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महअर-महा
पाइअसहमहण्णवो
(हे २, १२०) । 'प्प ' [ आत्मन् महान् महअर पुं[दे] गह्वर-पति, निकुञ्ज का मालिक महम्मह देखो महमह; 'जिप्रलोअसिरी महम्ममात्मा, महा-पुरुष (पउम ११८, १२१) (द ६, १२३)।
हई' (गा ६०४) °Cफल वि [फल] महान् फलवाला (सुपा महई [महाति १ अति बड़ा । २ अत्यन्त | महया देखो महा'; 'महयाहिमवंतमहंतमलय६२१)। 'बाहु पुं[°बाहु] राक्षस वंश का विपुल । जड वि [जट] प्रति बड़ी जटा- मंदरहिंदसारे' (णाया १, १ टी-पत्र ६, एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६५)। वाला (पउम ५८, १२)। महाइंदइ पुं| औपः विपा १, १, भग) ।। 'बोह पुं[अबोध] महा-सागर,
[महेन्द्रजित् ] इक्ष्वाकु-वंश के एक राजा महर वि [दे] असमर्थ, प्रशक्त (दै ६, 'इय वुत्तंतं सोउं रगणा
का नाम (पउम ५, ६)। महापुरिस ' ११३)। निव्वासिया तहा सुगया ।
[ महापुरुष १ सर्वोत्तम पुरुष, सर्व-श्रेष्ठ महलयपक्ख देखो महालवक्ख (षड्-पृष्ठ महबोहे जंतूणं जह
पुरुष । २ जिनदेव, जिन भगवान् (पउम १, १७६)।
१८) महालय वि [महत् ] अत्यन्त महल्ल वि [दे. महत्] १ वृद्ध, बड़ा (दे पुणरवि नागया तत्व
बड़ा: 'महइमहालयंसि संसारंसि' (उवा: सम (सम्मत्त १२०)।
६, १४३, उवा; गउड; सुर १, ५४; पंचा ७२) । स्त्री. 'लिया (भग; उवा)।
५, १६; संबोध ४७ प्रोघ १३६, प्रासू 'ब्बल पं [बल] १ एक राज-कुमार महई देखो मह = महत्।।
१४६) जय १२; सुपा ११७) । २ पृथुल, (विपा २, ७ भग ११, ११, अंत)। २ वि. महंग [दे] उष्ट्र, ऊँट (दे ६, ११७)। । विशाल, विस्तीर्ण (द ६, १४३; प्रवि १०; विपुल बलवाला (भग; प्रौप)। देखो महा
महंत देखो मह = महत् (आचा; औप, कुमा) स ६६२, भवि) स्त्री. 'ल्लिया (प्रौपः सुपा बल। भय वि [भय] महाभय-जनक महच्च न [माहत्य] १ महत्त्व ! २ महत्त्ववाला ११३५८७)। (पएह १, १) भूय न [भूत] पृथिवी (ठा ३, १-पत्र ११७)।
महल्ल वि[दे] १ मुखर, वाचाट, बकवादी आदि पांच द्रव्य (सूअ २, १, २२), 'मरुय
महण न [दे] पिता का घर (दे ६, ११४)। (दे ६, १४३; षड्)। २ पुं. जलधि, पुं["मरुत] एक महर्षि, अन्तकृद् मुनि-विशेष महण न [मथन] १ विलोडन (से १, ४६;
समुद्र (दे ६, १४३)। ३ समूह, निवह (दे (अंत २५), 'मास पुं[अश्व] महान् वजा ८)। २ घर्षण (कुप्र १४८)। ३ वि.
६, १४३, सुर १, ५४) अश्व (ोप)। "यर देखो 'त्तर (णाया १, | १-पत्र ३७), 'रव पुं [व] राक्षस
मारनेवालाः 'दरितनागदप्पमहणा' (पराह १, महल्लिर देखो महल्ल; 'हरिनहकढिणमहल्लिर
| पयनहरपरंपराए विकरालो' (सुपा ११)।
४)। ४ विनाश करनेवाला; 'नाणं च वंश का एक राजा, एक लंका-पति (पउम ५, २६६), "रिसि पुं [ ऋषि महर्षि, महा
चरणं च भवमहणं' (संबोध ३५; सुर ७, महव देखो मघव (कुमाः भवि)। मुनि (उव; रयण ३७) 1 "रिह वि [ अह] २२५) । स्त्री. 'णी (श्रा ४६)
महा स्त्री [मघा] नक्षत्र-विशेष (सम १२; बड़े के योग्य, बहु-मूल्य, कीमती (विपा १, महण पुं[महन] राक्षस वंश का एक राजा,
सुज्ज १०, ५; इक)। ३; प्रौपः पि १४०)। वाय [वात
महा देखो मह = महत् (उवा) + अडड न महान् पवन (मोघ ३८७)। "व्वइय वि| महणिज देखो मह = मह ।।
[अटट] संख्या-विशेष, ८४ लाख महापट[व्रतिक महाव्रतवाला (सुपा ४७४)। महति देखो महई (ठा ३, ४; णाया १, टांग की संख्या (जो २)। अडडंग न व्वय पुंन [व्रत] महान् व्रतः 'महन्वया १औप)। .
[°अटटाङ्ग] संख्या-विशेष, ८४ लाख अट पंच हुँति इमे' (पउम ११, २३), 'सेसा महती स्त्री [महती] वीणा-विशेष, सौ ताँत- (जो २)। आल देखो काल (नाट-चैत महव्वया ते उत्तरगुणसंजुयावि न हु सम्म' वाली वीणा (राय ४६) ।
५२) ऊह न [°ऊह] संख्या-विशेष, (सिक्खा ४८; भगः उव)। व्वय पुं महत्थार न [दे] १ भाण्ड, भाजन । २ ८४ लाख महाऊहांग की संख्या (जो २)। ["व्यय] विपुल खर्च (उप पृ १०८)। भोजन (दे ६, १२५) ।।
कइ पुं[कवि श्रेष्ठ कवि, समर्थ कवि 'सलाग स्त्री [शलाका] पल्य-विशेष, एक महप्पुर पुं [दे] माहात्म्य, प्रभाव; 'तुह (गउड; चेइय ८४३, रंभा) कंदिय पुं प्रकार की नाप (जीवस १३६)। "सिव पुं मुहचंदपहाए फरिसाण महणुरो एसो' (रंभा | [कन्दित] व्यन्तर देवों की एक जाति ["शिव] एक राजा, षष्ठ बलदेव और वासुदेव ४३) ।
(पएह १, ४; प्रौप; इक) कच्छ ' का पिता (सम १५२)। "सुक्क देखो महा- महमह देखो मघमघ । महमहइ (हे ४, ७८ [कच्छ] १ महाविदेह वर्ष का एक विजयसुक्क (देवेन्द्र १३५)। सेण पु[सेन] षड् ; गा ४६७), महमहेइ (उव)। वक क्षेत्र-प्रान्त (ठा २, ३, इक)। २ देव१ पाठवें जिनदेव का पिता (सम १५०)। महमहंत (काप्र ६१७)। संकृ. महमहिअ विशेष (जं ४)। कच्छा श्री [कच्छा] २ एक राजा (महा)। ३ एक यादव (उप (कुमा)।
प्रतिकाय नामक इन्द्र की एक अग्र-महिषी ६४८ टी)। ४ न. वन-विशेष (विसे | महमहिअ वि [प्रसृत] १ फैला हुआ (हे १, (ठा ४,१-पत्र २०४, रणाया २: इक)। १४८४) । देखो महा-सेण । देखो महा। । १४६; वज्जा १५०) । २ सुरभित (रंभा)। कण्ह पुं.[कृष्ण] राजा श्रेणिक का एक
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