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७२४ पाइअसद्दमहण्णवो
लग-लाल लहग [दे] बासी अन्न में पैदा होनेवाला लहुई देखो लहु ।
लाढ पुं [लाढ] देश-विशेष, एक प्राय देश द्वीन्द्रिय कोट-विशेष (जी १५)। लहुग देखो लहु (कप्प; द्र ५८)।
(प्राचाः पव २७५; विचार ४६)। लहण न [लभन] १ लाभ, प्राप्ति । २ ग्रहण, लहुवी देखो लहु ।
लाढ वि[दे] १ निर्दोष पाहार से प्रात्मा स्वीकार (श्रा १४) -
लाइअ वि [लागित] लगाया हुमा (से २, का निर्वाह करनेवाला, संयमी, मात्म-निग्रही लहर पुं [लहर] एक वणिक पुत्र (सुपा
२६; वजा ५०)।
(सूत्र १, १०, ३, सुख २, १८) । २ प्रधान, ६१७)।
लाइअ वि [दे] १ गृहीत, स्वीकृत (दे ७, मुख्य (उत्त १५, २) । ३ पुं. एक जैन लहरि । स्त्री [लहरि, री] तरंग, कल्लोल २७) । २ घृष्ट (से २, २६)। ३ न. भूषा, आचार्य (राज)। लहरी (सरण; प्रासू ६६७ कुमा) । मण्डन (दे ७, २७)। ४ भूमि को गोबर लाढ वि [दे] श्रेष्ठ, उत्तम (प्राचा २, ३, १, लहाविअ वि [लम्भित] प्रापित, प्राप्त कराया अादि से लीपना (सम १३७; कप्प, औप; हुआ (कुप्र २३२)
णाया १, १ टी--पत्र ३)। ५ चौधं, लाण न [लान] ग्रहण, मादान (से ७, ६०)। लहिअ देखो लद्ध (कप्प; पिंग)।
आधा चमड़ा (दे ७, २७) ।'
लावू देखो लाऊ (षड्)। | लाइअव्व देखो लाय=लावय । र लहिम देखो लघिम (षड् ) ।
लाभ पुं [लाभ] १ नफा, फायदा (उवः सुख लाइज्जत देखो लाय = लागय ।।
८, १३)। २ प्राप्ति (ठा ३, ४)। ३ सूद, लह ) विलिघु] १ छोटा, जघन्य (कुमा; लाइम विलिय] काटने योग्य (दस ७, ब्याज (उप ९५७)। लहुअ सुपा ३६०; कम्म', ७२, महा) ।
लाभंतराइय न [लाभान्तरायिक लाभ का २ हलका (से ७, ४४; पाय)। तुच्छ,
लाइम वि [दे] १ लाजा के योग्य, खोई के प्रतिबन्धक कर्म (धर्मसं ६४८)। निःसार (पएह १, २-पत्र २८, परह २,
योग्य । २ रोपण के योग्य, बोने लायक लाभिय। वि [लाभिक लाभ-युक्त, लाभ२–पत्र ११६)। ४ श्लाघनीय, प्रशंसनीय (प्राचा २, ४, २, १५)
लाभिल्ल वाला (प्रौप; कर्म १७) - (से १२, ५३) । ५ थोड़ा, अल्प (सुपा
लाइल्ल ' [दे] वृषभ, बैल (दे ७, १६) ।। लाम वि [दे] रम्य, सुन्दर (प्रौप)।। ३५४)। ६ मनोहर सुन्दर (हे २, १२२) । लाउ देखो अलाउ (हे १, ६६, भग; कसा
लामंजय न [द] तुण-विशेष, उशीर तृण, स्त्री. ई,°वी (षड् ; प्राक २८; गउड हे औप)।
खस-गाँडर घास की जड़ (पाप) - २, ११३) । ७ न. कृष्णागुरु, सुगन्धि धूप
लाउल्लोइय न [दे] गोमय आदि से भूमि का लामा स्त्री [दे] डाकिनो, डाइन (दे ७, २१)। द्रव्य विशेष । ८ वीरण-मूल (हे २, १२२) ।
लेपन और खड़ी आदि से भीत आदि का लाय सक [लागय् ] लगाना, जोड़ना । ६ शीघ्र, जल्दी (द्र ४६; परह २, २--पत्र पोतना (राय ३५)।
लाएसि (विसे ४२३) । वकृ. लायंत (भवि)। ११६) । १० स्पर्श-विशेष (अणु)। ११
कवकृ. लाइज्जत (से १३, १३)। संकृ. लघुस्पर्श नामक एक कर्मभेद (कम्म १, ४१)। लाऊ देखो अलाऊ (हे १, ६६; कुमा)।
लाइवि (अप) (हे ४, ३३१, ३७८)। १२ पुं. एक मात्रावाला अक्षर (हे ३, १३४) लाख (अप) देखो लक्ख - लक्ष (पिंग)।
लाय सक [लावय ] १ कटवाना । २ काटना, कम्म वि [°कर्मन्] जिसके अल्प ही कर्म लाग पुं[दे] चुंगी, एक प्रकार का सरकारी छेदना । कृ. लाइअव्य (से १५, ७५) अवशिष्ट रहे हों, शीघ्र मुक्ति-गामी (सुपा कर; लगान, गुजराती में 'लागो (सिरि ४३३,लाय देखो लाइअ = (३); 'लाउल्लोइय' ३५४) । करण न [करण] दक्षता, ४३४) ।
(प्रौप) । चातुरी (णाया १, ३--पत्र ६२ उवा)। लाघव न [लाघव] लघुता, छोटाई, लघुपन लाय वि [लात १ प्रात्त, स्वीकृत, गृहीत ।
परक्कम पुं [पराक्रम] ईशानेन्द्र का एक (भगः कप्प; सुपा १०३; कुप्र २७७; किरात २ न्यस्त, स्थापित (प्रौप)। ३ न. लग्न का पदाति-सेनापति (ठा ५, १--पत्र ३०३; १६)
एक दोष, 'लायाइदोसमुक्कं नरवर अइसोहणं इक) । संखिज्ज न ["संख्येय संख्या- लाधवि वि [लाघविन] लघता-यक्त.
लग्गं' (सुपा १०८)। विशेष, जघन्य संख्यात (कम्म ४, ७२) । वाला (उत्त २६, ४२, आचा)।
लाय पुंस्त्री [लाज] १ भाद्र तण्डुल । २ ब. लहुअ सक [लघय , लघु + कृ] लघु करना, लाघविअ न [लाघविक] लघुता, छोटापन, । भ्रष्ट धान्य, भुजा हुआ नाज, खोई (कप्पू) । छोटा करना । लहुअंति, लहुएसि (श्रा २० लाघव (ठा ५, ३--पत्र ३४२, विसे ७ टी; | लायण न [लागन] लगवाना (गा ४५८)। गा ३४५) । वकृ. लहुअंत (से १५, २७) सूम २, १, ५७; भग)।
लायण्ण न [लावण्य] १ शरीर-सौन्दर्य-विशेष, लहुअवड पुं[दे] न्यग्रोध वृक्ष, बरगद का पेड़ | लाज देखो लाय = लाज (दे ५, १०) शरीरकान्ति (पाप्र; कुमा; सण, पि १८६)। (दे ७, २०)
लाड पुलाट] देश-विशेष (सुपा ६५८%; कुत्र २ लवणत्व, क्षारत्व (हे १, १७७; १८०)। लहुआइअ । वि [लघूकृत] लघु किया २५४ सत्त ६७ टी; भविः सरण; इक)- लाल सक [लालय् ] स्नेह-पूर्वक पालन लहुइअ । हुआ (से ६,४; १२, ५४, स लाडी स्त्री [लाटी] लिपि-विशेष (विसे ४६४ करना । लालति (तंदु ५०) । कवकृ. २०७; गठड)। टी)।
लालिज्जत (सुर २, ७३; सुपा २४) ।।
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