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मुट्टिम-मुत्ति पाइअसद्दमण्णवो
६६३ मुट्टिम पुंस्त्री [दे] गर्व, अहंकार, गुजराती में मुणाल पुंन [मृणाल] १ पद्मकन्द के ऊपर मुणिंद पुं [मुनीन्द्र श्रेष्ठ मुनि (हे १, ८४ 'मोटाई'; 'कयमुट्टिमंगीकारो' (हम्मीर ३५)। की बेल–लता (प्राचा २, १, ८, ११)। भग)। देखो मोट्रिम
२ बिस, पद्मनाल । ३ पन आदि के नाल मुणिर वि [ज्ञात, गुणित] जाननेवाला मुटु वि [मुष्ट, मुषित] जिसकी चोरी हुई का तन्तु--सूत्र (पान; रणाया १, १३ (सरण) । हो वह (पिंड ४६६; सुर २, ११२: सुपा प्रौप)। ४ वीरण का मूल । ५ पय, कमलमणीश पंमिनीशा मनि-नायक (उप १४१ ३६१, महा)।
'मरणालो', 'मुणालं' (प्राप्र हैं १, १३१)। टी; भवि) मुट्ठि पुंस्त्री [मुष्टि] मुट्ठी, मूठी, चूंसा, मुक्का; मणालि पुं[मृणालिन्] १ पद्म-समूह । २ मुणीसर मुनीश्वर] ऊपर देखो (सुपा 'मुट्ठिणा', 'मुट्ठी' (पि३७६; ३८५ पार: पद्म-युक्त प्रदेश, कमलवाला स्थान; 'मुणाली रंभाः भवि)। जुज्झ न [युद्ध] मुष्टि से बाणाली' (सुपा ४१३)। की जाती लड़ाई, मूकामूकी (प्राचा)।
मुणीसिम (अप) पुन [मनुष्यत्व] १ मुणालिआ। स्त्री [मृणालिका, ली] १ | पुत्थय न [पुस्तक] १ चार अंगुल लम्बा
मनुष्यपन । २ पुरुषार्थ (हे ४, ३३०)।मणाली ) बिस-तन्तु, कमल-नाल का सूता वृत्ताकार पुस्तक । २ चार अंगुल लम्बा
(नाट-रत्ना २६)। २ बिस का अंकूर मुत्त सक[ मूत्रय ] मूतना, पेशाब करना। चतुष्कोण पुस्तक (पव ८०)।
(गउड)। ३ कमलिनी ( राज)। देखो मुत्तंति (कुप्र ६२)।मुट्टि [मौष्टिक] १ अनार्य देश-विशेष । मणालिया।
मुत्त न [मूत्र] प्रस्रवण, पेशाब (सुपा ६१६)। २ एक अनार्य मनुष्य-जाति (पएह १, १- मणि पुं [मुनि] १ राग द्वेष-रहित मनुष्य, मुत्त देखो मुक्त = मुक्त (सम १; से २, ३०; पत्र १४)। ३ मुट्ठी से लड़नेवाला मल्ल संत, साधु, ऋषि, यति (प्राचाः पामः कुमाः जो २)। लय पुंस्त्री [ालय] मुक्त जोवों (पराह २, ५-पत्र १४६)। ४ वि. मुष्टि- गउड)। २ अगत्स्य ऋषि; 'जलहिजलं व | का स्थान, ईषत्प्रारभारा नामक पृथिवी (इक)। सम्बन्धी (कप्प)।
मुरिणणा' (सुपा ४८६)। ३ सात को स्त्री. या (ठा ८,-पत्र ४४० सम २२)। मुट्ठिअ [मुष्टिक] १ मल्ल-विशेष, जिसको संख्या। ४ छन्द-विशेष (पिंग)। चंद पु.
मुत्त वि मित] १ मूर्तिवाला, रूपवाला, बलदेव ने मारा था (पराह १, ४-पत्र [चन्द्र] १ एक प्रसिद्ध जैन प्राचार्य और
आकारवाला (चैत्य ६१)। २ कठिन। ३ ७२; पिंग) । २ अनार्य देश-विशेष । ३ एक ग्रंथकार, जो वादी देवसूरि के गुरु थे (धम्मो
मूढ़ । ४ मूर्छा-युक्त (हे २, ३०)। ५ पुं. अनार्य मनुष्य जाति (इक)।. २५)। २ एक राज-पुत्र (महा)। "नाह पुं|
उपवास, एक दिन का उपवास (संबोध मुदिक्का स्त्री [दे] हिक्का, हिचकी (दे ६, [नाथ] साधुनों का नायक (सुपा १६०;
५८) । ६ एक प्राण का नाम (कप्प) २५०)। 'पुंगव ' [पुङ्गव] श्रेष्ठ मुनि
मुत्त देखो मुत्ता (ौपः पि ६७, चैत्य १४)। मुड्ढ देखो मुंढ (कुमा)। (सुपा ६७ श्रु ४१)। राय पुं [राज]
मुत्तव्य देखो मुच । मुनि-नायक (सुपा १६०)। वइ पुं[पति] मुडूढ वि [ मुग्ध, मूढ ] मूर्ख, बेवकूफ | (हम्मीर ५१)।
वही अर्थ (सुपा १८१, २०६) वर पुं मुत्ता स्त्री मुक्ता] मोती, मौक्तिक (कुमा)मुण सक [ज्ञा, मुण ] जानना। मुणइ,
[वर] श्रेष्ठ मुनि (सुर ४, ५६, सुपा जाल न [जाल] मुक्ता-समूह, मोतियों मुणंति, मुरिणमो (हे ४, ७ कुमा)। कर्म.
२४४)। वेजयंत पु["वैजयन्त] मुनि- की माला (औप; पि ६७) । दाम न मुणिज्जइ (हे ४, २५२), मुरिणज्जामि
प्रधान, श्रेष्ठ मुनि (सूअ १, ६, २०)। सीह [दामन् ] मोतियों की माला (ठा ४, (हास्य १३८) । वकृ. मुणंत, मुणित (महा:
पुं [°सिंह ] श्रेष्ठ मुनि (पि ४३६) । २) । वलि, वली स्त्री [वलि, ली] १ पउम ४८, ६)। कवकृ. मुणिज्जमाण (से
सुव्वय पुं[सुव्रत १ वर्तमान काल में मोती की माला, मोती का हार (सम ४४० २, ३६)। संकृ. मुणिय, मुणिउं, मुणि
उत्पन्न भारतवर्ष के बीसवें तीर्थंकर (सम पात्र)। २ तप-विशेष (अंत ३१) । ३ द्वीपऊण, मुणेऊणं (औपमहा)। कृ. ४३)। २ भारतवर्ष के एक भावी तीर्थकर
विशेष । ४ समुद्र-विशेष (राज) सुत्ति स्त्री मुणिअव्व. मुणेअव्व (कुमाः से ४, २४ | (सम १५३)।
[°शुक्ति] १ मोती की शीप । २ मुद्रा-विशेष नव ४२, कप्पः उव; जी ३२)
मुणि पुं[दे. मुनि] वृक्ष-विशेष, अगस्ति- (चेइय २४०; पंचा ३, २१)। हल न[फल] मुणण न [ज्ञान मुणन] ज्ञान, जानकारी दुम (दे ६, १३३; कुमा)।
मोती (हे १, २३६; कुमाः प्रासू २)। (कुप्र १८४ संबोध २५, धर्मवि १२५; मुणिअ वि [ज्ञात, मुणित] जाना हुआ |
हलिल्ल वि [ फलवत् ] मोतीवाला सरण)।। (हे २, १६६ पान; कुमाः अवि १६; परह
(कप्पू)। मुणमुण सक [मुणमुणाय ] अव्यक्त शब्द | १, २; उप १४३ टी)।
मुत्ति स्त्री [मूत्ति ] १ रूप, आकार: 'मुत्तिकरना, बड़बड़ाना । वकृ. मुणमुणंत, मुणिअ वि [दे. मुणक] ग्रह-गृहीत, भूता- |
गंत, मुणिअ वि [दे. मुणिक] ग्रह-गृहीत, भूता- विमुत्तेसु' (पिंड ५६; विसे ३१८२)। २ मुणमुर्णित (महा)।
। विष्ट, पागल (भग १५-पत्र ६६५). प्रतिबिम्ब, प्रतिमूत्ति, प्रतिमा: 'चउमुहमुत्ति
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