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७४२ पाइअसद्दमण्णवो
वड्ढविअ-वणि वड्ढविअ वि [वर्धित, वर्धापित] जिसको मालय (हे ३, ८८; प्राप्र)। ५ वनस्पति (सूत्र २, २, ८ भग) विरोहि पूं
बधाई दी गई हो वह (दे ६, ७४)। (कम्म ४, १०; १६, ३६, दं १३)। ६ [विरोहिन्] आषाढ मास (सुज्ज १०, वड्ढार (अप) सक [वर्धय ] बढ़ाना, उद्यान, बगीचा (उप ६८६ टो)। ७ पु. १६) संड पुंन [°षण्ड] अनेकविध वृक्षों
गुजराती में वधारवु" । वड्ढारइ (भवि) । देवों की एक जाति, वानव्यंतर देव (भग; की घटा-समूह (ठा २, ४, भगः णाया १, वड्ढाव देखो वड्ढव । वड्ढावेमि (प्राक कम्म ३, १०)। ८ वृक्ष-विशेष (राय)। २; प्रौप) हत्थि पुं[हस्तिन्] जंगल ६१; पि ५५२)
कम्म पुन [कर्मन्] जंगल को काटने या | का हाथी (से ८, ३६) + लि, लि स्त्री वड्ढावअ देखो वड्ढवअ (प्राकृ ६१; कप्पूः |
बेचने का काम (भग ८, ५-पत्र ३७० [लि] वन-पंक्ति (गा ५७६; हे २, १७७) ।। उवा)
पडि)। कम्मंत न [°कर्मान्त] वनस्पति वणइ स्त्री [दे] वन-राजि, वृक्ष-पंक्ति (दे ७, बड्ढाविअ वि [दे] समापित, समाप्त किया |
का कारखाना (प्राचा २, २, २, १०)- ३८ षड्) हुआ (दे ७, ४५)
गय पुं[गज जंगली हाथी (से ३, ६३) वणण न [वनन] बछड़े को उसकी माता से वड्ढि वि वर्धिन बढ़नेवाला (से १, १)
"गि [ग्नि] दावानल (पास)। 'चर भिन्न दूसरी गाय से लगाना (पराह १, २वढि स्त्री [वद्धि बढ़ती, बढ़ाव (उवा; देवेन्द्र
वि [चर] वन में रहनेवाला, जंगली पत्र २६)। ३६७ जीवस २७४) ।।
(पएह १, १-पत्र १३ स्त्रो. री वणण न [दे. व्यान] बुनना । साला स्त्री
(रवण ६०); देखो यर + °छिंद वि वढिअ वि [वृद्ध] बढा हुआ (कुमा ७, |
[शाला] बुनने का कारखाना (दस १, [च्छिद्] जंगल काटनेवाला (कुप्र १०४) १ टी)। ५८ गा ४१०; महा) वढिअ वि [वधित] १ बढ़ाया हुआ
'त्थली स्त्री [स्थली] अरण्य-भूमि (से ३, | वणद्धि स्त्री [दे] गो-वृन्द, गो-समूह (दे ७, 'महिवीढे नइवढियनीरो उयहिव्व वित्थरई'
६३) 'दव पुं[दव] दवानल (णाया १, ३८) ।
१-पत्र ६५) (सिरि ६२७) । २ खण्डित किया हुआ,
पव्वय पुन [पर्वत] वणनत्तडिअ वि [दे] पुरस्कृत, आगे किया
वनस्पति से व्याप्त पर्वतः 'वरणाणि वा काटा हुआ (से १, १)।
हुआ (षड्) । वणपव्वयाणि वा' (पाचा २, ३, ३, २) वणपक्कसाव देशरभ, श्वापद-विशेष वड्ढिआ स्त्री [दे] कूपतुला, ढेकुवा (दे ७,
"बिराल ' [बिडाल] जंगली बिल्ला (दे ७,५२) ३६)
(सण) माल न ["माल] एक देव-वणप्फ बिनस्पति] १ वृक्ष-विशेष, फूल वढिम पुंस्त्री [वृद्धिमन्] वृद्धि, बढ़ाव; विमान (सम ४१), माला स्त्री [°माला] के बिना ही जिसमें फल लगता हो वह वृक्ष 'पत्ता दिणं वढिमा' (प्राकृ ३३; कप्पू)। १ पैर तक लटकनेवाली माला (प्रौपः अच्च
(हे २, ६६, कुमा)। २ लता, गुल्म, वृक्ष वढ देखो वड = वट (हे २, १७४; पि २०७) ३६) । २ एक राज-पत्नी (पउम ११, १४)।
पादि कोई भी गाछ, पेड़ मात्र (भग)। ३ न. वढ वि [दे] मूक, वाक्-शक्ति से रहित ३ रावण की एक पत्नी (पउम ३६, ३२)।
फल (कुमा ३,२६) काइअवि [कायिक] (संक्षि ३९) 'य वि [ज वन में उत्पन्न, जंगली (वजा |
वनस्पति का जीव (भग)। १२८) यर वि ['चर] १ वन में वढर 1 [बठर] १ मूर्ख छात्र । २
रहनेवाला, बनैला (णाया १, १-पत्र ६२,
वणय पु [वनक] दूसरी नरक-पृथिवी का एक वढल , ब्राह्मण पुरुष और वैश्य स्त्री से
नरक-स्थान (देवेन्द्र ६) उत्पन्न संतान, अम्बष्ठ । ३ वि. शठ, घूत्तं ।
गउड) । २ पुंस्त्री. व्यन्तर देव (विसे ७०७; ४ मन्द, अलस (हे १, २५४; षड्)
पव १६०)। स्त्री. री (उप पृ ३३०) 1 राइ
. वणरसि (अप) देखो वाणारसी (पिंग; पि स्त्री [राजि] तरु-पंक्ति, वृक्ष-समुह (चंड;
___३५४)। वण सक [वन] मांगना, याचना करना।
सुर ३, ४२, अभि ५५), 'राज, राय पुं
वणव पु[दे] दावानल (द ७, ३७)।। वणेइ (पिंड ४४३) ["राज] १ विक्रम की पाठवीं शताब्दी का
वणसवाई स्त्री [दे] कोकिला, कोयल (दे वण [दे] १ अधिकार । २ श्वपच, चाँडाल गुजरात का एक प्रसिद्ध राजा (मोह १०८)। ७, ५२, पात्र) (दे ७, ८२)
२ सिंह, केसरी (चंड) लइया, "लया स्त्री वणस्सइ देखो वणप्फइ (हे २, ६६ जी २; वण पुंन [व्रण] घाव, प्रहार, क्षतः 'जस्सेना [°लता] १ एक स्त्री का नाम (महा) । २ उवः पराण १) वणो तस्सेम वेपणा (काप्र ८७१ गा ३८१ वह वृक्ष जिसको एक ही शाखा हो (कप्पः वणाय वि [दे] व्याध से व्याप्त (दे ७, ३५)।। ४२७; पान) ५ वट्ट [°पट्ट] घाव पर राय) वाल वि [पाल] उद्यान-पालक, वणार '[दे] दमनीय बछड़ा (दे ७, ३७) ।। बाँधी जाती पट्टी (गा ४५८)
माली (उप ६८६ टी) वास पुं[वास] वणि वि [व्रणिन्] घाववाला, जिसको घाव वण न [वन] १ अरण्य, जंगल (भगः पाम अरण्य में रहना (पि ३५१). वासी स्त्री हुआ हो वह (दे ६, ३६ पंचा १६, ११) उवाः कुमाः प्रासू ६२; १४५) । २ पानी, [वासी] नगरी-विशेष (राज)। 'विदुग्ग वणि [वणिज ] बनिया, व्यापारी, जल (पामा वजा ८८)। ३ निवास । ४ ! न ["विदुर्ग] नानाविध वृक्षों का समूह वणिअ वैश्य (प्रौपः उप ७२८ टी; सुर
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