोध वाला (से ३, ६; ती ३)।
___ तडिट्ठियवहियालि नेइ तं निवई' (धर्मवि ४१) । कर्म. वहिज्जति (कुप्र २५)। वकृ.. वहण (शौ) देखो पगय = प्रकृत (प्राकृ ६७) ४)। वहन, वहमाण (पउम २६, ७७, सुपा वहण (अप) देखो वसण = वसन (भवि)।- वहिलग [दे. वहिलक] ऊँट, बैल आदि ६५१: श्रावक १३९)। कवकृ. वहिजत, | वहणया श्री [वहना] निर्वाह (गाया १, पशु (राज) वज्झमाण (पउम ४६, २०० प्राचा)। २-पत्र ६०)।
वहिल्ल वि [दे] शीघ्र, शीघ्रता-युक्तः गुजराती संकृ. पहिऊण (महा)।
वहणा स्त्रो विधना] वध, धान, हिंसा (पएह में 'वहेलो' (हे ४, ४२२; कुमा; वज्जा वह सक [व्यथ ] १ पीड़ा करना। २ १.१-पत्र ५) ।।
१२८) प्रहार करना । कृ. वयव्य (पएह २,१
| वण्णु पुं[व्यधन एक नरक-स्थान, 'उज्वे- बहु पुंस्त्री [दे] चिविडा, गन्ध-द्रव्य-विशेष पत्र १००)।
यणए विज्जलविमुहे तह विच्छवी वि (?व) (दे ७, ३१) । वह (अप) देखो वरिस - वृष् । वहदि (प्राकृ
हएणू ये' (देवेन्द्र २८)।
वहु देखो वहू (हे १, ४: षड् ; प्राप्र)। १२१)
वहय देखो वहग = वधक (सूम २, ४, ४. बहुधारिणी स्त्री [दे] नवोढा, दुलहिन (दे वह पुंस्त्री [वध घात, हत्या (उवाः कुमा; पउम २६. ४७; श्रावक २०८ सण)।
७,५०)। हे ३ १३३ प्रासू १३६ १५३) स्त्री. हा वहलीअ देखो बहलीय (इक)
वहुण्णी स्त्री [दे] ज्येष्ठ-भार्या, पति के बड़े (सुख १, ३; स २७)/कारी स्त्री [°करी]
भाई की बहू (दे ७, ४१)वहा देखो वह = वध । विद्या-विशेष (पउम ७, १३७)
वहुमास पुं [दे] रमण-विशेष, क्रीड़ा-विशेष, वहाव सक [वाय् ] वहन कराना। कर्म. वह पुं[दे] १ कन्धे पर का व्रण । २ व्रण,
जिसमें खेलता हुआ पति नवोढा के घर से वहाविज्जइ (श्रावक २५८ टी)।
बाहर नहीं निकलता है (दे ७, ४६) ।। घाव (दे ७, ३१)
वहाविअ वि [वधित] मरवाया हुआ (खा वहुरा स्त्री [दे] शिवा, सियारिन (दे ७,४०)।वह वह] १ वृष-स्कन्ध, बैल का कन्धा २४)।
वहुलिआ (अप) स्त्री [वधूटिका] अल्प वय (विपा १, २-पत्र २७)। २ परीवाह, पानी बहाविअ देखो पहाविअ (से ६, १) वाली स्त्री, बहुरिया (पिंग) का प्रवाह (दे १, ५५) ।
वहिअ वि [व्यथित] पीड़ित (पंचा ५, बहुव्वा स्त्री [दे] छोटी सास (दे ७, ४०)। वह पुं[व्यथ] लकुट प्रादि का प्रहार (सूप ४४)
बहुहाडिणी स्त्री [दे] एक स्त्री के रहते हुए १, ५, २, १४ उत्त १, १६)। वहिअ वि [ऊढ] वहन किया हुआ (धात्वा यादी जाती
। व्याही जाती दूसरी स्त्री (दे ७, ५० षड्) 'वह देखो पह = पथिन् (से १, ६१,३, १४; १५२)।
वहू स्त्री [वधू] बहू. भार्या, नारी (स्वप्न कुमा) वहिअ वि [वधित जिसका वध किया गया
४२; पान हे १, ४)। वहइअ वि [दे] पर्याप्त (षड् १७७)। हो वह (श्रावक १७०; पउम ५, १९५;
वहोल पू[दे] छोटा जल-प्रवाह, गुजराती में वहग वि विधका घातक, हिसक, मार विपा १, ५, उब; खा २३; २४)
'वहेलो' (दे ७, ३६)।डालनेवाला (उवः स २१३; सुपा ५६४; वाह वहिअ वि [दे] अवलोकित, निरीक्षित,
वहोलिया स्त्री [द] देखो वहोल (चउम्पन्न. उप पृ ७०; श्रावक २१२ श्रा २३)। 'तेलोक्कवयिमहियपूइए' (उवा)
पत्र २१४) । वहग वि [व्यथक] ताड़ना करनेवाला (जं वहिइअ देखो वहइअ (षड् )।
| वा सक [वा] गति करना, चलना। वइ (से
वहिचर अक [व्यभि + चर ] १ पर- ६, ५२ गा ५४३ कुमा) । बडादे] दमनोय बछडा (दे ७.३७) पुरुष या पर-स्त्री से संभोग करना। २ सक. वा प्रक [.म्ला सखना। वाह (से.
नियम-भंग करना । वकृ. बहिचरंत (स वहढोल पुं[दे] वात्या, वात-समूह (दे ७,
५२ हे ४,१८)४२) ७११)।
वा सक [व्ये बुनना । कृ. वाइम; गंथिमवहण न [वधन वध, घात, हत्याः प्रजो वहिचार पुं [व्यभिचार] १ पर-स्त्री या
पूरिमवेढिमवाइमसंघाइमं छेज्ज (दसनि २)। छज्जीवकायवहरणम्मि' (सुपा ५२२, धर्मवि। पर-पुरुष से संभोग (स ७११) । २ न्यायशास्त्र
वा अ[वा] इन अर्थों का सूचक अव्यय१७; मोह १०१ महाश्रावक १४४, २३७ प्रसिद्ध एक हेतु-दोष (धर्मसं ६३)।
१ विकल्प, अथवा, या (प्राचाः कुमा)। २ उप पृ ३५७; सुपा १८४ पउम ४३, ४६) वहिजंत देखो वह =वध् ।
समुच्चय, पौर, तथा (उत्त ८, १२; सुख ८, वहण न [वहन] १ ढोना (धर्मवि ७२)। वहिया स्त्री [दे] बही, हिसाब लिखने की १२)। ३ अपि भी (कुमाः कप्प; सुख ५,
२ पोत, जहाज, यानपात्र (पाग्रः उप ५६६; किताव (सम्मत्त १४२, सुपा ३८५; ३८६ २२)। ४ अवधारण, निश्चय (ठा ८)। कुम्मा १५) । ३ शकट आदि वाहन (उत्त ३८७३६१)
५ सादृश्य, समानता (विसे १८९४)। ६
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