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६७६ पाइअसहमहण्णवो
मल्ह-मह मल्ह प्रक [दे] मौज मानना, लीला करना। | (पास)। २ स्निग्ध किया हुआ (से ६, | महँगा (भवि) । चंद पु ["चन्द्र] १
वकृ. मल्हंत (दे ६, ११६ टी; भवि)। ६)। ३ विलुलित, विदित (से १, ५५) राजकुमार-विशेष (विपा २, ५, ६)। २ मल्न दि] लीला, मौज (दे ६, ११९) मसी देखो मसि (उवा)।
एक राजा (विपा १, ४) च वि [अर्च मव सक मापय् ] मापना, माप करना,
मसूर । पुन [मपर, क] १ धान्य-विशेष, १ बड़ा ऐश्वर्यवाला । २ बड़ी पूजा-सत्कारनापना। मवंति (सिरि ४२५)। कर्म,
मसूरग मसूरि (ठा ४, ३; सम १४६; पिड वाला (ठा ३, १-पत्र ११७; भग)। 'पाउयाई मविज्जंति' (कम्म ५, ८५ टी)।
मसूरय ६२३)। २ उच्छीर्षक, प्रोसीसा च वि [ अW] अति पूज्य (ठा ३, १,
(सुर २, ८३, कप)। ३ पत्र या चर्म का भग) रिय न [°आश्चय | बड़ा कवकृ. मविजमाण (विसे १४००)। वृत्ताकार प्रासन (पव ८४)
पाश्चयं (सुर १०, ११८)। जक्ख पुं मविय वि [मापित] मापा हुआ (तेंदु ३१)
मस्सु देखो मंसु (संक्षि १२; पि ३१२)। 'यक्ष] भगवान् अजितनाथ का शासनामश्चला (मा) स्ना मस्त्य मछला ( मस्सूरग देखो मसूरगः 'मस्सूरए य थिबुर्गे धिष्ठायक देव (पव २६; संति ७)। जाला २३३)। (जीवस ५२)।
श्री [ज्वाला] विद्यादेवी-विशेष (संति ६)। मस पु[मश, क १ शरीर पर का
मह सक [काङ्क्ष ] चाहना, वाञ्छना । ज्जुइय वि [ द्युतिक] महान तेजवाला मसअ तिलाकार काला दाग, तिल (पव
महइ (हे ४, १९२; कुमा, सण)। (भग; औप), 'ढि स्त्री [ ऋद्धि] महान् २५७)। २ मच्छड़, क्षुद्र जन्तु-विशेष (गा
मह सक [ मथ् ] १ मथना, विलोड़न वैभव (राय)। 'ड्ढिय, ड्ढोअ वि ५६०; चारु १०, वज्जा ४६)।
करना। २ मारना । महेज्जा (उवा)। ["ऋद्धिक] विपुल वैभववाला (भगः प्रोधमा मसक्कसार न [मसक्कसार इन्द्रों का एक मह सक[ मह 1 पूजना। महइ (कुमा), १०), गणव पुं [अर्णव] महा-सागर स्वयं प्राभाव्य विमान (देवेन्द्र २६३)।
महेइ (सिरि ५६६) । संकृ. महिअ (कुमा)। (सुपा ४१७, हे १, २६६) गणवा स्नी मसग देखो मसअ (भग; औपः पउम ३३, कृ. मणिज (उप पृ १२६)।
[अर्णवा] १ बड़ी नदी। २ समुद्र-गामिनी १०८; जी १८)। मह पुन [मह] उत्सव (विपा १, १-पत्र
(कस ४, २७ टि: बृह ४)। तुडियंग न मसण वि [मसूण १ स्निग्ध, चिकना। ५; रंभाः पापः सण)।
["त्रुटिताङ्ग] ८४ लाख त्रुटित को संख्या २ सुकुमाल, कोमल, अकर्कश। ३ मन्द, मह पुं [मख] यज्ञ (चंड गउड)।
(जो २)। त्तण न [व] बड़ाई, महत्ता धीमा (हे १, १३०; कुमा)।
(श्रा २७).1 °त्तर वि [तर] १ बहुत बड़ा मह वि [ महत् ] १ बड़ा, वृद्ध । २ विपुल, मसरक सक [दे] सकुचना, समेटना। संकृ.
(स्वप्न २८)। २ मुखिया, नायक, प्रधान 'दसवि करंगुलीउ मसरक्किवि (अप) विस्तीर्ण । ३ उत्तम, श्रेष्ठ; 'एगं महं सत्तुस्सेहं'
(कप्पः प्रौपः विपा १,८)। ३ अन्तःपुर (णाया १, १-पत्र १३, काल, जी ७; (भदि)। हे १, ५) । स्त्री. ई (उव; महा)। "एवी
का रक्षक (प्रौप)। स्त्री. °रिया, "री (ठा मसाण न [श्मशान] मसान, मरघट (गा
स्त्री [°देवी] पटरानी (भवि)। कंतजस ४, १-पत्र १९८; इक)। त्थ वि [ अर्थ] ४०८ प्राप्रः कुमा)।
महान् अर्थवाला (णाया १, पुं[कान्तयशस्] राक्षस वंश का एक मसार पुंदे. मसार] महणता-संपादक
श्रा २७)।पापाण-विशेष, कसौटी का पत्थर (गाया १,
त्थ न [अन] अस्त्र-विशेष, बड़ा हथियार राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६५)। कमलंग न [कमलाङ्ग] संख्या-विशेष,
(पउम ७१, ६७)। "स्थिम पुंस्त्री [र्थत्व १-पत्र ६; औप)। ८४ लाख कमल की सख्या (जो २)।
महार्थता (भवि)। दलिल्ल वि [°दलिल] मसारगल्ल पु [मसारग] एक रत्न-जाति
कव्व न [ काव्य] सर्ग-बद्ध उत्तम काव्य- बड़ा दलवाला (प्रासू १२३)। दह पुं (गाया १,१-पत्र ३१ कप्पः उत्त ३६,
ग्रंथ ( भवि), काल देखो महा-काल ["द्रह] बड़ा ह्रद (णाया १, १-पत्र ६४;
(देवेन्द्र २४)। गइ पुंगात] राक्षस वंश गा १८६ अ), 'दि स्त्री [अद्रि] १ बड़ी मसि स्त्री [मसि] १ काजल, कज्जल (कप्पू)।
का एक राजा, एक लंकेश (उम ५, २६५)। याचना। २ परिग्रह (परह १, ५-पत्र २ स्याही, सियाही (सुर २, ५)।
'ग्गह देखो महा-गह (सम ६३), ग्घ ६२)। दुम पु ["द्रम] १ महान् वृक्ष मसिंहार पु [मसिंहार] क्षत्रिय-परिव्राजक
वि [अर्घ] महा-मूल्य, कीमती (सुर ३, (हे ४, ४४५)। २ वैरोचन इन्द्र के एक विशेष (प्रौप)।
१०३, सुपा ३७), ग्धविअ वि[अघित] पदाति-सैन्य का अधिपति (ठा ५, १-पत्र मसिण देखो मसण (हे १, १३०; कुमाः
१ महँगा, दुर्लभ (से १४, ३७)। २ | ३०२)1 °द्धि वि [ ऋद्धि] बड़ी ऋद्धिवाला प्रौपः से १, ४५, ५, ६४)।
विभूषित; 'विमलंगोवंगगुणमहग्धविया' (सुपा (कुमा)। 'धूम पु[°धूम] बड़ा धुमाँ मसिज वि [दे] रम्य, सुन्दर (दे ६, ११८)।
(महा)। नव देखो ण्णव (श्रा २८)। मसिणिअ वि [मसृणित] १ मृष्ट, शुद्ध सक्कारियपणमिनो महग्घविनो' (उव) पाणन [प्राण ध्यान-विशेष(सिरि १३३०)।किया हुआ, मार्जितः 'रोसिरिण ममिरिण' 'ग्घिम (अप) वि [ अधित बहूमूल्य, 'पुंडरीअ'[पुण्डरीक] ग्रह-विशेष
१, १९८।- १,६०) । ३ सम्मानित 'आ
(उव)। पाणन [प्राणपण्डरीक ] ग्रह-विशेष
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