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पाइअसद्दमहण्णवो
वञ्चंसि-वज
वञ्चसि वि [वचस्विन्] प्रशस्त वचनवाला वच्छ वि [वात्स्य वात्स्य गोत्र का (दि ३३४)। वकृ. वज्जत, वज्जमाण (सुर ३, (णाया १, १-पत्र ६)।
११५, सुपा ६५६) वञ्चसि वि वर्चस्विन् ] तेजस्वी (णाया वच्छगावई नी [वत्सकावती] एक विजय- वजन [वाद्य बाजा, वादित्र (दे ३, ५८ १, १; सम १५२; औपः पि ७४) । क्षेत्र (ठा २, ३-पत्र ८०; इक)।
गा ४२०)।वञ्चय पु[व्यत्यय विपयास, उलट-पुलट
कच्चर नवित्सर साल, वर्ष (प्राप्रा सिरि बज विविधष्ठ, उत्तम (सुर १०, (उपपृ २६६, पव १०४)। देखो क्त्ता ६३५)
२)। २ प्रधान, मुख्य (हे २, २४)। वच्छल वि [वत्सल] स्नेही, स्नेह-युक्त (गा वश्वरा (अप) देखो वचा (भवि) ।
वज वि [वर्ज १ रहित, वजित; 'जिरणवजवञ्च । देखो वय = वच् । ३; कुमाः सुर ६, १३७)।
देवयाणं न नमइ जो तस्स तणूसुद्धी' (श्रा वञ्चामेलिय देखो विचामेलिय (विसे वच्छल न [वात्सल्य] स्नेह, मनुराग, प्रेम
६), 'सहजनिरोगजवजा पायं न घडंति १४८१)। (कुमा; पडि)।
प्रागारी' (चेइय ४७१), 'लोयववहारवज्जा वञ्चास पुं व्यत्यास] विपर्यास, विपर्यय वच्छा स्त्री [वत्सा] १ विजय-क्षेत्र विशेष ।
तुब्भे परमत्थमूढा य (धर्मवि ८४५; विसे (ोघ २७१; कम्म ५, ८६)।२ एक नगरी (इक)। ३ लड़की (कप्पू)।
२८४०; श्रावक ३०७, सुर १४, ७८)। वञ्चासिय वि [व्यत्यासित] उलटा किया वच्छाण Kउझन् बैल, बलीवदः 'उक्खा
२ न. छोड़कर, बिना, सिवाय (श्रा ६ दं हुप्रा (विसे ८५३) वसहा य वच्छाणा' (पा)।
१७ कम्म ४, ३४; ५३)। ३ पुं. हिंसा, बच्चीसग पुं[बच्चीसक] वाद्य-विशेष (मनु)। वच्छावई स्त्री [वत्सावती] विजय-क्षेत्र विशेष
प्राणि-वध (पराह १,१-पत्र ६)। वच्चों देखो वञ्च = वर्चस् (सुर ६, २८)
वज देखो अवज्ज (सूत्र १, ४, २, १६; वच्छ न [दे] पार्श्व, समीप (दे ७, ३०)। वच्छि देखो वय = वच् ।
बृह १)। वच्छ पुन [ वक्षस् ] छाती, सीना (हे २ वच्छिउड पुंदे] गर्भाश्रय (दे ७,४४ टी)
वज्ज दखा वइर: बज्र (कुमाः सूर ४.१५२: वाच्छम पुंस्त्री [वृक्षत्व वृक्षपन ( षड) १७ संक्षि १५ प्रापः गा १५१: कमा
गु ५ हे १,१७७, २,१०५ षड्; कम्म स्थल न [ स्थल] उर:-स्थल, छाती (कुमा, वच्छिमय पुं [दे] गर्भ शय्या (दे ७, ४४)
१,३६; जीवस: ४६; सम २५)। १७ पुं. महा), सुत्त न [सूत्र] प्राभूषण-विशेष, वच्छीउत्त [दे] नापित, हजाम (दे ७,
विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५, १६ वक्षःस्थल में पहनने की सँकली-सिकड़ी या । ४७; पापः स ७५)।
१७, ८, १३३)। १८ हिंसा, प्राणि-वध सिकरी (भग ६, ३३ टी-पत्र ४७७)। वच्छीव पुं[दे] गोप, ग्वाला (दे ७, ४१;
(पएह १, १-पत्र ६)। १६ कन्द-विशेष पात्र)। वच्छ पुं[वृक्ष] पेड़, शाखी, द्रुम (प्राप्र; कुमाः
(पएण १-पत्र ३६; उत्त, ३६, ६६)। वच्छुद्धलिअ वि [दे] प्रत्युद्धत (षड्)। हे २, १७ पात्र)
२० न. कर्म-विशेष, बँधाता हुन्ना कर्म (सूत्र वच्छोम न [वक्षोम] नगर-विशेष, कुन्तल वच्छ [वत्स] १ बछड़ा (सुर २, ६५;
२,२, ६५, ठा ४, १-पत्र १९७)। २१ देश की प्राचीन राजधानी (कप्पू) - पान)। २ शिशु, बच्चा। ३ वत्सर,
पाप (सूअ १, ४, २, १६) कंठ पुं वर्ष। ४ वक्षःस्थल, छाती (प्राप्र)। ५ वच्छोमी स्त्री [दे] काव्य की एक रीति
[कण्ठ वानर-द्वीप का एक राजा (पउम ज्योतिषशास्त्र प्रसिद्ध एक चक्र (गण १९)।
६, ६०) कंत न ["कान्त] एक देव६ देश-विशेष (तो १०)। ७ विजय-क्षेत्रवज अक [त्रस्] डरना। वज्जइ, वज्जए
विमान (सम २५) ५ कंद पुं [ कन्द] एक विशेष (ठा २, ३---पत्र ८०)। ८ न. गोत्र(हे ४, १६८ प्राकृ ७५; धात्वा १५१)।
प्रकार का कन्द, वनस्पति-विशेष (श्रा २०)। विशेष । वि. उस गोत्र में उत्पन्न (ठा वज्ज देखो वच्च = वज् । बज्जइ (नाट--मृच्छ कूड न [°कूट] एक दैव-विमान(सम २५) । ७–पत्र ३६०; कप्प) दर पुंस्त्री ['तर १९३), वजास (पि.४८८) ।
क्ख पुं [क्ष] एक विद्याधर वंशीय राजा क्षुद्र वत्स। २ दमनीय बछड़ा आदि। स्त्रो.री वज्ज सक[वजेय् ] त्याग करना। कवकृ. (उम ८, १३२)। चूड पुं [चूड] (प्राकृ २३) 'मित्ता स्त्री ["मित्रा] १ |
वजिजंत (पंचा १०, २७) । संकृ. वज्जिय, विद्याधर-वंश का एक राजा (पउम ५,४६)। गोलोक में रहने वाली मार देवी वजेवि, वजिऊण, वजत्ता (महा; काल; जंघ j ["जङ्घ] विद्याधर-वंशीय एक (ठा ८-पत्र ४३७: इक)। २ ऊवलोक
पंचा १२, ६)। कृ. वज, वजणिज, नरेश (पउम ५, १५) । णाभ [ नाम] में रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी (इक;
वजेयव्व (पिंड ५६२, भगः परह २, ४ भगवान अभिनन्दन-स्वामी के प्रथम गणधर राज) यर देखो दर (दे २, ६७, सुपा ४८५; महा; परह १, ४, सुपा ११०; (सम १५२)। देखो नाभ.) "दत्त पुं ३७) + राय पुं [राज] एक राजा (ती उप १०३७)।
["दत्त १ विद्याधर-वंश का एक राजा १०) ५ °वाल पुंस्त्री [पाल] गोप, ग्वाला वज्ज अक [व] बजना, वाद्य प्रादि की | (पान)1 स्री ली (प्रातम)।
मावाज होना । वज्जइ (हे ४, ४०६; सुपा २०,१८) द्धय ' [ध्वज] एक विद्याधर
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