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७०८ पाइअसहमहण्णवो
रसिअ-राअला रसिअ वि [रसित] १ रस-युक्त, रसवाला [ नेमि भगवान् नेमिनाथ का भाई (उत्त रहाविअ वि [दे] स्थापित, रखवाया हुआ (पव २)। २ न. शब्द, आवाज (गउडा २२, ३६) । नेमिज न [ नेमीय] उत्तरा- (हम्मीर १३) । पएह १, १)।
ध्ययन सूत्र का बाइसवाँ अध्ययन (उत्त २२)। रहि वि [रथिन] १ रथ से लड़नेवाला योद्धा रसिआ स्त्री [दे. रसि १ पूय, पीव, व्रण "मुसल [मुसल] भारतवर्ष की एक (उप ७२८ टो)। २ रथ को हाँकनेवाला से निकलता गंदा सफेद खून, गुजराती में प्राचीन लड़ाई, राजा कोरिएक और राजा
। (कुप्र २८७ ४६०, धर्मवि १११)। 'रसी' (था १२; विपा १, ७ परह १,१)।
चेटक का संग्राम (भग ७, ६) यार देखो
रहिअ वि [रथिक] उपर देखो, 'रहिएहिं २ छन्द-विशेष (पिंग)। 'कार (पान)। रेणु पु [ रेणु] एक नाप,
महारहिणों (उप ७२८ टी; परह २, ४रसिंद पुं [रसेन्द्र] पारद, पारा (जी ३ श्रु
पाठ त्रसरेणु का एक परिमाण (इक)।
पत्र १३० धर्मवि २०)। १५८)'वीरउर, वीरपुर न [वीरपुर] एक नगर
रहिअ वि [रहित] परित्यक्त, वजित, शून्य रसिंग देखो रसिअ = रसिक (पंचा २,३४० (राजा विसे २५५०)
(उवा, दं ३२)। रसिर वि [रसित] मावाज करनेवाला रहई भरभसा वेग से (स ७६२)
रहिअ वि [रहित] एकाकी, अकेला (वव १)।. (सरण)। रहंग पुंस्त्री [रथाङ्ग] १ चक्रवाक पक्षी, चकवा
रहिअ वि [दे रहा हुआ, स्थित (धर्मवि रसोइ (अप) देखो रस-बई (भवि)।
(पामः सुर ३,२४७, कुमा)। स्त्री. गी (सुपा २२)।
४६८० सुर १०, १८५, कुमा)। २ न. रस्सि पुंस्त्री [रश्मि १ किरण, ‘भरहं समा
रहु पु [रघु] १ सूर्य वंश का एक स्वनाम
चक्र, पहिया (पान)। सियानो पाइचं चेव रस्सीओ' (पउम ८०,
ख्यात राजा (उत्तर ५०)। २ पु. ब. रघु६४; पार; प्राप्र)। २ रस्सी, रज्जु (प्रासू रहट्ट देखो अरहट्ट (गा ४६०; पि १४२)।
वंश में उत्पन्न क्षत्रिय (से ४, १६)। ३ पु. ११७)
रहण न [दे] रहना, स्थिति, निवास (धर्मवि श्रीरामचन्द्र; 'ताहे कयंतसरिसी देइ रहु रह अक [दे] रहना। रहइ, रहए, रहेइ २१ रयण ६)।
रिवुबले दिठ्ठी' (पउम ११२, २१)। ४ (पिंग; महा; सिरि ८६३), रहसु, रहह रहण न [रहन] १ त्याग । २ विरति, विराम: कालिदास-प्रणीत एक संस्कृत काव्य-ग्रन्थ (सिरि ३५५; ३५३)। 'रसरहणं' (पिंग)।
(गउड)। 'आर [ कार] रघुवंश नामक रह सक [रह ] त्यागना, छोड़ना (कप्पू:
रहमाण पु [दे] १ यवन मत का एक | संस्कृत काव्य-ग्रन्थ का कर्ता, कवि कालिदास पिंग)।
तत्त्व-वेत्ता (मोह १००)। २ खुदा, अल्ला, (गउड)। णाह [नाथ] १ श्रीरामचन्द्र रह ' [रभस] उत्साह, 'पुणो पुणो ते स-रहै परमेश्वर (ती १५)।
(से १४, १६, पउम ११३, ५५)। २ दुहेंति' (सूत्र १, ५, १, १८)। देखो
रहस पु [रभस १ औत्सुक्य, उत्कण्ठा लक्ष्मण (से १४,६२) तणय पुं[तनय रहस = रभस ।
(कुमा)। २ वेग। ३ हर्ष। ४ पूर्वापर का वही अर्थ (से २, १; १४, २६)। तिलय रह पुन [रहस्] १ एकान्त, निर्जन; 'तत्य
अविचार (संक्षि ७; गउड)।
पुं ["तिलक] श्रीरामचन्द्र (सुपा २०४)। रहो त्ति आगच्छ' (कुप्र ८२), 'लहु मे रह
रहस देखो रहस्स = रहस्यः 'रहसाभक्खाणे' त्तम पुं[ उत्तम वही अर्थ (पउम १०२, देसु (सुपा १७४ वजा १५२)। २ प्रच्छन्न,
(उवा, संबोध ४२ सुपा ४५४)। १७६), 'पुंगव पुं[पुङ्गव वही (स ३, गोप्य (ठा ३, ४)। रहसा म [रभसा] वेग से (गउड)।
५ हे २, १८८ ३, ७०)। 'सुअ पुं रह पुन [रथ] १ यान-विशेष, स्यन्दनः 'धम्मस्स रहस्स वि [रहस्य] १ गुह्य, गोपनीय (पामः
[सुत] वही (से ५, १६)। निवारणपहे रहाणि' (सत्त १८, पापा कुमा)। सुपा ३१८)। २ एकान्त में उत्पन्न, एकान्त
रहों देखो रह = रहस् (कप्पः औप) कम्म २ पुं.एक जैन महर्षि (कप्प) कार पुं[कार] का (हे २, २०४)। ३ न. तत्व, तात्पर्य,
न [कर्मन] एकान्त-व्यापार (ठा - रथ-निर्माता, वर्धकि, बढ़ई (सुपा ४४४; भावार्थ (प्रोष ७६०, रंभा १९)। ४ अपवाद
पत्र ४६०)। कुप्र १०४ उव), चरिया स्त्री [चर्या] स्थान (बृह ६)।
रा सक [रा देना, दान करना। राइ (धात्वा रथ को हाँकना; 'ईसत्थसत्थरहचरियाकुसलो रहस्स वि [ह्रस्व] १ लघु, छोटा (विपा १, (१४६) । (महा)। जत्ता स्त्री [ यात्रा] उत्सव-विशेष | -पत्र ८३)। २ एक मात्रावाला स्वर रामक [1] शब्द करना, आवाज करना । (सुपा ५४१, सुर १६, १६, सिरि ११७५)। (उत्त २६, ७२)।
राइ (प्राकृ ६६)। 'णेउर न [ नूपुर नगर-विशेष (परम २८, रहस्स न [हास्व] १ लाघव, छोटाई । मंत राप्रकाली] श्लेष करना. चिपकना ७. इक)। णेउरचक्कवाल न ['नूपुर
वि [वत् ] लघु, छोटा (सूम २,१,१३) (षड्)। चक्रवाल] वैताच्य पर्वत पर स्थित एक रहस्सिय वि [राहसिक] प्रच्छन्न, गुप्त राअला स्त्री [दे] प्रियंगु, मालकाँगनी (दे नगर (पउम ५, ६४, इक), 'नेमि पु (विपा १, १-पत्र ५)।
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