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पाइअसद्दमद्दण्णवो
पणिहाय-पण्णा
एक भद
'संकाथाणाणि सव्वाणि वज्जेज्जा पणिहाणवं' पणोल्लि वि [प्रणोदिन] १ प्रेरणा करनेवाला। ३ विद्या-विशेष (प्राचू १)। ४ प्ररूपण, (उत्त १६, १५)।
२ पृ. प्राजन दण्ड, बैल इत्यादि हाँकने की प्रतिपादन (उवाः वव ३)। खेवणी स्त्री पणिहाय देखो पणिहा।
लड़की (पएह १, ३-पत्र ५४)। [°क्षेपणी] कथा का एक भेद (ठा ४, २)। पणिहि पुंस्त्री [प्रणिधि] १ एकाग्रता, प्रवधान | पणोल्लिअ वि [प्रणोदित] प्रेरित (ौपः पि पक्खेवणी स्त्री [प्रक्षेपणी] कथा का एक (पएह २, ५)। २ कामना, अभिलाष (स २४४)।
भेद (राज)। ८७)। ३ पुं. चरपुरुष, दूत (पएह १,३; पण्ण वि [प्रज्ञ] जानकार, दक्ष, निपुण (उत्त | पण्णपणिय पुं [पण्णपणि] व्यन्तर देवों पान; सुर ३, ४, सुपा ४६२)। ४ चेष्टा, - १,८; सूत्र १, ६)।
को एक जाति (इक)। व्यापार (दसनि १)। ५ माया, कपट (प्राव | पण्ण वि [प्राज्ञ] १ प्रज्ञावाला, बुद्धिमान्, दक्ष | पग्णय देखो पण्णग (से ४, ४)। ४) । ६ व्यवस्थापन (राज)। (हे १, ५६; उप ६२३)। २ वि. प्राज्ञ
पण्णव सक [प्र+ ज्ञापय ] प्ररूपण करना, पणिहि पुंस्त्री प्रणिधिन बड़ा निधि (दस सम्बन्धी (सूअ २, १)।
उपदेश करना, प्रतिपादन करना। पएणवेइ, ८,१)।
पण्ण न [पर्ण] पत्र पत्ता, पत्तो (कुमा)। पएगवेति (उवा; भग)। वकृ. पण्णवयंत पणिहिय वि [प्रणिहित] १ प्रयुक्त, व्यापृत पण्ण देखो पणिअ = पण्य (नाट)। पगवेमाण (भग; पि ५५१) । कृ. पण्ण(दसनि ८)। २ व्यवस्थित (प्राव ४)। पण्ण स्त्रीन [दे] पचास, ५० । स्त्री. ण्णा
वणिज (द्र ७)। पणीय वि [प्रण त] १ निर्मित, कृत, रचित
पण्णवग वि प्रज्ञापक प्ररूपक, प्रतिपादक 'वइसेसियं पणीय' (विसे २५०७ सुर १२, | पण्ण देखो पंच, पण (पि २७३; ४४० (विसे ५४६)।। ६२: सुपा २८; १६७)। २ स्निग्ध, घृत ४४५)। रस त्रि. ब. [दशन्] पनरह, पण्णवण न [प्रज्ञापन] १ प्ररूपण, प्रति
आदि स्नेह की प्रचुरतावाला; 'विभूसा इत्थी- १५ (सम २६ उवा)। रसम वि [ दश] पादन । २ शास्त्र, सिद्धान्त (विसे ८६४)। संसग्गी परणीयरसभोयणं' (दस ८, ५७ उत्त पनरहवा (उवा)। रसी स्त्री ['दशी] १ पण्णवण वि [प्रज्ञापन ज्ञापक, निरूपक १६, ७ अोघ १५० भा; प्रौपः बृह ५)। ३ पनरहवीं । २ तिथि-विशेष (पि २७३; कप्प)। (संबोध ५)। निरूपित, प्ररूपित, प्राख्यात (अणु; प्राव रह देखो रस (प्राप्र)। रह वि[दश] पण्णवणा स्त्री प्रज्ञापना] १ प्ररूपणा, प्रति३) ! ४ मनोज्ञ, सुन्दर (भग ५, ४)। ५ पनरहवाँ, १५ वाँ (प्राप्र)। देखो पन्न%D
पादन (णाया १,६; उवा)! २ एक जैन सम्यग् प्राचरित (सूत्र १,११)। पंच।
पागम ग्रंथ, 'प्रज्ञापना' सूत्र (भग)। पणीहाण देखो पणिहाण (प्रात्मक हित पण्ण वि [पार्ण] पर्ण सम्बन्धी, पत्ते का, पण्णवणिज देखो पण्णव । १५)।
पत्ती से संबन्ध रखनेवाला (राज)। पण्णवणी स्त्री [प्रज्ञापनी] भाषा-विशेष, अर्थपणुल्ल देखो पणोल्ल। वकृ. पणुल्लेमाण (पि पण देखो पण्णा । व वि [व] प्रज्ञा- बोधक भाषा (भग १०, ३)। २२४)।
वाला (उप ६१२ टी)।
| पण्णवण्ण स्त्रीन [दे. पञ्चपञ्चाशत् ] पचपणुल्लिा देखो पगोल्लिअ (पामा सुपा २४; | पण्णई [पन्नगा] भगवान् धर्मनाथ की शासन- पन, पचास और पांच (दे ६, २७ षड्)। प्रासू १६६)।
देवी (पव २७)।
पण्णवय देखो पण्णवग (विसे ५४७)। पणुवीस लोन [पश्चविंशति] संख्या-विशेष, | पण्णग पुं [पन्नग] सर्प, साँप (उप ७२८ | | पण्णवयंत देखो पण्णव । पचीस, बीस और पाँच। २ जिनकी संख्या पचीस हों वे (स १०६; पि १०४, २७३)। देखो पन्नय ।
पित (प्रणः उत्त २६)। पणुवःसइम वि [पञ्चविंशतितम] पचीसवाँ,
विंशतितमा पच्चीसवाँ, | पण्णग विदे. पन्नक दुगन्धी। तिल पुपण्णवेत्त विप्रज्ञापयिता प्रतिपादक, प्ररू. २५ वॉ (विसे ३१२०)। ["तिल] दुर्गन्धी तिल (राज)।
परण करनेवाला (ठा ७)। पणोल्ल सक [प्र + णुद्] १ प्रेरणा करना। पण्णट्ठि स्त्री [पञ्चषष्टि] पैंसठ, साठ और | पण्णवेमाण देखो पण्णव । २ फेंकना। ३ नाश करना । परणोल्लइ | पाँच, ६५ (कप्प)।
पण्णा सक [प्र+ ज्ञा] १ प्रकर्ष से जानना। (प्राप्र); 'पावाई कम्माई पणोल्लयामों (उत्त पण्णत्त वि [प्रज्ञप्त] निरूपित, उपदिष्ट, कथित २ अच्छी तरह जानना। कर्म, पराणायंति १२, ४०) । कवकृ. पणोलिजमाण (णाया (प्रौप; उवाः ठा ३, १४, १, २, विपा (भग)। १, १; पएह १, ३)। संकृ. पणोल्ल (सून | १,१, प्रासू १२१)। २ प्रणीत, रचित | पण्णा देखो पण्ण (दे) । १,८)।
(मावमः चंद २०; भग ११, ११; प्रौप)। पण्णा स्त्री प्रज्ञा] मनुष्य की दस अवस्थाओं पणोल्लण न [प्रणोदन] प्रेरणा (ठा ८ उप पण्णत्ति स्त्री [प्रज्ञप्ति] १ विद्यादेवी-विशेष में पांचवीं अवस्था (तंदु १६)। पृ३४१)।
(जं १)। २ जैन पागम ग्रंथ-विशेष, सूर्य-पण्णा स्त्री [प्रज्ञा] १ बुद्धि, मति (उप १५४; पणोल्लय वि [प्रणोदक] प्रेरक (प्राचा)। । प्रज्ञप्ति आदि उपांग-ग्रंथ (ठा ३, १, ४, १)। ७२८ टी; निचू १)। २ ज्ञान (सूत्र १,
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