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पाइअसहमहण्णवो
मणिअ-मण्ण विशेष (विपा २, ६) चूड पुं[चूड] विशेष; 'चोहहमणचोग्गुणो' (कुमाः राज)। पु. गुल्म-विशेष; 'सरियए णोमालियकोरिटयएक विद्या-धर नृप (महा)। जाल न ३ मनुज, मनुष्यः 'देवत्ताप्रो मणुत्तं (पउम | वत्थुजीवगमणोज्ज' (पएण १-पत्र ३२)। [°जाल] भूषण-विशेष, मणि-माला (प्रौप)। २१, ६३; कम्म १, १६; २ १)। ४ पण, 'न्न वि [ज्ञ] सुन्दर, मनोहर (हे २, 'तोरण न ["तोरण] नगर-विशेष (महा)। न. एक देव-विमान (सम २)।
८३; पि २७६) । भव पुं[भव कामदेव, ° देखो व (से ६, ४३) पेढिया स्त्री मणुअ पु[मनुज] १ मनुष्य, मानव (उवा; कन्दर्प (सुपा ६८; पिग)। "भिरमणिज वि [पीठिका] मणि-मय पीठिका (महा)। भगः हे १८; पाम कुमाः स ८२ प्रासू ४५)। [भिरमणीय सुन्दर, चित्ताकर्षक (पउम 'प्पभ [प्रभ] एक विद्याधर (महा) २ भगवान् श्रेयांसनाथ का शासन-यक्ष (संति ८, १४३)। भू पुं [भू] कामदेव, भद्द पुं [भद्र] एक जैन मुनि (कप्प)। ७)। ३ वि. मनुष्य-सम्बन्धी; तिरिया कन्दर्प (कप्पू)। "मय वि ["मय मानसिक; भूमि स्त्री [भूमि] मणि खचित जमीन मणुया य दिव्यगा उत्सग्गा तिविहाहिया- 'सारीरमणोमयारिण दुक्खारिण' (पएह १, ३(स्वप्न ५४)। मइय, मय वि ["मय] सिया' (सूस १, २, २, १५)।
पत्र ५५), 'माणसिय वि [ मानसिक मन मरिण-मय, रत्न निवृत्त (सुपा ६२; महा)।
मणुइंद पुं[मनुजेन्द्र] राजा, नरपति (पउम में ही रहनेवाला-वचन से अप्रकटित-मानसिक रह पुं[रथ] एक राजा का नाम (महा) ८५, २२; सुर १, ३२)।
दुःख आदि (गाया १, १,-पत्र २६)। व [प] १ यक्ष । २ सर्प, नाग (से २, २३)। ३ समुद्र (से ६, ५०). "वई स्त्री
'रम वि [रम १ सुन्दर, रमणीय (पान)। मणुई स्त्री [मनुजी] मनुष्य-श्री, नारी, महिला (पंदि १२६ टी)।
२. एक विमानेन्द्रक, देवविमान-विशेष [मती] नगरी-विशेष (विपा २, ६-पत्र ११४ टि)। वंध पु[बन्ध] हाथ और मणुएसर पुं[मनुजेश्वर] ऊपर देखो (सुपा
(देवेन्द्र १३६)। ३ मेरु पर्वत (सुज्ज ५)।
४ राक्षस-वंश का एक राजा, एक लंका-पति प्रकोष्ठ के बीच का अवयव (सण)। 'वालय
२०४)। मणुज । वि [मनोज्ञ ] सुन्दर, मनोहर
(पउम ५, २६५)। ५ किन्नर-देवों को एक पुं[पालक, वालक समुद्र (से २, २३)। मगुण्ण (पान: उप १४२ टी; सम १४६;
जाति । रुचक द्वीप का अधिष्ठायक देव सलागा स्त्री [शलाका ] मद्य-विशेष (राज)। "हियय पु[ हृदय] देव-विशेष
(राज) । ७ तृतीय ग्रैवेयक-विमान (पव भग)। मणुस । पुत्री [मनुष्य] १ मानव, मर्त्य
१६४)। ८ पाठवें देवलोक के इन्द्र का (दीव)। मणुस्स (आचाः पि ३००; आचाः ठा ४,
पारियानिक विमान (इक)। एक देवमणिअ न [मणित] संभोग-समय का स्त्री
२० भगः श्रा २८ सुपा २०३; जी १६ विमान (सम १५)। १० मिथिला का एक चैत्य का अव्यक्त शब्द (गा ३६२, रंभा)
प्रासू २८)। स्त्री. स्सी (भगः पराण १८ (उत्त ६, ८६)। ११ उपवन-विशेष (उप मणिों देखो मणयं (षड्; हे २, १६६
पत्र २४१) । खेत्त न [क्षेत्र] मनुष्य- १८६ टी)। रमा श्री [रमा] चतुर्थ वासुकुमा)।
लोक (जीव ३) । °सेणियापरिकम्म पुं देव की पटरानी का नाम (पउम २०,१८६)। मणिअड (अप) पु[मणि माला का सुमेर
[णिकापरिकर्मन् ] दृष्टिवाद का एक २ भगवान् सुपार्श्वनाथ की दीक्षा-शिविका (हे ४, ४१४)। सूत्र (सम १२८)।
(सुपा ७५, विचार १२६)। ३ शक्र की मणिच्छिअ वि [मनईप्सित] मनोऽभीष्ट
मणुस्स वि [मानुष्य] मनुष्य-सम्बन्धी, 'दिग्ध अन्जुका नामक इन्द्राणी की एक राजधानी (सुपा ३८४)।
व मणुस्सं वा तेरिच्छ वा सरागहियएणं' (इक) रह [रथ] १ मन का अभिलाष मणिजमाण देखो मण = मन् । (आप २१)।
(प्रौप; कुमाः हे ४, ४१४)। २ पक्ष का मणि वि [मनइष्ट] मन को प्रिय (भवि)। मणुस्सिद पुं [मनुष्येन्द्र] राजा, नर-पति तृतीय दिवस (सुज्ज १०, १४-पत्र १४७)। मणिणायहर न [दे. मणिनागगृह] समुद्र, (उत्त १८, ३७, उप पृ १४२)।
हंस पु [हंस] छन्द-विशेष (पिंग)। सागर (दे ६, १२८)। मणूस देखो मणुस्स (हे १, ४३; औपः उवर
हर पुं [°हर] १ पक्ष का तृतीय दिवस मणिरइआ स्त्री [दे] कटीसूत्र (दे ६,१२६)। १२२; पि ६३) ।
(सुज्ज १०, १४) । २ छन्द-दिशेष (पिंग)। मणीसा स्त्री [मनीषा] बुद्धि, मेधा, प्रज्ञा मणे अ [मन्ये विमर्श-सूचक अव्यय (हे २,
३ वि. रमणीय, सुन्दर (हे १, १५६; षड्; (पान) २०७; षड्, प्राकृ २६ गा १११, कुमा)।
स्वप्न ५२, कुमा)। हरा स्त्री [हरा] मणीसि वि [मनीषिन्] बुद्धिमान्, पण्डित मणों देखो मग = मनस् । गम न [गम] |
भगवान पद्मप्रभ की दीक्षा-शिविका (विचार देवविमान-विशेष, 'पालगपुप्फगसोमणससिरि
१२६)। हव देखो भव (स ८१; कप्पू)।। मणीसिद वि [मनीषित] वान्छित (नाट- वच्छनंदियावत्तकामगमपीतिगममणोगमविमल
"हिराम वि [भिराम सुन्दर (भवि)। मृच्छ ५७)। सध्वोभद्दसरिसनामधेजेहिं विमाणेहि प्रो
मणोसिला देखो मणसिला (हे १, २६; मणु पुं [मनु] १ स्मृति-कर्ता मुनि-विशेष इण्णा ' (अप)। ज वि [ज्ञ] १ सुन्दर, (विसे १५०८उप १५० टी) । २ प्रजापति- मनोहर (हे २, ८३; उप २६४ टी)।२ मण देखो मण = मन् । मरगइ (पि ४८८)।
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