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पाइअसहमहण्णवो
पम्हस-पयंप
पम्हस सक [वि + स्मृ] विस्मरण करना, | पय पुंन [पयस्] १ क्षोर, दूधः 'पो' पय (अप) देखो पत्त = प्राप्त (पिंग)। भूल जाना । पम्हसइ (षड्); पम्हसिज्जासु (हे १, ३२, प्रोघ १२, पान)। २ पानी, | पय देखो पया = प्रजा। पाल वि [°पाल (गा ३४८)।
जल (सुपा १३६, पान)। हर देखो | १ प्रजा का पालक । २ पुं. नृप-विशेष पम्हसाविय वि [विस्मारित] भूलाया हुआ, | पओहर (पिंग)।
(सिरि ४५)। विस्मृत कराया हुआ (सुख २, ५)। पय पुं[प्रज] प्राणी, जन्तु (माचा)।
पय वि [प्रद] देनेवाला, 'पीइप्पयं' (रंभा)। पम्हा स्त्री [पद्मा] १ लेश्या-विशेष, पद्म- पय पुंन [पद] १ विभक्ति के साथ का शब्द,
पयइ स्त्री [प्रकृति संधि का प्रभाव (अणु लेश्याः प्रात्मा का शुभतर परिणाम-विशेष __ 'पयमत्थवायगं जोयगं च तं नामियाई
११२)। (कम्म ३, २२; था २६)। २ विजय-क्षेत्र पंचविहं (विसे १००३; प्रासू १३८, श्रा विशेष (राज)।
२३)। २ शब्द-समूह, वाक्य, 'उवएसपया
पयइ देखो पगइ (गा ३१७; गउड; महाः पम्हार पु [दे] अपमृत्यु, बेमौत मरण इह समक्खाया' (उप १०३८ श्रा २३)।
| नव ३१, भत्त ११४ कप्पू; कुप्र ३४६) । ३ पैर, पाँव, चरण; 'जाणं च तजणातजणीइ | पयइंद पुं[पतगेन्द्र, पदकेन्द्र] वानव्यन्तर
लग्गो ठवेमि मंदपए, कव्वपहे बालो इव', जातीय देवों का इन्द्र (ठा २, ३)। पम्हावई स्त्री [पक्ष्मावती] १ विजय-विशेष
'जाव न सत्तट्ठ पए पच्चाहुत्तं नियत्तो सि' की एक नगरी (ठा २, ३, इक)। २ पवंत
| पयई देखो पयवी (गउड)।
(सुपा १, धर्मवि ५४; सुर ३, १०७ श्रा विशेष (ठा २, ३–पत्र ८०)।
पयंग पुं [पतङ्ग] १ सूर्य, रवि (पाप); 'तो
२३) । ४ पाद-चिन्ह पदाङ्क (सुर २, २३२, पम्हु वि [दे] १ नष्ट, नाश-प्राप्त (हे ४;
हरिसपुलइयंगो चक्को इव दिटुउग्गयपयंगो सुपा ३५४ श्रा २३; प्रासू ५०)। ५ पद्य २५८)। २ विस्मृत; 'पम्हुट्ठ विम्हरिनं'
(उच ७२८ टी) । २ रंग-विशेष, रज्जनका चौथा हिस्सा (अरण) । ६ निमित्त, (पान), 'किं थ तयं पम्हुठ्ठ" (गाया १,
द्रव्य-विशेष (उर ६, ४, सिरि १०५७) । कारण (प्राचा)। ७ स्थानः 'अवमारणपयं ८-पत्र १४८; विचार २३८)।
३ शलभ, फतिंगा, उड़नेवाला छोटा कीट हि सेव त्ति' (सुर २, १९७; श्रा २३) । ८ पम्हुत्तरवळिसग न [पक्ष्मोत्तरावतंसक]
(णाया १, १७; पान) । ४-५ देखो पदवी, अधिकारः 'जुवरायपए कि नवि
पयय = पतग, पदक, पदग (पएह १, ४ब्रह्मलोक में स्थित एक देव-विमान (सम अहिसिचाइ देव मे पुत्तो?' (सुर २, १७५;
पत्र ६८ राज)। वीहिया स्त्री [वीथिका] महा) । ६ त्राण, शरण । १० प्रदेश । ११ पम्हुस सक [वि + स्मृ] भूलना, विस्मरण
१ शलभ का उड़ना। २ भिक्षा के लिए व्यवसाय (धा २३)। १२ कूट, जाल-विशेष
पतंग की तरह चलना, बीच में दो चार घरों करना। पम्हुसइ (हे ४, ७५) । (सूत्र १, १, २, ८)। खेम न [क्षेम]
को छोड़ते हुए भिक्षा लेना (उत्त ३०, १९)। शिव, कल्याण; 'कुव्वइ अ सो पयखेममप्पणो' पम्हुस सक [प्र+ मृश ] स्पर्श करना ।
वीही स्त्री [°वीथी] वही पूर्वोक्त अर्थ (उत्त पम्हुसइ, पम्हुस (हे ४, १८४; कुमा ७, २६)। | (दस ६, ४, ६)।पुं[स्थ] पदाति,
३०, १६)। पम्हुस सक [प्र+मुष ] चोराना, चोरी पैदल, प्यादा; 'तुरएण सह तुरंगो पाइको सह
पयत्थेरण' (पउम ६, १८२) । पास पुं करना। पम्हुसइ; पम्हुसेइ; पम्हुसंति (हे |
पयंचुल पुन [प्रपञ्चुल] मत्स्यबन्धन-विशेष,
मछली पकड़ने का एक प्रकार का जाल ४, १८४; सुपा १३७; कुमा ७, २६)।
[पाश] वागुरा, जाल आदि बन्धन (सूम १, १, २, ८, ९) । रक्ख पुं[रक्ष]
(विपा १,८-पत्र ८५)। पम्हुसण न [विस्मरण] विस्मृति (पंचा
पदाति, प्यादा (भविः हे ४, ४१८)। पयड वि[प्रचण्ड] १ अत्युग्न, तीव्र प्रखर १५, ११)।
२ भयानक, भयंकर (पएह १, १, ३, ४,
विग्गह पुं [विग्रह] पदविच्छेद (विसे पम्हुसिअ वि [विस्मृत] जिसका विस्मरण हुमा हो वह (कुमाः उप ७६८ टी)।
१००६) । विभाग पुं [विभाग] उत्सर्ग | उव) ।
और अपवाद का यथा-स्थान निवेश, सामा- पर्यड वि[प्रकाण्ड] अत्युग्र, उत्कट (पराह पम्हुह सक [स्मृ] स्मरण करना, याद
चारी-विशेष (माव १)। वीढ देखो पाय- | १, ४)। करना । पम्हुहइ (हे ४, ७४) ।
वीढ (पव ४०; सुपा ६५६) । समास | पयंत देखो पय = पच् । पम्हण वि [स्मर्त ] स्मरण करनेवाला पुं[°समास] पदों का समुदाय (कम्म १,
पयंप अक [प्र + कम्प्] अतिशय काँपना। (कुमा)।
७)। णुसारि वि [°ानुसारिन्] एक पद
___वकृ. पयंपमाण (स ५६६)। पय सक [पच् ] पकाना, पाक करना।
से अनेक अनुक्त पदों का भी अनुसंधान करने
पयंप सक [प्र + जल्प] १ कहना, पयइ (हे ४, ६०)। वकृ. पयंत (कप्प)।
की शक्तिवाला (प्रौप, बृह १)। णुसा- बोलना । २ बकवाद करना । पयंपए (महा)। संकृ. पइउं (कुप्र २६६)।
रिणी स्त्री [/नुसारिणी] बुद्धि-विशेष, एक संकृ. पयंपिऊण, पयंपिऊणं (महाः पि पय सक [पद् ] १ जाना । २ जानना । ३ पद के श्रवण से दूसरे अश्रु त पदों का स्वयं ५८५)। कृ. पयंपिअव्व (गा ४५०; सुपा विचारना । पयइ (विसे ४०८)। | पता लगानेवाली बुद्धि (परण २१)।
५५२)।
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