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इदेही - इस्स
देह त्री [वैदेही ] १ राजा जनक की स्त्री, सीता की माता ( पउम २६, ७५) । २ जनकात्मजा, सीता । ३ हरिद्रा, हल्दी । ४ पिप्पली, पीपल । वरिगक स्त्री (संक्षि ५ ) 1इम्म [वैधर्म्य] धर्मता विपरीतपन (विसे ३२२८) |
इमिस्स वि [ व्यतिमिश्र ] संमिलित ( श्राचा २, १, ३, २) ।
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चर देखो र वइ पुन [व] १ रत्न- विशेष, हीरक, हीरा (सम ६३ औप कप्पः भगः कुमा) । इन्द्र का अन (षड् ) । ३ एक देव विमान ( देवेन्द्र १३३ सम २५) । ४ विद्यतु, बिजली (कुमा) ५. पुं. एक सुप्रसिद्ध जैन महर्षि ( कप्पा हे १, ६० कुमा) । ६ कोकिलाक्ष वृक्ष । ७ श्वेत कुशा ८ श्रीकृष्ण का एक प्रपौत्र । ९ न. बालक, शिशु । १० धात्री । ११ काँजी १२ वज्रपुष्प का लोहा । १४ प्रभ्र-विशेष प्रसिद्ध एक योग (हे २, कीलिका, छोटी कील (सम
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१०५) । १६ १४९ ) + कंड [काण्ड ] प्रभा पृथियों का एक वज्ररत्न-मय काण्ड (राज) -1 "कंत न [°कान्त] एक देव-विमान (सम २५ ) । "कूड न [° कूट ] १ एक देव - विमान (सम २५) । २ देवी विशेष का श्रावासभूत एक शिखर (राज)[क] १ भरत क्षेत्र में तीय प्रतिवासुदेव (सम १५४) २ विजय के लोहार्गल । पुष्कलावती नगर का एक राजा (आव) । पभन
देश (हे १. १५२) ।
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१३ एक प्रकार
१५ ज्योतिष
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[प्रथ] एक देव-विमान (सम २५ ) मम्मा श्री [*मध्या] प्रतिमा विशेष एक प्रकार का व्रत (ठा ४, १ – पत्र १९५ ) 1. "रूप न [रूप] एक देव-विमान (सम २५) लेखन [[लेश्य] एक देव-विमान (सम २५ ) + वण्णन [वर्ण] देवविमानविशेष (सम २५) सिंग [] एक देव- विमान का नाम (सम २५) । सिंह [*सिंह] एक राजा (काल पि ४०० ) - "सिटुन [" सुष्ट] एक देव-विमान (सम २५) सीह देखो सिंह (काल) सेण ["सेन] एक प्राचीन जैन मो
पाइअसद्द मण्णवो
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वज्रस्वामी के शिष्य थे (कप्प) सेणा स्त्री [सेना] १ एक इन्द्राणी, दाक्षिणात्य मानव्यन्तरेन्द्र की एक महिषी खाया २ – पत्र २५२ ) । २ एक दिक्कुमारी देवी (इक) हरपुं [धर ] इन्द्र (षड् ) "मय वि [य] वज्र रत्नों का बना हुआ (सम ६३: ग्रीफ पि७० १३५), श्री. मई, मती ( जीव ३ पि २०३ टि ४) । वतन [व] एक देव विमान (सम २५) सभनारायन [ ऋषभनाराच ] संहनन- निशेष (सम १४६ भग) देखो
वज्ज = वज्र 1
वइरा स्त्री [वज्रा ] एक जैन मुनि शाखा (काव्य) 10
पराग
[ वैराग्य ]
( पउम २६, २०)
विरक्ति, उदासोगता
इड [वैराट] १ एक प्रायं देश । २ न. प्राचीन भारतीय नगर विशेष श्री मय देश की राजधानी थी; 'वइराड मच्छ वरुणा 'अच्छा' (पव २७५) ।
वइराय देखो वइराग (भवि) 1 बहुरि [ वैरिम् ] दुश्मन रिपु (मुर वइरिअ ) १, ७; कालः प्रासू १७४) वइरिक्क न [दे] विजन, एकान्त स्थान; देखो पइरिक्क 'ग्र हिनं सुरागाइ निरंजगाइ मरिका (या ८७० ) 1बस्ति र [व्यतिरिक्त] मित्र मल १२, ४४ इय ५४ ) 1बरी श्री
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[ख] एक जैन मुनि शाखा
वरुट्टा श्री [बैरोट्या] १ एक विद्यादेवी (संति ६२ भवान् महिनावजी को शासन देवी (संति १० ) 1वहरुतरडिंग न [पशोत्तरावतंसक ] एक देव - विमान (सम २५) । वइरेअ ) ु [ व्यतिरेक] १ अभाव (धर्मसं बरेअ इरेग ११२)। २ के प्रभाव में हेतु का नितान्त प्रभाव ( धर्मंसं ३६२ उप ४१३३ विसे २६०; २२०४) । वइरोअण[वैरोचन] १ ( अग्नि, वह्नि १, ६, ६) । २ बलि नामक इन्द्र (देवेन्द्र ३०७ ) । ३ उत्तर दिशा में रहनेवाले श्रसुर
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निकाय के देव (भग ३, १० सम ७४ ) | ४ पुंन. एक लोकान्तिक देव- विमान (पव २६७, सम १४ ) |
वइरोअण पुं [दे] बुद्ध देव (दे ७, ५१) । बइरोड [] जर उपपति (दे०, ४२) - यश्चलय [दे] साँप की एक जाति भ सर्प (दे ७,५१)
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वइवाय पुं [व्यतीपात ] ज्योतिष प्रसिद्ध एक योग (राज) |
वेला श्री [हे] सीमा (दे ७, ३१) - वइस देखो वइस्स = वैश्य; 'बारलाइनोरा
बसइअ
उता ते होंति वइसनामा वावारपरायणा धीरा' (पउम २, ११६) [वैषयिक] विषय से उत्पन्न (५) । संपादण[वैशम्पायन] एक ऋषि जो व्यास का शिष्य था ( हे १, १५१६ प्रात्र) । इसम्म पुंग [वैपम्य] वियमता, 'सम्म' ( संक्षि ५० प ६१ ) । वइसवण पुं [वैश्रवण] कुवेर हे १, १५२ भवि) 1
चइसस न [ वैशस ] रोमाञ्चकारी पाप-कृत्य (उप ५७५)।
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वइसानर देखो वइस्सागर (धम्म १२ टी) । ~ बाल देखो [वैशाल] विशाला में (हे १, १५१ ) । - वइसाद [वैशाख] १ मास-विशेष (सुर पुं ४, १०१ भवि ) । २ मन्थन - दण्ड । ३ पुंन. योद्धा का स्थान विशेष ( हे १, १५१ प्राप्र ) । बसाही देखो बेसाही (राज) m
सिवि [वैशिक] वेष से जीविका उपार्जन करनेवाला (हे १, १५२: प्रा ) । वइसिटु न [ वैशिष्ट्य ] विशिष्टता, भेद ( धर्मसं ६९ ) । इसेसिअन [वैशेषिक] दर्शन-विशेष करणाद-दर्शन ( विसे २५०७ )। २ विशेष; 'जोएज्ज भावप्रो वा वइसेसियलक्खणं चउहा (विसे २१७८) ।
वइस्स पुंस्त्री [वैश्य ] वर्णं विशेष, वणिक्, महाजन ( विपा १, ५)।
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