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रीड-रंजग पाइअसहमहण्णवो
७१३ रीड सक [मण्डय ] अलंकुत करना । रीडइ (ठा २, ३)+ °वर पुं. [°वर] १ द्वीप- रुइअ वि [रुचित] १ अभीष्ठ, पसंद (सुर ७, (हे ४, ११५)।
विशेष (सुज १९)। २ पर्वत-विशेष (पएह २४३; महा)। २ ऍन. विमानावास-विशेष, रीडण न [मण्डन] अलंकरण (कुमा) ।
२, ४-पत्र १३०)। ३ समुद्र-विशेष । ४ एक देव-विमान (देवेन्द्र १३२)। रीढ स्त्रीन [दे] अवगणन, अनादर (दे ७,
रुचकवर समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव रुइअ देखो रुण्ण = रुदित (स १२०)। ८)। स्त्री. °ढा (पात्र; धम्म ११ टी; पंचा ३-पत्र ३६७) । वरभद्द पुं[वरभद्र]
रुइर वि [रुचिर] १ सुन्दर, मनोरम (पान)। २,८; बृह १) उचकवर द्वीप का अधिष्ठायक एक देव (जीव
२ दीप्र, कान्ति-युक्त (तंदु २०)। ३ पुंन. रीण वि [रीण] १ क्षरित, स्नुत । २ पीडित ३–पत्र ३६६), 'वरमहाभद्द पुंगवर
एक विमानेन्द्रक, देवविमान-विशेष (देवेन्द्र (भत्त २)। महाभद्र] वही अर्थ (जीव ३) वरमहावर
१३१)। रीर अक [ राज ] शोभना, चमकना, दीपना।
[वरमहावर] रुचकवर समुद्र का एक
रुइर वि [रोदित रानेवाला। स्त्री. री (पि रीरइ (हे ४,१००) अधिष्ठाता देव (जीव ३) वरावभास पुं
५६६, गा २१६ अ)। रीरिअ दि [राजित] शोभित (कुमा)।
[°वरावभास] १ द्वीप-विशेष । २ समुद्र
विशेष (जीव ३)। वरावभासभ६ पुं रीरी स्त्री [रीरी] धातु-विशेष, पीतल (कुप्र
रुइल वि [°रुचिर, ल] १ शोभन, सुन्दर
(ोप; रणाया १, १ टी तंदु २०)। २ दीप्त, ११, सुपा १४२) ।
[°वरावभासभद्र] रुचकवरावभास द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३) । वरावभास
चमकता हुआ (पएह १, ४–पत्र ७८० सूम रु स्त्री [रुज् ] रोग, बीमारी; 'अरु (? रू)
२, १, ३)। ३ पुंन. एक देव-विमान (सम उवसरगो' (तंदु ४६)।
महाभद्द पुं [वरारभासमहाभद्र] वही रुअ अक [रुद्] रोना। रुपइ (षड् ; संक्षि
अर्थ (जीव ३) + वरावभासमहावर पुं
रुइल्ल न [रुचिर, रुचिमत् ] एक देव[वरावभासमहावर] रुचकवरावभास ३६; प्राकृ ६८; महा)। भवि. रोच्छ (हे ३,
विमान (सम १५)। कंत न [कान्त] नामक समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव १७१)। वकृ. रुआं, रुअंत, रुयमाण (गा
एक देव-विमान (सम १५), कूड न [कूट] ३), वरावभासवर पुं[वरावभासवर] २१६, ३७६; ४००; सुर २, ६६; ११२;
एक देव-विमान (सम १५) उभय न वही अर्थ (जीव ३–पत्र ३६७) । वरोद ४, १२६)। संकृ. रोत्तूण (कुमाः प्राकृ
[ध्वज देवविमान-विशेष (सम १५)। पुं [वरोद] समुद्र-विशेष (सुज १६) ३४)। हेकृ. रोत्तुं (प्राकृ ३४)। कृ. रोत्तव्य
प्पभ न [प्रभ] एक देवविमान (सम 'वरोभास देखो वरावभास (सुज १९)। (हे ४, २१२ से ११, १२)। प्रयो. रुयावेइ
१५)। लेस न [लेश्य एक देवविमान विई स्त्री [विती] एक इन्द्राणी (णाया (महा), रुझावंति (पुष्फ ४४७) ।
(सम १५) वण्ण न [वणे] देवविमान२–पत्र २५२) । द पु[ोद] समुद्ररुअन [रुत] शब्द, पावाज (से १, २८
विशेष (सम १५), सिंग न [शृङ्ग] विशेष (जीव ३–पत्र ३६६)।णाया १, १३; पव ७३ टो)।
एक देवविमान (सम १५) सिट न रुअगिंद पु[रुचकेन्द्र] पर्वत-विशेष (सम रुअ देखो रूअ = रूप (इक) ।
[सृष्ट] एक देवविमान (सम १५) वित्त ३३)।
न [वत्त] एक देवविमान (सम १५):रुअ देखो रूअ% (दे) (प्रौप)।
रुअगुत्तम न [रुचकोत्तम] कूट-विशेष रुइल्लुत्तस्वडिसग न [रुचिरोत्तरावतंक) रुअंती स्त्री [रुदती] वल्ली-विशेष (संबोध
एक देव विमान (सम १५)। ४७)।
रुअण न [रोदन] रुदन, रोना (संबोध ४)। संच सक रुञ्च 1 रुई से उसके बीज को रुअंस देखो रूअंस (इक)। रुअय देखो रुअग (सम ६२)।
अलग करने की क्रिया करना। वकृ. रुंचत रुअग पुं [रुचक] १ कान्ति, प्रभा (पएह
| रुअरुइआ स्त्री [दे] उत्कण्ठा (दे ७, ८) (पिंड ५७४)। . १, ४-पत्र ७८ प्रौप)। २ पर्वत-विशेष 'नगुत्तमो होइ पव्वरो रुयगो' (दीव)। ३
रुआ स्त्री [रुज् ] रोग, बीमारी (उव, धर्मसं रुचण न [रुश्चन] रुई से कपास को अलग द्वीप-विशेष (दीव)। ४ एक समुद्र (सुज ५६८)।
करने की क्रिया (पिंड ५८८) । १९)। ५ एक विमानावास-देव-विमान
रुआविअ वि [रोदित] रुलाया हुआ (गा रंचणी स्त्री [दे] घरट्टी, दलने का पत्थर-यन्त्र (देवेन्द्र १३२)। ६ न. इन्द्रों का एक । ३८६)।
(दे ७,८)।आभाव्य विमान (देवेन्द्र २६३)। ७ रत्न- । रुइ स्त्री रुचि]१ कान्ति, प्रभा, तेज (सुर रंज प्रक [रु] आवाज करना। रंजइ (हे ४, विशेष (उत्त ३६, ७६, सुख ३६, ७६)।। ७,४; कुमा)।२ अनुराग, प्रेम (जो ५१)। ५७ षड्) ८ रुचक पर्वत का पाँचवाँ कूट (दीव)। ६ ३ आसक्ति (प्रासू १६६)। ४ स्पृहा, अभि- रंजग ' [दे. रुञ्चक] वृक्ष, पेड़, गाछः 'कुहा निषध पर्वत का पाठवाँ कूट (इक), 'प्पभ लाष । ५ शोभा। ६ बुभुक्षा, खाने की महीरुहा वच्छा रोवगा रुंजगाई प्र' (दसनि न [प्रभ] महाहिमवंत पर्वत का एक कूट। इच्छा । ७ गोरोचना (षड्)।
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