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वजंक-वट्ट पाइअसद्दमहण्णवो
७३६ वंशीय राजा (पउम ५, १५)। धर विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, वज्जाविय वि [वादित] बजाया हुआ (भवि)।' देखो हर (पउम १०२, १५६; विचार १६) भ पुं [भ] एक विद्याधर- वजि [वनिन् इन्द्र (संबोध ८) १००)। नागरी श्री ['नागरी] एक जैन वंशीय राजा (पउम ५, १६) वित्त न वजिअ वि [दे] अवलोकित, दृष्ट (दे ७, मुनि-शाखा (कप्प) नाभ j[ नाभ] [वर्त] एक देव-विमान (सम २५), स ३६; महा)। एक जैन मुनि (पउम २०, १९)। देखो । पृ[श] एक विद्याधर-राजा (पउम ५, वजिअ वि [वादित] बजाया हुआ (सिरि णाभ । पाणि g["पाणि] १ इन्द्र (उत्त । १७) ।
। ५२५)। ११.२३: देवेन्द्र २८३, उप २११ टी)। वजंक [वज्राङ्क] विद्याधर-वंश का एक | वजिअ वि विजित] रहित (उवा औप: २ एक विद्याधर-नरपति (पउम ५, १७) राजा (पउम ५, १६) ।
महा: प्रासू ७६) 'पभ न [प्रभ] एक देव-विमान (सम वजंकुसी स्त्री [वाङ्कशी] एक विद्या-देवी
वजियाव [दे] शेलडी (व्यव० भाष्य.)। २५)। बाहु पुं ["बाहु] एक विद्याधर- (संति ५) वंशीय राजा (पउम ५, १६)। भूमि स्त्री वजंत देखो वज्ज = वद् ।।
वज्जियावग ' [दे] इक्षु, ऊख (वव १)। [भूमि] लाट देश का एक प्रदेश (प्राचा | वज्जंधर पुं [वज्रन्धर] विद्याधर-वंश का
वज्जिर वि [वदित] बजनेवाला (सुर ११,
१७२, सुपा ४५,८७सिरि १५५; सरण),१, ६, ३, २) म (अप) देखो मय (हे | एक राजा (पउभ ५, १६)।
'गहिख(?रव)जिराउज्जगजिजजरियभंडभंडो४, ३६५), मज्झ पुं["मध्य १ राक्षस- वजघट्टिता स्त्री [दे] मन्द-भाग्य स्त्री (संक्षि
यरों (कुप्र २२४) वंश का एक राजा, एक लंकेश (पउम ५, ४७) । २६३)। २ रावणाधीन एक सामन्त राजा | वजण न [वर्जन] परित्याग, परिहार (सुर
| वज्जुत्तरवडिंसग न [वनोत्तरावतंसक] एक (पउम ८, १३२) मज्भा स्त्री [°मध्या] ४, ८२; स २७१; सुपा २४५, ७ ६)।
देव-विमान (सम २५)। एक प्रतिमा, व्रत-विशेष (प्रौप २४) 4 °मय वजणअ (अप) वि विदित] बजनेवाला, वज्जोयरी श्री [वनोदरी] विद्या-विशेष वि [मय वज्र का बना हुआ (पउम ६२, | ‘पडहु वज्जएउ' (हे ४, ४४३) ।
(पउम ७, १३८)। १०)। स्त्री. मई (नाट-उत्तर ४५) वज्जणया। स्त्री [वजेना] परित्याग (सम वझ वि विध्य] वध के योग्य (सुपा २४८% 'रिसहनाराय न [°ऋषभनाराच संहनन- वज्जणा ४४. उत्त १६, ३०; उव)।
गा २६; ४६६; दे ८, ४६) । "नेवस्थिय विशेष, शरीर का एक तरह का सर्वोत्तम वजमाण देखो वज्ज = वद् ।
वि [नेपथ्यिक] मृत्यु-दंड-प्राप्त को पहनाया बन्ध (कम्म १, ३८) रूव न [रूप]. वजय वि [वर्जक] त्यागनेवाला (उवा) -
जाता वेष वाला (पएह १, ३–पत्र ५४) ।। एक देव-विमान (सम २५) + °लेस न वज्जर सक [कथयू ] कहना, बोलना।
'माला स्त्री [माला] वध्य को पहनाई [°लेश्य एक देव-विमान (सम २५) । वजरइ, वज्जरेइ (हे ४, २; षड् , महा)।
जाती माला, कनेर के फूलों की माला (भत्त (अप) देखो म (हे ४, ३६५), वण्ण न वकृ. वजरंत (हे ४, २, चेय १४६)।
१२०)। [वर्ण] एक देव-विमान (सम २५) वेग संकृ. वज्जरिऊण (हे ४,२)। कृ. वज्जरि
अव्व (हे ४, २) । ["वेग] एक विद्याधर का नाम (महा)
वज्झ वि [वाह्य] १ वहन करने योग्य (प्रातः °सिंखला स्त्री [शृङ्खला] एक विद्या-देवी वज्जर देखो वंजर = मार्जार (चंड)।
उप १५० टी)। २ न. अश्व प्रादि यान (स
६०३) वज्जर पुंवर्जर] १ देश-विशेष । २ वि. (संति ५), "सिंग न [शृङ्ग] एक देव
खेड्ड न [खेल] कला-विशेष, विमान (सम २५) ५ सिट्टन [सृष्ट] एक
यान की सवारी का इल्म (स ६०३) देश-विशेष में उत्पन्न; 'परिवाहिया य तेणं
वज्झा स्त्री [हत्या] वध, घात (सुख ४, ६; देव-विमान (सम २५)सुंदर [सुन्दर]
बहवे वल्हीयतुरुक्कवज्जराइया आसा' (स |
१३) विद्याधर-वंश में उत्पन्न एक राजा (पउम
महा)। ५, १७)। सुजणहु पुं [सुजह नु]
बजरण न [कथन] उक्ति, वचन (हे ४, २) वझियायण न [वध्यायन] गोत्र-विशेष विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५,
वज्जरा स्त्री [दे] तरंगिणी, नदी (दे ७, ३७) (सुज १०, १६)।।
जैन मनि वज्जरिअ वि [कथित] कहा हुआ, उक्त (हे वत्र (अप) देखो वञ्च = व्रज् । वनइ, वादि जो भगवान ऋषभदेव के पूर्व जन्म में गुरु थे ४, २; सुर १, ३२, भवि)।
(षड्) (पउम २०, १७)। २ विक्रम की चौदहवीं | वजा स्त्री [दे] अधिकार, प्रस्ताव (दे ७, वट्ट सक [वृत् ] १ वर्तना, होना । २ प्राचशताब्दी के एक जैन आचार्य (सिरि १३४६) ३२; बज्जा २)।
रण करना । वट्टइ, वट्टए, वट्टति (सुर ३, हर पुं[धर] १ इन्द्र, देवराज (से १५, वज्जाव (अप) सक [वाचय् ] बचवाना, ३६ उवः कप्प)। वकृ. बटुंत, वट्टमाण (गा ४८; उव)। २ वि. वज्र को धारण करने- पढ़ाना । वज्जावइ (प्राकृ १२०)।
४१०; कम्म ३, २०; चेय ७१३; भवि; वाला (सुपा ३३४), उह पुं[युध] वज्जाव सक [वाय् ] बजाना। वजावइ उवा, पडि; कप्प पि ३५०)। हेकृ. वट्टेड १ इन्द्र (पउम ३, १३७, ११, १८)। २ (भवि)।
(चेइय ३६८)। कु. वट्टियव्व (उव)।
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