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कुमारी-म
विशिपम
रुप्प-रूढ
पाइअसहमहण्णवो रुप्प न [रूप्य] चाँदी, रजत (प्रौपः सुर ३, | (पएण १-पत्र ३५)। ३ एक अनार्य कंत पुं[कान्त] १-२ पूर्णभद्र और ६; कप्पू)। कूड पुं [कूट] रुक्मि पर्वत | देश । ४ एक अनायं मनुष्य-जाति (पएह १, विशिष्ट नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा का एक कूट (राज)। कूलप्पवाय पुं १-पत्र १४)।
४, १)। कंता स्त्री [कान्ता] १ भूतानन्द [ कूलप्रपात] द्रह-विशेष (ठा २, ३- | रुरुव प्रक[रोरूय ] १ खूब आवाज करना। नामक इन्द्र को एक अग्र-महिषी (णाया २पत्र ७३) कला स्त्री कला] १ एक । २ बारंबार चिल्लाना। वकृ. रुरुवेत (स पत्र २५२)। २ एक दिक्कुमारी-महत्तरिका महानदी (ठा २, ३–पत्र ७२; ८० सम | २१३) ।
(राज) पभ पु[प्रभा पूर्णभद्र और २७; इक)। २ एक देवी। ३ रुक्मि पर्वत रुल अक [लुठ] लेटना। वकृ. स्लंत, विशिष्ट नामक एक लोकपाल (ठा ४,१.-..-पत्र का एक कूट (जं ४)। "मय वि [मय] रुलिंत (पण्ह १, ३–पत्र ४५, 'पडियगय- १९७ १९८), पमा स्त्री [ प्रभा] १ चाँदी का बना हुआ (णाया १, १-पत्र घडतुरयं रुलंतवरसुहडधडसयाइन्नं' (धर्मवि भूतानन्द इन्द्र की एक अग्र-महिषी [णाया ५२; कुमा)। भास [भास एक | ८०)।
२–पत्र २५२)। २ एक दिक्कुमारी देवी ज्योतिष्क महा-ग्रह (ठा २, ३-पत्र ७८)- रुलुघुल प्रक[६] नीचे साँस लेना, निःश्वास (ठा ६-पत्र ३६१)। देखो रूव = रूप रुप्प वि [शैप्य] रूपा का, चाँदी का (णाया डालना । वक. रुलुघुलंत (भवि)
(गउड)।१,१-पत्र २४ उर ८, ४)।
रुव देखो रुअ% रुद् । रुवइ (हे ४, २२६; रूअंस पु [रूपांश] १-२ पूर्णभद्र और रुप्पय देखो रुप्प = रूप्य; 'रुप्पयं रययं'
प्राकृ६८ संक्षि ३६; भवि; महा), रुवामि विशिष्ट इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४,१(पाम महा)।
(कुप्र ६९)। कर्म. रुव्वइ, रुविज्जइ (हे ४, पत्र १६७; १९८)। २४६)।
रूअंसा स्त्री [रूपांशा] १ भूतानन्द्र इन्द्र की सप्पि पुं[रुक्मिन] १ कौण्डिन्य नगर का
स्वण न [रोदन] रोना (उप ३३५)। एक राजा, रुक्मिणी का भाई (णाया १,
एक अग्र-महिषी (पाया २-पत्र २५२) । रुवणा स्त्री, ऊपर देखो (मोघमा ३०)। १६-पत्र २०६; कुमा; रुक्मि ४२)। २
२ एक दिक्कुमारी देवी (ठा६-पत्र ३६१)।
रूअग) पून [रूपक] १ रुपया (हे ४, कणाल देश का एक राजा (णाया १,८-- | रुवणा स्त्री [रोवणा प्रारोपणा, प्रायश्चित्त | रूअय४२२१। २. एक गहस्थ (गाया पत्र १४०)। ३ एक वर्षधर-पवंत (ठा २, का एक भेद (वव १)।
२-पत्र २५२) । ३ रूपा देवी का सिंहासन ३–पत्र ६६; सम १२; ७२)। ४ एक रुविल देखो रुइल (प्रौप)।
(णाया २--पत्र २५२)। वडिसय न ज्योतिष्क महा-ग्रह (ठा २, ३–पत्र ७८)। रुव्व देखो मअ = रुद् । रुव्वइ (संक्षि ३६ ।
[वतंसक] रूपा देवी का भवन (णाय। ५ देव-विशेष (जं ४)। ६ रुक्मि पर्वत का
२) । "सिरी स्त्री [ श्री] एक गृहस्थ स्त्री एक कूट (जं ४)। ७ वि. सुवर्णवाला। ८ रुसा स्त्री [रोष रोष, गुस्सा (कुमा)।
(गाया २)। गवई स्त्री [पती] भूतानन्द चाँदी वाला (हे २, ५२ ८६)। कूड पुन रुसिय देखो रूसिअ (पउम ५५, १५)। नामक इन्द्र को एक अग्र-महिषी (णाया २)। [कूट] रुक्मि पर्वत का एक कूट (ठा २, रुह मक [रुह ] १ उत्पन्न होना । २ सक. . देखो रूवय = रूपक । सम६३)
घाव को सुखाना। रुहइ (नाट)। कर्म. रूअरूइआ [दे] देखो रुअरुइआ (षड् )।रुप्पिणी स्त्री [रुक्मिणी] १ द्वितीय वासुदेव 'जेरण विदारियट्ठीवि खग्गाइपहारो इमीए
रूआ स्त्री [रूपा] १ भूतानन्द इन्द्र की एक को एक पटरानी (पउम २०, ,१८६१। २ पक्खालणोयएणंपि पणट्टवेयणं तक्खणा चेव
मन-महिषी (गाया २–पत्र २५२)। २ श्रीकृष्ण वासुदेव की एक अग्र-महिषी (पउम रुज्झइ त्ति' (स ४१३)।
एक दिक्कुमारी देवी (ठा ४, १-पत्र २०, १७ पडि)। ३ एक श्रेष्ठि-पत्नी रुह वि [रुह] उत्पन्न होनेवाला (माचा)। (सुपा ३३४)। रहण न [रोधन] निवारण (वव १) ।
रूआमाला स्त्री [रूपमाला] छन्द-विशेष रुप्पोभास पू[रूप्यावभास] १ एक रुहरुह मक [दे] मन्द मन्द बहना, 'वामगि ।
(पिंग)। महाग्रह (सुज्ज २०)। २ वि. रजत की सुत्ति रुहरुहइ वाउँ (भवि)।
रूआर वि रूपकार] मूत्ति बनानेवाला, तरह चमकता (जं ४)। रुहुरुह्य पुंदे] उत्कण्ठा (भवि)।
मोत्तमजोरगं जोग्गे दलिए रूवं करेइ रूमारो' रूअ न [दे.रूत रुई, तूल (दे ७, ९, (विसे १११०). रुब्भमाण
कप्पः पब ८४: देवेन्द्र ३३२, धर्मसं ९८०रूआवई स्त्रीरूपवती] एक दिक्कुमारी देवी रुम्मिणी देखो रुप्पिणी ( षड्)। भगः संबोध ३१)।
(ठा ४, १-पत्र १९८)। रुम्ह सक [म्लापय् ] म्लान करना, मलिन रूअ पुं[रूप] १-२ पूर्णभद्र और विशिष्ट रूढ वि [रूढ] १ परंपरागत, रूढि-सिद्ध । २ करना । प-रुम्हाइ जस' (से ३, ४)। नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १- प्रसिद्ध; 'रूढक्कमेण समे नराहिवा तत्थ रुरु पुं[रुरु] १ मृग-विशेष (पउम ६, ५६; पत्र १९७)। ३ प्राकृति, माकार (गा उवविट्ठा' (उप ६४८ टी)। ३ प्रगुण, पएह १,१-पत्र ७)। २ वनस्पति-विशेष । १३२)। ४ वि. सदृश, तुल्य (दे ६ ४६) तंदुरुस्त (पान)
रुभंत
देखो रुंध ।
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