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२८) । २ प्रावृत्ति ४३) । ३ स्थिति ।
परावर्तन (पंचा १२, ४ स्थापन । ५ वर्तन, होना । ६ वि. वृत्तिवाला । ७ रहनेवाला (effer to)
वत्तणा स्त्री [वर्त्तना]] ऊपर देखो; 'वत्तरणालक्खणो कालो (उत्त २६, १० भावम) । वत्तणी स्त्री [वर्त्तनी] मार्गं, रास्ता (पराह १, ३ – पत्र ५४० विसे १२०७; सूनि ६१ टी सुपा ५१८) ।
वत्तद्ध वि [दे] १ सुन्दर । २ बहु-शिक्षित (दे ७, ८५) 1 यत्समाण
[ वर्त्तमान] १ काल-विशेष, चलता काल ( प्रातः संक्षि १० ) । २ वि.
वर्तमान-कालीन विद्यमान
विद्य
,
वत्तव्व देखो वय = वच् ॥ बता श्री [दे] - सूत्रवेष्टनयन्त्र ( परह १, ४ – पत्र ७८; तंदु २० ) । देखो चत्ता = (दे) । -
वता श्री [वार्ता] १ बालकथा ६३ सुपा ३८७ प्रासू १ कुमा) । २ वृत्तान्त, हकीकत (पावृति ४ दुर्गा । ५ कृषि कर्म, खेती । ६ जनश्रुति, किंवदन्ती । ७ गन्ध का अनुभव । ८ काल-कटंक भूतनाश (हे २. ३०) ४ ला [लाप] बातचीत (सिरि २८२ ) । वत्तार वि [दे] गर्वित, गवँ-युक्त (दे ७, ४१) । यति श्री [दे] सीमा (दे ७, ३१) - यति देव (११२६५० विले १३१८)
मानता ( धर्मसं ५७३) । "वतार देखो सन्तरि (सम ८३ प्रा १२६ | वसुल देखी दल (राज पि ४४६) ।
बत्ति [वर्णिम ] वर्तवला (महा वृत्ति त्री [वृत्ति ] प्रवृत्ति (सू २, ४,२) । देोविन्ति ।
वत्ति स्त्री [व्यक्ति ] अमुक एक वस्तु, एकाकी वस्तु पट्टा श्री [["प्रतिक्ष] प्रतिष्ठा विशेष दिन समय में जो तीर्थंकर विद्यमान हो उसके बिम्ब की विधि पूर्वक स्थापना (३५) । वत्तिअवि [वान्तिक] कथाकार, 'वत्ति' (हे २, ३०)। २ पुंन, टीका की टीका (सम
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पाइअसमय
४६ विसे १४२२ ) । ३ ग्रंथ की टीकाव्याख्या (विसे १३८५) वन्तिअवि [वर्त्तित] १ वृत --गोल किया हुमा (खावा १, ७) २ माच्छादित (डि) 1 'वत्तिअ देखो पञ्चय = प्रत्यय ( प ) 1 वत्तिआ देखो वट्टिआ (प्रा) 1 वत्तिणी स्त्री [वर्त्तिनी] मार्ग, रास्ता (पा स ४ सुर १२, १३६)
वत्ती देखो पत्ती = पत्नी (गा ७९; १०६; १०३) 1
वत्तुं देखो वय = वच् IV
वन्तुकाम वि [ वक्तुकाम] बोलने की चाह - वाला ( स ३१८० श्रभि ४४; स्वप्त १०; नाट - विक्र ४० ) IV
IV
१४,
वत्थ पुंन [ वस्त्र] कपड़ा ( आचा २, २२ उवाः परह १, १ उप पृ ३३३ सुपा ७२; ४६१; कुमाः सुर ३, ७०) खेड्ड न ["खेल] कला विशेष ( २ टी-पत्र १३७) धोव वि [ धाव] वस्त्र धोनेवाला (सूत्र १, ४, २, १७) पूस ['पुष्य] एक जैन मुनि (कुलक २२ ) + पूसमित्त पुं [ पुष्यमित्र ] एक जैन मुनि ( ती ७) । "बिना श्री [विद्या ] विद्या-विशेष, जिसके प्रभाव से वस्त्र स्पर्श कराने से ही बीमार अच्छा हो जाय (४) सोहग वि ['शोधक ] वस्त्र धोनेवाला ( स ४१ ) 1वत्थवि [ व्यस्त ] पृथग्, भिन्न, जुदा (सुर १६,५५) [[देवपुर] तंत्र, कपड़-कोट,
(दे ७, ४५) वत्थए देखो वस = वस् IV
वत्थंग [ वस्त्राङ्ग] कल्पवृक्ष की एक जाति, जो वस्त्र देने का काम करता है (पउम १०२, १२१) वावर देखो पत्थर प्रस्तर (गा ५५१) वत्थनि [बलिय] दो जैन मुनि कुल
- 1
नाम (कप्प) 1
वत्थव्व वि [ वास्तव्य ] रहनेवाला, निवासी (पिड ४२७ सुर ३, ६१: सुपा ३६५ महा) 1
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वत्तणा -वत्थूल
बथाणी श्री [हे] वल्लो-विशेषपत्र ३३) ।
वत्थाणीअ पुंन [दे] खाद्य-विशेष, 'हत्थेण वत्यागीएण भोच्चा कज्जं सार्धेति' (सुज १०, १७) ।
स्थि [ वस्ति ] २ दृति, मसक (भग १, ६; १५, १०६ गाया १, १८), 'वत्थिन्त्र वापुरी अतुक्करिण जहा वहा सवई (संबोध १८ ) । २ प्रपान, गुदा 'वत्थी श्रवाणं' (पाथ परह १, ३ – पत्र ५३ ) । १३ छाते में शलाका—सली—सलाई बैठने का स्थान, छत्र का एक अवयव (प्रप) कम्म न [कर्मन] १ सिर यादि में चर्मद्वारा किया जाता तैल श्रादि का पूरण। २ मल साफ करने के लिए गुदा में बत्ती आदि का किया जाता प्रक्षेप (विपा १, १ -पत्र १४ या १,१३) का भीतरी प्रदेश (निर १, १ ) 1
डग पुंन [ पुटक] पेट
स्थिय पुं [वाखिक] वन बनानेवाला शिल्पी (अणु) ।
वत्थी स्त्री [दे] उटज, तापसों को पर्णं-कुटी (दे ७, ३१) 1
वत्थु न [वस्तु] १ पदार्थ, चीज (पात्र उवा
सम्म ८; सुपा ४०१६ प्रासू ३०; १६१६ ठा ४, १ टी - पत्र १८८ ) । २ पुंन. पूर्व-ग्रन्थों का अध्ययन - प्रकरण परिच्छेद (सम २५; दि ; कम्म १, ७) + पाल, वाल [*पाल] राजा बीरबल का एक सुप्रसिद्ध जैन मंत्री ( ती २ हम्मीर १२ ) । वरन [वास्तु] १ गृह, पर 'वायुविहि परिमाणं करेइ' (उवा) । २ गृहादि-निर्माणशास्त्र (गाया १. १३) । ३ शाक- विशेष (बा) पाटन [पाठक] वास्तुशास्त्र का अभ्यासी (गाया १, १३ घर्मंवि (३३) वज्जा स्त्री ["विद्या] गृह-निर्माणकला (प्रौफ जं २ ) ।
वत्थुल [ वस्तुल] युच्छ और हरित पुं वनस्पति-विशेष शाक-विशेष (पएसा १पत्र ३२ ३४, पव २५९) । वत्थूल पुं [वस्तूल ] ऊपर देखो; 'वत्थु (?त्यू) ला येगपल्लंका' (जी ९) ।
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