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पाइअसद्दमहण्णवो
ब-बइदेह
व पुं [व] १ अन्तस्थ व्यञ्जन वर्ण-विशेष, वइ स्त्री [वृति] बाड़, काँटे प्रादि से बनाई | वइकच्छ ( [वैकक्ष] उत्तरासंग (ग्रौप) ।। जिसका उच्चारणस्थान दन्त और प्रोष्ठ हैं जाती स्थानपरिधि, घेराः 'धन्नाणं रक्खट्ठा वइकलिअ न [[वैकल्य] विकलता (पान)। (प्राप; प्रामा) । २ पुंन. वरुण (से १, १; कोरंति वईयो' (श्रा १०० गउडा गा ६६
वइकुंठ पुं[चैकुण्ठ] १ उपेन्द्र, विष्णु (पान)। २, ११) उप ६४८ पउम १०३, १११, वजा ८६),
२ लोक-विशेष, विष्णु का धाम (उप १०३१ वम [व] देखो इव (से २, ११, गा १८० 'उच्छू वोलंति वई' (धर्मवि ५३; संबोध
टी)६३; ६४७६; कुमाः हे २, १८२; प्रासू
वइकत वि [व्यतिक्रान्त] व्यतीत, गुजरा वइ देखो पइ = पति (गा ६६; से ४, ३४;
हुप्रा (पउम २, ७४उवा; पडि) व देखो वा = ग्र (हे १, ६७, गा ४२; १६४, कप्पः कुमा)।
वइक्कम पु [व्यतिक्रम] विशेष उल्लंघन, कुमाः प्राकृ २६, भवि)।वई देखो वय = वद् ।
व्रत-दोष-विशेष (ठा ३, ४-पत्र १५६ पव व देखो वाया = वाच् । 'क्खेवअ वि वई देखो वय = व्रज् ।
६, टीः पउम ३१, ११)। [क्षेपक वचन का निरसन-खण्डन (गा वइ वि[दे] १ पीत, जिसका पान किया वइगरणिय पुं [वैकरणिक] राज-कर्मचारि१४२ अ), पइराय पुं [पतिराज] एक | गया हो वह (दे ७, ३४) । २ आच्छादित, विशेष (सुपा ५४८)। प्राचीन कवि, 'गउडवहाँ काव्य का कर्ता ___ ढका हुआः पच्छाइअनूमिपाइं वाई'
वइगा देखो वइआ (सुख २, ५; बृह ३) (गउड)। (पाय)
वइगुण्ण न [वैगुण्य १ वैकल्य, अपरिवअणीआ स्त्री दे] १ उन्मत्त स्त्री। २ दुःशील वइअ वि [व्ययित] जिसका व्यय किया
पूर्णता, प्रसंपन्नता (धर्मसं ८८४) । २ विपस्त्री (षड् ) गया हो वह, 'किमिह दब्वेण वइएणं बहुएणं |
रीतपन, विपर्यय (राज)। वअल प्रक [प्र + सू] पसरना, फैलना। (सुपा ५७८ ७३, ४१०)।
वचित्त न [वैचित्र्य] विचित्रता (विसे वनलइ (षड् ) | वइअब्भ पुं[वैदर्भ] १ विदर्भ देश का राजा।
३११, धर्मसं ६५) . वआड देखो वायाड = वाचाट (संक्षि २)। २ वि. विदर्भ देश में उत्पन्न (षड् )।वइम [वै] इन प्रथों का सूचक अव्यय- वइअर [व्यतिकर] प्रसङ्ग, प्रस्ताव (सर वइजवण वि [वैजवन] गोत्र- 'शेष में उत्पन्न
(हे १, १५१) । १ अवधारण, निश्चय (विसे १८००)।२ ४, १३६; महा)।
वइणो देखो वइ = वतिन् । अनुनय । ३ संबोधन । ४ पादपूति (चंड)।- वइअव्य देखो वय = व्रज् ।
वइतुलिय वि [वैतुलिक] तुल्यता-रहित वह प [दे] बदि, कृष्ण पक्ष; 'फग्गुणवइ- वइआ स्त्री [ब्रजिका] छोटा गोकुल (पिंड
(निचू ११) छट्ठीए' (सुपा ८६)।
३०६; सुख २, ५: मोघ ८४)। वइ वि वितिन् व्रतवाला, संयमी (उवः | वइआलिअ वि [वैतालिक] मंगल-स्तुति बत्तादेखो वय = वद् ।"
सुपा ४३६)बी.णी (उप ५७१)। प्रादि से राजा को जगानेवाला मागध प्रादि | वइत्ता देखो वय = बच । - वइ श्री [वाच ] वाणी, वचन (सम २५; (हे १, १५२)।
वइत्तु वि [वदित] बोलनेवाला, 'मुसं वइत्ता कप्पः उप ६०४ श्रा ३१; सुपा १८४; कम्म वइआलीअ पुंन [वैतालीय] छन्द-विशेष (हे भवति' (ठा ७–पत्र ३८६)। ४, २४, २७, २८), 'गुत्त वि [गुप्त] (हे १, १५१) ।
वइदम्भ देखो वइअब्भ (हे १, १५१)।वाणी का संयमवाला (आचाः उप ६०४), वइएस वि [वैदेश] विदेश-संबन्धी, परदेशी वइदिस पुं वैदिश] १ अवन्ती देश, मालव
गुत्ति ली [गुप्ति] वाणी का संयम (पउम ३३, २४ हे १, १५१, प्राकृह)। देश; 'वइदिस उजेणीए जियपडिमा एलगच्छं (प्राचा) - जोअ, जोग पु [योग] वइएह पुं [वैदेह] १ वणिक् , वैश्य । २ च' (उप २०२)। २ वि. विदिशा-संबन्धी वचन-व्यापार (भगः परह १२)। जोगि शूद्र पुरुष और वैश्य स्त्री से उत्पन्न जाति- (बृह ६) । वि [ योगिन्] वचन-व्यापारवाला (भग)। विशेष । ३ राजा जनक । ४ वि. देह-रहित | वइदेस देखो वइएस (प्राप्र)। मंत वि [°मत् ] वचनवाला (माचा २, से संबन्ध रखनेवाला। ५ मिथिला देश का वइदेसिअ वि [वैदेशिक] विदेशीय, परदेशी १, ९, १), मेत्त न [°मात्र] निरर्थक (हे १,१५१, प्राकृ९)।
(संक्षि ५; कुप्र ३८० सिरि ३६३; पि वचन (धर्मसं २८४, २८५, ८४४)। देखो वइंगण न [दे] बैगन, बुन्ताक, भंटा (दे ६, वई।
| वइदेह देखो वइएह (प्राप्र)।
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