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विलय देखो बडव ( १३१) बिराड [] १ गित-प्रसिद्ध मध्य लघुक पांच मात्रावाला अक्षर-समूह । २ छंदविशेष (पिंग ) ।
देवासुर १.१८)1 बिल देखी डालि सम्मत्त | ( बिराली पात्र । भुजपरिसर्प· १२३ पाच) २ भुपरि विशेष हाथ से चलनेवाला एक प्रकार का प्राणी (२३, २५) - बिरालिया स्त्री [ बिरालिका ] स्थल-कन्दविशेष (प्राचा २१, ८, ३) बिरुद न [विरुद] इल्काब, पदवी ( सम्मत्त १४१) ।
बिन [बिल] १ रन्ध्र, विवर, साँप आदि जन्तुनों के रहने का स्थान (विपा १, ७, २ कूप कुछ (राम) कोलीकारक वि [दे. कोलीकारक ] दूसरे को व्यामुग्ध करने के लिए विस्वर वचन बोलनेवाला ( परह १ ३ – पत्र ४४ ) ५ पंतिया स्त्री [° पङ्क्तिका] खान की पद्धति ( परह २, ५-पत्र १५० ) 1 बिलाल } देखो बिडाल (भग; पि २४१) । बिरालो बिरालिआ (पि २४१) बिल [वि] १ वृक्ष-विशेष, बेल का पेड़ ( पण १ उप १०३१ टी ) । २ न. बेल का फल (पान) 1
विल [बिल्वल] १ मनायें देश-विशेष २ उस देश में रहनेवाली मनुष्य जाति (पह १, १ ---पत्र १४) । देखो चिल्लल = चिल्वल । दिस [ग] [[स] [] आदि के
का तन्तु, मृणाल (गाया १, १३० कुमाः पात्र) । "ठी श्री ["कण्ठी] बलाका, बक पक्षी की एक जाति दे६ १३) देखी भिस बिस 1
बिसि देखो बिसी (दे १,८३) बिसिणी स्त्री [बिसिनी ] कमलिनी, कमल का गाछ (पि २०९ ) 1
बिसी स्त्री [बृषी ] ऋषि का प्रासन (दे १ प वि[] डरना । बिहेइ (प्राकृ ६४ ०१) M
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पाइअसद्दमद्दण्णवो
बिभेलय - बंदिणी
वि वि [[बृहन] बड़ा महान् र श्रीगन [पीटक] वीड़ा पान का बीड़ा, [नल] धन्य-विशेष (वि) 1सजित ताम्बूल (सुपा ३३६) ।
बिहप देखो बहस्सइ (हे २, १३७,
१, १३८२, ६६ षड् ; कुमा) ।
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बिहफइ - बिहस्सइ J विहिन लोहि (प्राह । ८ ) बिहे देखो विभेल (२२४) 1 बीअ देखो बिइअ (हे १, ५२, ७६ सुर १, ३८ सुपा ४८५) ।
अन [बीज] १ बोज; बीयाः 'लाउनबीनं इक नासह भारं गुडस्स जह सहसा (प्रासू १५१; श्राचा जी १३: श्रप ) । २ मूल कारण 'सारीरमाण सारणेय दुक्खबीयभूयकम्म(महावीर्यं शरीरान्तर्गत सप्त धातुद्मों में से मुख्य धातु, शुक्र (सुपा ३१०; वव ε) । ४ ‘ह्रीँ' अक्षर (सिरि १६) बुद्धि वि ["बुद्धि] मूल अर्थ को जानने से शेष प्रर्थों का निज बुद्धि से स्वयं
जाननेवाला (श्रौप)। °मंत वि [वत्] बीजाला (गाया १, १ रुइ श्री [°रुचि] एक ही पद से अनेक पद और अथों का अनुसंधान द्वारा फैलनेवाली रुचि । २ वि. उक्त रुचिवाला (परण १) । रुह वि [" रुह ] बीज से उत्पन्न होनेवाली वनस्पति (पण १) वाय [बाप] क्षुद्र जन्तुविशेष (राज) + 'सुडुम न [सूक्ष्म] छिलके
का अग्र भाग (कप्प ) 1
बरन [बीजपूरक] फल- विशेष, एक तरह का नीबू ( मा ३६)
बीअजमण न [दे] बीज मलने का खललहान ६
बीअण पुं [दे] नीचे देखो (दे ६, १३ टी) । बीअय [देव] विशेष सन वृक्ष-विशेष, वृक्ष, विजयसार का गाछ (दे ६, ९३; पान ) । श्रीअवावर [वीजवापक] निकलेन्द्रिय पुं जन्तु की एक जाति (प्रणु १४१ ) । बीआ श्री [द्वितीया] १ तिथि-विशेष पूज (सम २६ श्रा २६, रया २० गाया १, १०६ सुपा १७१ ) २ द्वितीय विभक्ति (इम १०१ ) 1बीज देखो बीअ = बीज (कुमाः परह २, १ --पत्र EC ) 1 V
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बीड श्री [बीटि [टी] ऊपर देख बीडी । 'बिल्लदल बीडीओ कीसेवि मुहम्म पक्खिव' (धर्मवि १४० ) 1
बीभच्छ पुं [ बीभत्स ] साहित्य प्रसिद्ध एक ←--- रस (१३५) ।
बीभच्छ ) वि [ बीभत्स] १ घृणोत्पादक, बीभत्थ घृणा - जनक। २ भयंकर भय जनक (उवा तंदु ३८६ गाया १, २० संबोध ४४) । ३ पुं. रावण का एक सुभट (पउम ५६, २) Tv
बीयत्तिय वि [ दे. बीजयितृ] बीज बोनेवाला, वपन करनेवाला । २ पुं. पिता 'बीयं बीयत्तियसेव' (सुपा ३६०; ३६१) बोलय पुं [दे] ताडंक, कर्णभूषण- विशेषः कान का एक गहना (दे ६, १३) । बीह अक [भी] डरना। बीहइ, बीहेइ (हे ४, ५३३ महा; पि २१३) । वकु. बीत (प्रोघभा १६ उप ७६८ टी कुमा) । कृ. बीहियव्य (६८२) |
बीहच्छ देखो बीभच्छ ( पि ३२७) । बोहण ) वि [ भीषण, क] भय-जनक, बीहणग - भयंकर (पि २१३ परह १, १६ बीहणय पउम ३५,५४)
विवि [भीषित ] डराया हुआ (सम्मत ११८) 1
बीहिअ वि [भीत ] १ डरा हुआ (हे ४, ५३) । २ न. भय, डर 'न य बीहिश्रं ममावि हु' (श्रा १४) ।
बीहिर वि [भेट] डरनेवाला (कुमा ६, ३५) । बुआ स [ वाचय्] बाबा सं बुआ २ पत्र १२० ) । बुइअवि [४] कथित (१,२, २, २४१, १४, २५ परह २, २) बुंदि पुंस्त्री [दे] १ चुम्बन । २ सूकर, सूर (दे ६, १८) 1
बुंदि स्त्री [द] शरीर, देह; 'इह बुदि चइत्ताण तत्थ गंतरा सिज्झइ' (ठा १ टी - पत्र २४ सुज २०; तंदु १३; सुपा ६५६, धम्म ६ टी पान)। देखो बोंदि । -
बुंदिणी स्त्री [दे] कुमारी- समूह (दे ६, १४) ।
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