________________
७२०
पाइअसद्दमहण्णवो
लंछण-लक्खणा
लंछण न [लाञ्छन] १ चिह्न, निशानी लंबिअ । वि [लम्बित] १ लटकता हुधा लक्ख सक [लक्षय ] १ जानना। २ (पाम)। २ नाम । ३ अंकन, चिह्न करना लंबिअय) (गा ५३२: सुर ३, ७०)। २ पुं पहचानना। ३ देखना । लक्खइ (महा)। (हे १, २५, ३०)। वानप्रस्थ का एक भेद (प्रौप) ।
कर्म. लक्खिजए, लक्खीयसि (विसे २१४६ लंछणा स्त्री [लान्छना] चिह्न करना (उप लंबिर वि [लम्बित] लटकनेवाला (कुमाः | महाः काल) । कवकृ. लक्खिजंत (से ११, ५२२)। गउड)।
४५)। कृ. लक्खणीअ (नाट--शकु २४), लंछिअ वि [लाञ्छित] चिह्नित, कृत-चिक लंबअ विलम्बकी लम्बी लकडी के अन्त ।
लंबुअ वि लिम्बुका १ लम्बी लकड़ी के अन्त देखो लक्ख = लक्ष्य । (पव १५४ णाया १, २-पत्र ८६, ठा भाग में बैंधा हमा मिट्टी का ढेला। २ भीत | लक्ख पुन [द] काय, शरार, यह (५७, ३, १; कसः कप्पू)।
में लगा हुमा ईंटों का समूह (मृच्छ ६) १७) । लंडुअ वि [दे. लण्डित] उत्क्षिप्त, चंडप्प- लंबत्तर पंन लिम्वोत्तर कायोत्सर्ग का एक लक्ख पुन [लक्ष] संख्या-विशेष, लाख, सौ हजार वादलंडुओ विन वरंडो पव्वदादो दूरं आरो
दोष, चोलपट्ट को नाभि-मंडल से ऊपर रख- (जी ४५; सुपा १०३, २४८; कुमाः प्रासू विन पाडिदो म्हि' (चारु ३)
कर और जानु को चोलपट्ट से नीचे रख कर | ६६) पाग पु[पाक] लाख रुपयों के लतक। पु [लान्तक १ एक देवलोक, कायोत्सर्ग करना (चेइय ४८४)।
व्यय से बनता एक तरह का पाक (ठा )। लंतग छठवाँ देवलोक (भगः प्रौप; अंत; लंबुस पुंन [दे.लम्बूष कन्दुक के प्राकार | लक्ख वि [लक्ष्य] १ पहचानने योग्य चिरलंतय । इक)। २ एक देवविमान (सम का एक प्राभरण, 'छत्तं चमर-पडाया दप्पण- लक्खगो' (पउम ८२, ८४)। २ जिससे
२७, देवेन्द्र १३४)। ३ षष्ठ देवलोक के लंबूसया वियाणं च' (पउम ३२, ७६% जाना जाय वह, लक्षण, प्रकाशक; 'भुप्रदप्पबीनिवासी देव । ४ षष्ठ देवलोक का इन्द्र (राजः ६६, १२)।
अलक्खं चाव' (से ५, १७)। ३ वेध्य, ठा २, ३-पत्र ८५)।
लंबोदर । वि [लम्बोदर] १ बड़ा पेटवाला निशानाः 'लक्खविंधण-(धर्मवि ५२; दे लंद पुंन [लन्द] काल, समय (कप्पः पव) लंबोयर (सुख १, १४उवा)। २ पृ. २, २६; कुमा)। ७०)।
गणपति, गणेश (श्रा १२; कुप्र ६७)। लक्ख देखो लक्खा (पडि)। लंदय पुंन [दे] कलिन्दक, गो आदि का लंभ सक [ लभ ] प्राप्त करना, 'अजेंवाहं लक्खग वि [लक्षक] पहचाननेवाला (पउम खादन-पात्र (पव २)।
न लंभामि अवि लाभो सुए सिया' (उत्त २, ८२, ८४; कुप्र ३००)। लंपड वि [लम्पट] लोलुप, लालची, लुब्ध ३१)। भवि. लंभिस्सं (पि ५२५) । कम.
लक्ख ण पुंन [लक्षण] १ इतर से भेद का (पामा सुपा १०७; ५६६; सुर ३, १०)। लंभीअदि, लंभीआमो (शौ) (पि ५४१)।
बोधक चिह्न। २ वस्तु-स्वरूप (ठा ३, ३; लंपाग [लम्पाक] देश विशेष (पउम १८, संकृ. लंभिअ, लंभित्ता (मा १६; नाट
४, १; जी ११, विसे २१४६; २१४७; ५६)चैत ६१; ठा ३, २)।
२१४८) । ३ चिह्नः लक्खरणपुरणं' (कुमा)। लंपिक्ख [६] चोर, तस्कर (दे ७, १९) लंभ सक [लम्भय ] प्राप्त करना। संकृ.
४ व्याकरण-शास्त्र; 'लक्खणसाहित्तपमाणलंब सक [लम्ब] १ सहारा लेना, पालम्बन लंभिअ (नाट-चैत ४४) । कृ लंभइदव्य ।
जोइसाईणि सा पढई' (सुपा १४१, ६५७)। करना। २ अक. लटकना । लंबेइ (महा)। (शौ), लंणिज्ज, लंभणीअ (मा ५१;
५ व्याकरण आदि का सूत्र । ६ प्रतिपाद्य, वकृ. लंबंत, लंबमाण (प्रौप; सुर ३,७१,४, नाट-मालती ३६, चैत १२५)।
विषय (हे २, ३) । ७ पु. लक्ष्मण । ८ २४२, कप्पः वसु)। संक. लंबिऊण (महा) लंभ पालामा प्राप्ति (पउम १००, ४३ सारस पक्षीः 'लक्खणों' (प्राकृ २२)। लंब वि [लम्ब] लम्बा, दीर्घ; 'उट्ठा उट्टस्स से ११, ३१, गउड; सिरि ८२२, सुपा संवच्छर पु[संवत्सर] वर्ष-विशेष (सुज चेव लंबा' (उवा; गाया १, ८-पत्र ३६४) । देखो लाह = लाभ ।
१०, २०)। लंभण पुलम्भन] मत्स्य की एक जाति लक्खण पुं लक्ष्मण] श्रीराम का छोटा लंब [दे] गोवाट, गो-बाड़ा (दे ७, २६)। (विपा १, ८ टी-पत्र ८४)।
भाई (से १, ४८) । देखो लखमण ।। लंबअ न [लम्बक] ललन्तिका, नाभि-पर्यन्त लंभिअ देखो लंभ = लम् , लम्भय । लक्खण न [लक्षण] कारण, हेतु (दसनि लटकती माला प्रादि (स्वप्न ६३)। | लंभिअ वि [लब्ध] प्राप्त (नाट-चैत |
१, १४)। लंबणा स्त्री [लम्बना] रज्जु, रस्सी (स |
१२५) ।
लक्खणा स्त्री [लक्षणा] १ शब्द-वृत्ति विशेष, लंभिअ वि [लम्भित] प्राप्त कराया हुआ,
शब्द की एक शक्ति, जिससे मुख्य अर्थ के लंबा स्त्री [दे] १ वल्लरी, लता ( षड्)। २
प्रापित (सूम २, ७, ३७ स ३१०; मच्नु बाध होने पर भिन्न अर्थ की प्रतीति होती है केश, बाल (षड् ; दे ७, २६) । ७१)
(द १, ३) । २ एक महौषधि (ती ५)।। लंबार्ली स्त्री [दे] पुष्प-विशेष (दे ७, १६)।
लक्कुड न [दे. लकुट लकड़ी, यष्टि, छड़ी, लक्खणा स्त्री [लक्ष्मणा] १ पाठवें जिनदेव की लंबि बि [लाम्बन्लटकता (गउड)। लाठी (दे ७, १६, पान)।।
। माता (सम १५१) । २ उसी जन्म में मुक्ति
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org