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मेअ-मेलाइयव्य पाइअसहमहण्णवो
६६७ मेअ वि [मय १ जानने योग्य, प्रमेय, पदार्थ, | ['विषाणा] वनस्पति-विशेष, मेढाशिगी मेणआ। स्त्री [मेनका] १ हिमालय की पत्नी वस्तु (उत्त १८; २३)। २ नापने योग्य | (ठा ४, १-पत्र १८५) । देखो मिंद ।। मेणका २ स्वर्ग की एक वेश्या (अभि ४२% (षड् ) न्न वि ["ज्ञ] पदार्थ-ज्ञाता (उत्त | मेखला देखो मेहला (राज)।
नाट-विक्र ४७; पिंग) १८, २३, सुख १८, २३)। मेज न [मेय] मान, तौल, बाट, बटखरा, |
मेत्त न [मात्र] १ साकल्यः संपुर्णता। २ मेअ पुन [मेदस ] शरीर-स्थित धातु-विशेष,
अवधारण, 'भोप्रणमत्त' (हे १, ८१)। जिससे मापा जाय वह (अणु १५४)। चर्बी (तंदु ३८ णाया १, १२-पत्र १७३;
मेत्तल [दे] देखो मित्तल (सुर १२, १५२) मेघ देखो मेह (कुमा; सुपा २०१) गउड)1'मालिणी स्त्री [°मालिनी] नन्दन वन के
मेत्ती स्त्री [मैत्री] मित्रता, दोस्ती (से १, मेअज न [दे] धान्य, अन्न (दे ६,.१३८) शिखर पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी
गा २७२, स ७१६; उव)मेअज पुं[मेदार्य] मेदार्य गोत्र में उत्पन्न
(ठा ८-पत्र ४३७), 'बई स्त्री [वती] | मेधुणिया देखो मेहुणिआ (निचू १)। (सूत्र २, ७, ५)।
एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८-पत्र ४३७)। मेर (अप) वि [मदीय मेरा (प्राकृ १२०० मेअज्ज पुं [मेतार्य] १ भगवान् महावीर का | वाहण पुं [वाहन] एक विद्याधर राज- | भवि)। दसवाँ गणधर (सम १९)। २ एक जैन कुमार (पउम ५, ६५)।
मेरग पुं [मेरक, मैरेयक १ तृतीय प्रतिमहर्षि (उवः सुपा ४०६; विवे ४३) मेघंकरा स्त्री [मेघङ्करा] एक दिक्कुमारी देवी वासुदेव राजा (पउम ५, १५६) । २ पुंन. मेअय वि मेचक काला, कृष्ण-वर्ण (गउड (ठा८-पत्र ४३७)।
मद्य-विशेष (उवा; विपा १, २-पत्र २७) । मेच्छ देखो मिच्छ = म्लेच्छ (मोघ २४; | ३ वनस्पति का त्वचा-रहित टुकड़ा; 'उच्छुमेअर वि [दे] असहन, असहिष्णु (दे ६,
प्रौप; उप ७२८ टीः मुद्रा २६७)। मेरंग' (प्राचा २, १, ८, १०) iv १३८) ।
मेज देखो मेअ = मेय (षड् णाय १,८- | मेरा स्त्री [दे. मिरा] मर्यादा (दे६, ११३; मेअल पुं[मेकल] पर्वत-विशेष । कन्ना स्त्री पत्र १३२; श्रा १८)
पामा कुप्र ३३५, अज्झ ६७ सण; हे १, [ कन्या] नर्मदा नदी (पान)।
मेझ देखो मिज्म (महा ४, ११, ४०, ८७ कुमाः प्रौप)। २४)
मेरा स्त्री [मेरा] १ तृण-विशेष, मुज की मेअवाडय पुन [मेदपाटक] एक भारतीय
मेट देखो मिट । प्रयो. मेटाव (पिंग)। सलाई (पएह २, ३--पत्र १२३) । २ दशवें देश, मेवाड़ा ‘णाव दाहविनं सप्रलंपि मेन
चक्रवर्ती की माता (सम १५२)। मेडंभ पुं[दे] मृग-तन्तु (दे ६, १३६)। वाड्यं हम्मीरवीरेहि (हम्मीर २७)। मेइणि स्त्री [मेदिनी] १ पृथिवी, धरती मेडय पुं [दे] मजला, तला, गुजराती में
मेरु पु[मेरु] १ पर्वत-विशेष (उबः प्रासू मेइणी (सुपा ३२, कुमा प्रासू ५२)। २ 'मेडो'; 'तस्स य सयणठाणं संचारिमकट्टमेड
१५४)। २ छन्द-विशेष (पिंग)। चाण्डालिन (सुपा १६ सम्मत्त १७२) नाह यस्सुवरि' (सुपा ३५१) ।
मेरु पुमेरु पर्वत, कोई भी पहाड़ (पाचा पुं [ नाथ] राजा (उप पृ १८६; सुपा मेड्ढ देखो मेंढ (उप पृ २२४) ।
। २,१०, २) १०८) । पइ पु [ पति] १ राजा । २ |
मेल सक [ मेलय् ] १ मिलाना। २ इकट्ठा मेढ पुं[दे] वणिक्-सहाय, वणिक् को मदद | चाण्डाल; 'जो विबुहपणयचरणोवि गोत्तभेई
| करना । मेलइ, मेलंति (भवि पि ४८६)।
करनेवाला (दे ६, १३८) न, मेइणिपईविन हु मायंगो' (सुपा ३२)Mमेढक
संकृ. मेलित्ता, मेलिय (पि ४८६; महा) ।।
दे] काष्ठ-विशेष, काष्ठ का छोटा "सामि पु [स्वामिन् ] राजा (उप
-पत्र
मेल पु[मेल] मेल मिलाप, संगम, संयोग, ७२८ टी) मेढि पु[मेथि] पशुबन्धन-काष्ठ; खले के बीच
मिलन (सूअनि १५; दे ६, ५२, सार्ध १०६), मेइणीसर पु [ मेदनीश्वर ] राजा (उप
का काष्ठ, जहाँ पशु को बाँध कर धान्य-मर्दन
'दिट्ठो पियमेलगो मए सुविणो' (कुप्र २१०)।७२८ टी)
किया जाता है (हे १, २१५; गच्छ १,८० मेलण न [मेलन] ऊपर देखो (प्रासू ३५) । मेंठ पुं [दे] हस्तिपक, महावत (दे ६,
णाया १, १-पत्र ११)। २ प्राधार, | मेलय पु[मेलक] १ संबन्ध, संयोग (कुमा)। १३८) । देखो मिठ।
स्तम्भः ‘सयस्स वि य णं कुडुबस्स मेढी | २ मेला, जन-समूह का एकत्रित होना (दे ७, मेंठी स्त्री [दे] मेंढी, मेषी गड़रिया (दे६,१३८)
पमाणं आहारे पालंबणं चक्खू मेढीभूए' | त्रि८६) . मेंढ पुंस्त्री [मेढ़] मेंढा, मेष, भेड़, गाड़र (ठा (उवा), 'सुत्तत्थविऊ लक्खणजुत्तो गच्छस्स मेलव सक [ मेलय् , मिश्रय ] मिलाना, ४२) स्त्री.'ढी (दे ६, १३८)। "मुह पुं मेढिभूप्रो में (था १; कुप्र २६६; संबोध मिश्रण करना। मेलवइ (हे ४, २८)। भवि. [मुख १ एक अन्तर्वीप। २ अन्तर्वीप- २४), भूअ वि [भूत] १ प्राधार-सदृश, | मेलवेहिसि (पि ५२२) । संकृ. मेलवि (अप) विशेष में रहनेवाली मनुष्य-जाति (ठा ४, प्राधार-भूत (भग)। २ नाभि-भूत, मध्म में | (हे ४, ४२६) २-पत्र २२६; इक)। विसाणा स्त्री । स्थित (कुमा)
मेलाइयव्य नीचे देखो।
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