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लया-लह
पाइअसहमहण्णवो
७२३
लया स्त्री [लता] १ वल्ली, वल्लरी (पएण १; ललिआ स्त्री [ललिता] एक पुरोहित-स्त्री (उप विशेष का फूल, लौंग (णाया १, १-पत्र गा २८, काप्र ७२३; कुमाः कप्प)। २ ७२८ टी)
१२; पण्ह २, ५) प्रकार, भेद; 'संघाडो ति वा लय त्ति वा लल्ल वि [दे] १ सस्पृह, स्पृहावाला। २ लवण न [लबन] छेदन, काटना (विसे पगारो ति वा एगट्ठा (बृह १)। ३ तप- न्यून, अधूरा (दे ७, २६)
३२०९) विशेष (पव २७१)। ४ संख्या-विशेष, लल्ल वि [लल्ल] अव्यक्त प्रावाजवाला (पएह लवण न [लवण] १ लोन, नून, नोन, नमक चौरासी लाख लतांग-परिमित संख्या (जो १, २)
(कुमा) । २ पुं. रस-विशेष, क्षार रस (अणु)। २)। ५ कम्बा, छड़ी, यष्टिः 'कसप्पहारे य लल्लक्क [ललक] छठवीं नरक-पृथिवी का | ३ समुद्र-विशेष (सम ६७ पाया १,६ पउम लयप्पहारे य छिवापहारे य' (णाया १,२- एक नरक-स्थान (देवेन्द्र १२)
१६, १८)। ४ सीता का एक पुत्र, लव पत्र ८६; विपा १, ६–पत्र ६६), "जुद्ध लल्लक्क वि [दे] १ भीम, भयंकर (दे ७, १८ (पउम १७, १९)। ५ मधुराज का एक पुत्र न["युद्ध लड़ने को एक कला, एक तरह पाय; सुर १६,१४८); 'लल्लकनरयविप्रणामों (पउम ८६,४७) जल पुं["जल लवण का युद्ध (प्रौप)। (भत्त ११०)। २ पु. ललकार, लड़ाई आदि
समुद्र (पउम ५७, २७) य पु[ोद] लयापुरिस पुं[दे] वह स्थान, जहाँ पद्म-हस्त के लिए आह्वान (उप ७६८ टी)
लवण समुद्र (पउम ६४,१३) । देखो लोग। स्त्री का चित्रण किया जायः 'पउमकरा जत्थ लल्लि स्त्री [दे] खुशामद (धर्मवि ३८; जय
लवणिम पुंस्त्री [लवणिमन् लावण्य (कुमा)। वहू लिहिजए सो लयापुरिसो' (दे ७, २०) १९)।
लवल न [लवल] पुष्प-विशेष (कुमा)लल प्रक [ल्ल, लड्] १ विलास करना, लल्लिरी स्त्री [दे] मछली पकड़ने का जाल
लवली स्त्री [लबली] लता-विशेष (सुपा मौज करना। २ भूलना। ललइ, ललेइ विशेष (विपा १, ५-पत्र ८५)।
३८% कुप्र २४६)
लवव वि [दे] सुप्त, सोया हुआ ( षड् ) (प्राकृ ७३, सण; महाः सुपा ४०३)। वकृ. लव सक [लू ] काटना । संकृ. लविऊण।
हेकृ. लविरं । कृ. लविअब्ब (प्राकृ ६६) Mi ललंत, ललमाग (गा ४४६; सुर २, २३७;
लविअ वि [लपित] उक्त, कथित (सूत्र १,
१५९) , ३५, कुमाः सुपा २६७)। भवि; औपः सुपा १८११८७)। लव सक [लप्] बोलना, कहना। लवइ लवित्त न [लवित्र]दात्र,दाँती,हँसुप्रा या हँसिया, ललणा स्त्री [ललना] स्त्री, महिला, नारी (तंदु (कुमाः संबोध १८ सण), लवे (भास ६६)। घास काटने का एक औजार (दे १,८२) ५०; सुपा ४६७).
वकृ. लवंत, लवमाण (सुपा २६७ सुर ३, लविर वि [लपिन] बोलनेवाला (सण)। ललाड देखो णडाल (ौपः पि २६०)।
स्त्री. रा (कुमा)। ललाम न ललामन्] प्रधान, नायक (अभि
लव सक [प्र+वतेय] प्रवृत्ति करानाः लस प्रक [लसा१ श्लेष करना । २ _ 'यो विज्जू लवंति' (सुज्ज २०)।
चमकना। ३ क्रीडा करना । लसइ (प्राकृ ललिअ न [ललित] १ विलास, मौज, लीला लव वि [लप] वाचाट, बकवादी (सून २, ७२) । यकृ. लसंत (सण)(पानः पव १६६; प्रौप)। २ अंग-विन्यास
| लसइ [दे] काम, कन्दर्प (दे ७, १८)विशेष (पएह १, ४)। ३ प्रसन्नता, प्रसाद लव पुं[लव] १ समय का एक सूक्ष्म परि. लसक न [दे] तरु-क्षीर, पेड़ का दूध (दे ७, (विपा १, २ टी-पत्र २२)। ४ वि. क्रीडा- माण, सात स्तोक, मुहूर्त का सतरहवाँ अंश प्रधान, मौजी (णाया १,१६-पत्र २०५)।
(ठा २, ४–पत्र ८६; सम ८५)। २ लेश, लसण देखो लसुण (सूत्र १, ७, १३)।५ शोभा-युक्त, सुन्दर, मनोहर (णाया १,
अल्ल, थोड़ा (पामा प्रासू ६६ ११८; सण)। लसिर वि [लसित] १ श्लिष्ट होनेवाला । २ १; प्रौप; राय)। ६ मंजु, मधुर (पान)।
३ न. कर्म (सूप १,२, २, २०, २, ६, चमकनेवाला, दीप्र (से ८,४४) ७ ईप्सित, अभिलषित (णाया १, ६) ६) सत्तम पुं[सप्तम] अनुत्तरविमान
लसुअ न [दे] तैल, तेल (दे ७, १८)। 'मित्त "मित्रा सातवें वासदेव का निवासी देव, सर्वोत्तम देव-जाति (पएह २.
लसुण न [लशुन] लहसुन, कन्द-विशेष (श्रा पूर्वजन्मीय नाम (सम १५३; पउम २०, ४; उब; सूत्र १, ६, २४)।
२०)। १७१) - वित्थरा स्त्री ["विस्तरा] प्राचार्य लवअ [दे. लवक] गोंद, लासा, चेप,
लह देखो लभ । लहइ, लहेइ, लहए (महाः श्रीहरिभद्रसूरि का बनाया हुआ एक जैन निर्यास; 'लवो गुंदो' (पान)
पि ४५७) । भवि. लहिस्सामो (महा)। ग्रन्थ (चेइय २५६) लवइअ वि [दे. लवकित] नूतन दल से युक,
कर्म. लहिज्जइ (हे ४, २४६)। वकृ लहंत ललिअंग पुं [ललिताङ्ग] एक राज-कुमार अंकुरित, पल्लवित (ौपः भग; णाया १, १
(प्रारू)। संकृ लहिलं, लहिऊण (कुप्र १; (उप ६८६ टी)। टी-पत्र ५)।
महा) लहेप्पि, लहेप्पिणु, लहेवि (अपः ललिअय न [ललितक] छन्द-विशेष (पजि लवंग पुंन [लवङ्ग] १ वृक्ष-विशेष, लौंग का पेड़ | पि ५८८) । कृ. लहणिज्ज, लहिअव्व १८)
(पएण १-पत्र ३४; कुप्र २४९) । २ वृक्ष- (श्रा १४; सुर ६, ५३; सुपा ४२७)।
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