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रयय-रसि
पाइअसहमण्णवो
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चाँदी का बरतन (गउड) "मय वि ['मय] रवि न [रवि] १ सूर्य, सूरज (से २, २६; विशेष (पिंग)। १३ माधुयं प्रादि रसवाला चाँदी का बना हुआ (गाया १, १-पत्र गउडः सण)। २ राक्षस-वंश का एक राजा पदार्थ (सम ११; नव २८)। नाम न ५४. पि ७०)।
(पउम ५, २६२)। ३ अर्क वृक्ष, पाक का [नामन् कर्म-विशेष (सम ६७)4 न रयय पूरजक] धोबी (स २८६ पाप)। पेड़ (हे १, १७२)। "तेअ [तेजस्] वि [ज्ञ] रस का जानकार (सुपा २६१)।. रयवली स्त्री [दे] शिशत्व, बाल्य (दे ७, ३)।
१ इक्ष्वाकु वंश का एक राजा (पउम ५, भेइ वि [भेदिन] रसवाली चीजों का
४)। २ राक्षस वंश का एक राजा, एक भेल-सेल करनेवाला (पउम ७५, ५२) ।। रयवाडी देखो राय-वाडिआ (सिरि ७५८)।
लंकेश (पउम ५, २६५)। "तेया स्त्री | मंत वि [वत् ] रस-युक्त (भग, ठा ५, रयाव सक [रचय ] बनवाना, निर्माण |
[तेजा] एक विद्या (पउम ७, १४१)। ३-पत्र ३३३) + वई स्त्री [°वती] रसोई कराना । रयावेइ, रयाविति, रयावेह (कप्प)। 'नंदण पु[ नन्दन] शनि-ग्रह (श्रा १२)।
(सुपा ११)। लि, लु वि [वत् ] संकृ. रयावेत्ता (कप्प)। प्पभ पु[प्रभ] वानरद्वीप का एक राजा
रसवाला (हे २, १५६; सुख ३, १) रयाविय वि [रचित] बनवाया हुमा (स (पउम ६, ६८)। भत्ता स्त्री [भक्ता] एक
"विण पुं [पण] मद्य की दूकान (पव ४३५)
महौषधि (ती ५)। भास पुं [भास] रल्ला स्त्री [दे] प्रियंगु, मालकांगनी (दे ७,
खड्ग-विशेष, सूर्यहास खड्ग (पउम ५५,
रस पुन [रस] निष्यन्द, निचोड़, सार (दसनि
२६) J वार [वार दिन-विशेष, रविवार ३, १६)।रल्लि पुंस्त्री [दे] लम्बा मधुर शब्द (माल
(कुप्र ४११)। 'सुअ [सुत] १ शनिश्चर रसण न [रसन] जिह्वा, जीभ (पएह १, ग्रह (से ८, २८; सुपा ३६)। २ रामचन्द्र
| १-पत्र २३, आचा)। रव सक [२] १ कहना, बोलना। २ वध
का एक सेनापति, सुग्रीव (से १५, ५६)। रसणा स्त्री [रसना] १ मेखला, कांची (पानः करना। ३ गति करना। ४ प्रक. रोना।
हास पुं[हास] सूर्यहास खड्ग (पउम गउड से १, १८)। २ जिह्वा, जीभ (पान)। ५ शब्द करना; 'सुद्धं रवति परिसाए' (सूम ५३, २७)।
"ल वि['वत् ] रसनावाला (सुपा ५५६)। १, ४, १, १८), रवइ (हे ४, २३३; संक्षि
रविगय न [रविगत] जिसपर सूर्य हो वह रसद्द न [दे] चुल्ली-मूल, चूल्हे का मूल भाग ३३)। वकृ. रवंत, रवंत (णाया १,१नक्षत्र (वव १)।
(द ७, २)।पत्र ६५; पिंग; औप)।
रविय विदे] आद्र' किया हुआ, भिजाया रसा स्त्री [रसा] पृथिवी, धरती (हे १, १७७; रव सक [रावय् ] बुलवाना, आह्वान करना। वकृ. रवंत (प्रौप)। हुआ (विसे १४५६) ।
१८०; कुमा)।रव्वारिअ पुंदे] दूत, संदेश-हारक, 'जेरण रख सक [दे] भाद्र करना। भवि-रवेहिइ
रसाउ पु[दे. रसायुष्] भ्रमर, भौंरा (दे प्रवज्झो रव्वारिनो त्ति' (सुपा ४२८)।
७, २; पाम)। (मंदि)।
रसाय पुं[दे] ऊपर देखो (द ७, २)। रख पुरव] १ शब्द, आवाज (कप्प; महा: रस सक [रस् ] चिल्लाना, पावाज करना।
रसइ (गा ४३६)। वकृ. रसंत (सुर २, सण; भवि)। २ वि. मधुर शब्दवाला; 'रवं
रसायण न [रसायन] वैद्यक-प्रसिद्ध प्रौषध
विशेष (विपा १, ७ प्रातू १६२, भवि)। ७४, सुपा २७३)। अलसं कलमंजुलं' (पान)। रव (अप) देखो रय = रजस् (भवि)। रस पुन [रस] १ जिह्वा का विषय-मधुर, रसाल पुं[रसाल] पाम्र-वृक्ष, आम का गाछ
तिक्त प्रादिः 'एगे रसे', 'एवं गंधाई रसाई (सम्मत्त १७३)।। खण (अप) देखो रमण (भवि)।
फासाई (ठा १०-पत्र ४७१; प्रासू १७४)। रसाला स्त्री [दे. रसाला] मार्जिता, पेयरवण न [रवण] आवाज करना, 'पच्चासन्ने य २ स्वभाव, प्रकृति (से ४,३२)। ३ साहित्य- विशेष (दे ७,२ पाप्र)।
करेण्या सया रवणसीला पासी' (महा)। शास्त्र-प्रसिद्ध श्रृंगार मादि नव रस (उत्त रसालु पुंदे. रसालु] मजिका, राजरवण्ण(अप) देखो रम्म = रम्य (हे ४, १४, ३२, धर्मवि १३; सिरि ३६)। ४ योग्य पाक-विशेष--दो पल घी, एक पल रवन्न ४२२, भवि)।
जल, पानी (से २, २७ धर्मवि १३) मधु, प्राधा पाढक दही, बीस मिरचा तथा रवय ([दे] मन्थान-दण्ड, विलोने की लकड़ी.
५ सुख (उत्त १४, ३१)। ६ पासक्ति, दस पल चीनी या गुड़ से बनता पाक (ठा गुजराती में 'रवैयो (दे ७, ३)। दिलचस्पी (सत्त ५३; गउड)। ७ अनुराग,
३, १-पत्र ११८, सुज २० टीः पव रवरव अक [रोरूय.] १ खूब आवाज प्रेम (पान)। ८ मद्य आदि द्रव पदार्थ (पण्ह २५६)। करना। २ बारंबार आवाज करना। वकृ. १,१कुमा)। ६ पारद, पारा (निचू १३)। रसि देखो रस्सि (प्राफ २६) । रवरवंत (प्रौप)
१० भुक्त अन्न का प्रथम परिणाम, शरीरस्थ | रसिअ वि [रसिक] १ रसज्ञ, रसिया, रवि वि रविनआवाज करनेवाला (से २, धातु-विशेष (गउड)। ११ कर्म-विशेष (कम्म शौकीन (से १, ६)। २ रस-युक्त, रसवाला २६)।
२, ३१)। १२ छन्दःशास्त्र-प्रसिद्ध प्रस्तार- (सुपा २६, २१७ पउम ३१, ४६)10
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