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होनेवाला एक विद्यावान का मस्सि देखो
मड्डय-मणि पाइअसहमहण्णवो
६६९ मड्डय पुं[दे. मड्डक] वाद्य-विशेष (राय पर्यव ज्ञान (कम्म ३, १४, ११, १७; मणण न [मनन] १ ज्ञान, जानना। २
२१)। नाणि वि [ज्ञानिन् मनः-पर्यव समझना (विसे ३५२५) । ३ चिन्तन (श्रावक मड्डा स्त्री [दे] १ बलात्कार, हठ, जबरदस्ती नामक ज्ञानवाला (कम्म ४,४०)। पज्जत्ति ___३३७)। (दे ६, १४०, पायः सुर ३, १३६; सुख २, बी [पर्याप्ति पुदलों को मन के रूप में मणय पुं [मनक] द्वितीय नरक-भूमि का १५)। २ आज्ञा, हुकुम (दे ६, १४०, सुपा परिणत करने की शक्ति (भग ६, ४) तीसरा नरकेन्द्रक--नरकावास-विशेष (देवेन्द्र २७६)
पज्जव पु[पर्यव] ज्ञान-विशेष, दूसरे के ६)। देखो मणग। मड्डिअ वि [मर्दित] जिसका मदन किया मन की अवस्था को जाननेवाला ज्ञान (भगः मणयं अ [मनाग] अल्प, थोड़ा (हे २, गया ो वह (हे २, ३६ षड्पि २६१)। औपः विसे ८३) । पज्जवि वि [पर्यविन]
१६६, पामः षड्) मड्डुअ देखो मद्दुअ (राज)।
मनःपर्यव ज्ञानवाला (पव २१)। पसिण
मणस देखो मण - मनस् ; 'पसन्नमणसो मढ देखो मड्ड । मढइ (हे ४, १२६)।विज्जा स्त्री [प्रश्नविद्या] मन के प्रश्नों का
करिस्सामि' (पउम ६, ५६), 'लाभो चेव मढ न [मठ] संन्यासियों का आश्रय, वतियों उत्तर देनेवाली विद्या (सम १२३)। बलिअ
तवस्सिस्स होइ अद्दीणमणसस्स' (प्रोघ का निवासस्थान; 'मढी (हे १, १९६; सुपा वि [°बलिन्, 'क] मनो-बलवाला. दृढ़
५३७)। २३४ वज्जा ३४; भवि); 'मढं' (प्राप्र)। मनवाला (पएह २, १; औप)। मोहण
मणसिल। देखो मणंसिला (कुमा; हे १,
वि [ मोहन] मन को मुग्ध करनेवाला, मढिअ देखो मड्डिअ (कुमा)।
मणसिला २६ जी ३; स्वप्न ६४)। चित्ताकर्षक (गा १२८)। योगि वि मढिअवि दे] १ खचितः गुजराती में 'मढेलु",
मणसीकय वि [मनसिकृत चिन्तित (पएण [ योगिन् मन की चेष्टावाला (भग)। 'एयाउ प्रोसहीरो तिघाउमढियाउ धारिज्जा'
३४-पत्र ७८२: सुपा २४७)।वग्गणा स्त्री [वर्गणा] मन के रूप में (सिरि ३७०) । २ परिवेष्टित (दे २, ७५;
मणसीकर सक [मनसि + कृ] चिन्तन परिणत होनेवाला पुद्गल-समूह (राज)। पात्र)।
करना, मन में रखना। मणसीकरे (उत्त वजन [वज्र] एक विद्याधर नगर मढी स्त्री [मठिका] छोटा मठ (सुपा ११३) ।
२, २५) । (इक)+ समिइ श्री ["समिति मन का मण सक [मन्] १ मानना । २ जानना । ३ |
संयम (ठा ८–पत्र ४२२)। समिय वि
मणस्सि देखो मणसि (धर्मवि १४६)। चिन्तन करना । मणइ, मणसि (षड् ; कुमा)।
[°समित] मन को संयम में रखनेवाला मणा- देखो मणयं (हे २, १६६; कुमा)। कवकृ. मणिज्जमाण (भग १३, ७; विसे
(भग) हंस पुं [हंस] छन्द-विशेष | मणाउ) (अप) ऊपर देखो (कुमाः भविः पि
(पिंग)। हर वि [हर] मनोहर, सुन्दर, मणारं ११४; हे ४,४१८, ४२६) । मण पुन [ मनस् ] मन, अन्तःकरण, चित्त
चित्ताकर्षक (हे १, १५६; औपः कुमा)। मणागं ऊपर देखो (उप १३२; महा) । (भग १३, ७ विसे ३५२५; स्वप्न ४५;
हरण पुन [हरण] पिंगल-प्रसिद्ध एक दं २२; कुमा, प्रासू ४४, ४८; १२१) ।
मणाल देखो मुणाल (राज)। मात्रा-पद्धति (पिंग) + भिराम, भिराअगुत्ति स्त्री [°अगुप्ति] मन का असंयम
मणालिया श्री [मृणालिका] पद्म-कन्द का मेल्ल वि [ अभिराम ] मनोहर (सम (पि १५६)। करण न [करण] चिन्तन, १४६
मूल (तंदु २०) । देखो मुणालिआ ।
औप, उप पृ ३२२; उप २२० टी)। पर्यालोचन (श्रावक ३३७)। गुत्त वि
मणासिला देखो मणंसिला (हे १, २६
म वि [ आप] सुन्दर, मनोहर (सम [°गुप्त] मन को संयम में रखनेवाला (भग)
१४६; विपा १, १; औप; कप्प)। देखो गुत्ति स्त्री [गुप्ति मन का संयम (उत्त मणों
मणि पुंस्त्री [मणि] पत्थर-विशेष, मुक्ता २४, २), जाणुअ वि [३] १ मन को मणं देखो मणयं (प्राकृ ३८)।
आदि रत्न (कप्पः प्रोपः कुमाः जी ३; प्रासू जाननेवाला, मन का जानकार । २ सुन्दर,
४)। अंग पुं[अङ्ग] कल्प-वृक्ष की एक मनोहर (प्राकृ १८)। जीविअ वि मणास वि [मनास्वन्। प्रशस्त मनवाला
जाति जो आभूषण देती है (सम १७)। [ जीविक] मन को आत्मा माननेवाला (हे १, २६) । स्त्री. णी (हे १, २६)।
°आर पुं[कार] जौहरी, रत्नों के गहनों (पएह १, २-पत्र २८)। जोअ पुं मणसिल । स्त्री [ मनःशिला ] लाल वर्ण
का व्यापारी (दे ७, ७७, मुद्रा ७६ रणाया योग मन की चेष्टा, मनो-व्यापार (भग)। मणसिला की एक उपधातु, मनशिल,
१, १३, धर्मवि ३६) । कंचण न ज, णु, णुअ देखो जाणुअ (प्राक मैनशिल (कुमा; हे १, २६)।
[काञ्चन] रुक्मि-पर्वत का एक शिखर १८ षड्)। थंभणी स्त्री [स्तम्भनी] मणग ([मनक] एक जैन बाल-मुनि, महर्षि
(ठा २, ३-पत्र ७०)। कूड न [कूट] विद्या-विशेष, मन को स्तब्ध करनेवाली दिव्य शय्यंभवसूरि का पुत्र और शिष्य (कप्पा |
रुचक पर्वत का एक शिखर ( दीव )। शक्ति (पउम ७, १३७)। नाण न [ज्ञान] धर्मवि ३८) । देखो मणय ।।
क्खइअ वि [°खचित] रत्न-जटित (पि मन का साक्षात्कार करनेवाला ज्ञान, मनः- मणगुलिया स्त्री [दे] पीठिका (राय)। १६६)। 'चइया श्री [चयिता] नगरी
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